एक कहावत है कि इंसान जो करता है उसका फल उसे समय आने पर मिलता जरूर है। बस फर्क़ इतना होता है किसी को ये फल जल्दी तो किसी को देर में मिलता है। फिर आप अगर किसी को सता भी रहे हैं तो आपके सामने वो किसी ना किसी रूप में आएगा ही। यहां मैं आपको राजनीति के बारे में बताऊंगी जहां लोग अपना औधा पाने के बाद लोगों को भूल जाते हैं और फिर जब उनके साथ भी ऐसा ही हुआ तो बुजुर्ग होने के नाते लोगों की सहानुभूति बटोरते हैं। भाजपा के दिग्गज नेताओं में एक लालकृष्ण आडवाणी का भी नाम है और आज 91 साल की उम्र में इनका नाम भाजपा के सक्रिय नेताओं में नहीं रहा।
क्या किया था आडवाणी ने ?
इस तस्वीर में आप लाल कृष्ण आडवाणी के साथ बैठे जिस शख्स को आप देख रहे हैं उनका नाम बलराज मधोक है। ये अखिल विद्यार्थी परिषद के संस्थापक थे और एक समय में बेहतरीन राजनीतिज्ञ रहे हैं। जब आडवाी ने राष्ट्रपति पद के लिए अपना वोट डाला था तब ये खहर थी कि बलराज मधोक की आत्मा को शांति मिली होगी। इसके पीछे कारण खुद आणवाणी ही हैं। बलराज मधोक हैं का निधन साल 2016 में हो गया था और उस दौरान भाजपा के कई नेता दुखी हुए थे। जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता, और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक रहे हैं और साल 1966 में इनकी ही अध्यक्षता में आज़ादी के बाद हुए किसी भी चुनाव में जनसंघ को सर्वाधिक 35 सीटें हासिल हुई थीं। आडवाणी का राजनैतिक करियर बनाने में बलराज का अहम रोल था, लेकिन इनके बाद जनसंघ के अध्यक्ष बने आडवाणी ने साल 1973 में इन्हें ही पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
आज कुछ लोग कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ मिलकर आडवाणी को धोखा दे दिया। इस बार भी कैबिनेट में उनके लिए कोई जगह नहीं दी जबकि मोदी जी को बनाने में आडवाणी का भी हाथ रहा है। अब ये तो रि-साइकिल है जो सामने आता ही है। आदमी भले भूल जाये लेकिन समय कभी किसी को नहीं भूलता। वो आपके सामने भी वही परिस्थिति ला देता है जो आपने कभी किसी दूसरों के सामने किया हो। आदमी के किये हर कर्म का हिसाब होता है, आज नहीं तो कल, और जब होता है तब आदमी लोगों की सहानुभूति का केंद्र हो सकता है लेकिन समय पूरी निर्ममता से न्याय करता है।
हालांकि हम इस लायक तो नहीं कि इनका मूल्यांकन कर सकें लेकिन एक दर्शक की हैसियत से आडवाणी को उनकी उम्र के इस पड़ाव पर समय के इस न्याय को बेहद गरिमा और शालीनता से स्वीकारने के लिए 100 में से 100 अंक देना चाहेंगे। साल 2014 हो या साल 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भाजपा से हर किसी को मौका दिया लेकिन आडवाणी का पत्ता साफ कर दिया। लोगों में ऐसी बातें होने लगी लेकिन अब किसी को वो बात याद भी नहीं है।