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लेख, "वृद्धाश्रम की उपयोगिता: क्यों : कारण और निदान"

9 दिसम्बर 2018

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लेख, "वृद्धाश्रम की उपयोगिता: क्यों : कारण और निदान"


भारतीय परिवेश और भारतीयता अपने दायित्व का निर्वहन करना बखूबी जानती है। जहाँ तक आश्रमों की बात है अनेकों आश्रम अपने वजूद पर निहित दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं जिसमेँ गृहस्ताश्रम, पथिकाश्रम, शिक्षाश्रम, बाल आश्रम, विधवा आश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथ आश्रम, नारी सुरक्षा आश्रम और तीर्थाश्रम इत्यादि जरूरत पड़ने पर पटल पर विद्यमान हो जाते हैं और उनकी सेवा मुहैया हो जाती है जो परिवर्तित परिस्थितियों व समय सर्जित जरूरतों को ध्यान में रखकर सृजित होते रहे हैं। जब कि हम भारतीय अपनी रहनी- करनी के सारे साधन अपने गाँव-घर में उपार्जित करके, अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के आदी हैं और उसी में खुशी के साथ ही साथ आत्मीय दायित्व निभाने का सन्तोष मानकर उसके ममत्व व लगाव में झलकतेँ रहे हैं।

पुनरावलोकन करें तो आज के परिवेश को देखकर दिल द्रवित हो जाता है, लाचार माँ- बाप अपनी नाजों से पालित गृहस्ती को बसाकर, दुलारकर और अपने हाथों से सिंचित बाग में तमाम फल-फूल लगाकर उसकी छाया से उस समय बंचित कर दिए जाते है जब उन्हें सबसे अधिक अपनों के सहारे की जरूरत होती है। उनके हाथों के छाले उनकी झूलती झुर्रियां अपनों से पूछना चाहती हैं कि जब इस आश्रम में मेरी जगह नहीं है तो उस वृद्धाश्रम में कौन ऐसा फरिश्ता है जो उन्हें अपनत्व देने के लिए व्याकुल हुआ जा रहा है क्यों मुझे कसाई के कटघरे में ढकेल रहे हो क्या अपराध है मेरा, कुछ तो बताओं मेरे जिगर के टुकड़े मेरे सुपुत्र! बड़े त्याग से पालन किया था। बड़ी उम्मीदें सजाई थी नाती-पोतों के लिए मनौतियां मांगी थी, मंदिरों की ऊँची सीढ़िया चढ़कर घंटियां बजाई थी और तुम आज उन्हीं हड्डियों को अपने से जुदा कर रहे हो जिनमें वह दर्द है जो कँहरता तो था पर आवाज नहीं करता था कि मेरे सलोने की नींद टूट जाएगी। खेलना चाहता था , हँसना चाहता था इन नन्हीं किलकारियों के साथ जो तुम्हारी औलाद है महसूस करना चाहता था तुम्हारा अपना बचपन इस बुढ़ापे में इन अबोध नाती-पोतों के साथ और सुख की नींद सो जाना चाहता था इसी छत के नीचे जिसे हमने अपने अरमानों को कुचल कर बनाया था। जो आज तुम्हारा है, तुम वारिस हो हमारे दुनिया का। इतना बता दो मेरे लाल कि माँ-बाप भार क्यों हैं?, बुढापा अपराध कैसे है, वृद्धाश्रम इसका इलाज है यह सर्वत्र दिखाई देता है पर क्या दर्द दूर होता है इसका निजात करने वाला शायद यह भूल गया कि एक दिन वह भी वृद्ध होगा, तब क्या वह यह दर्द बरदाश्त कर पायेगा। शायद नहीं, क्यों कि उसने परोपकार के नाम पर अपना उपकार किया है और वृद्धाश्रम के नाम पर उन लोगों को दर्द दिया है जो लोग अपने अंतिम पड़ाव पर हैं और अपनों के हूफ़ से वंचित इस लिए कर दिए गए हैं कि घर के अलावा वृद्धाश्रम का विकल्प मौजूद है।

किसी व्यवस्था पर उँगली उठाने का यहाँ तनिक भी विचार नहीं है, गुण-दोष सर्वत्र विद्यमान होते हैं पर भावनाओं के साथ खेलने और उन्हें प्रताड़ित करने का अधिकार भारतीय परंपरा में किसी किसी को नहीं है। आयाती दृष्टिकोण जब भी अपनाए जाते हैं तो कमोवेश यहीं परिणाम होता है। रहन-सहन, खान-पान, वेष-भूषा, विचार सरणी किसी पर थोपी नहीं जाती। अनुकूल होने पर सहर्ष उसे अपनाया जाता है, जरूरी नहीं कि हर वस्तु हर मौसम में लाभदायी हो, हर मकान हर जलवायु के अनुकूल हो, हर विचार सर्वमान्य हो, जरूरी यह है कि हमारी भावना, हमारे आदर्श हमारी नैतिकता किसको समाहित करके खुशी प्राप्त करती है उसको अपनाना और प्रसारित करना उत्तम है।

वृद्धाश्रम क्यों, उसकी उपयोगिता और निदान: पर दृष्टि डालें तो मन गुमराह हो जाता है कि इसकी क्या जरूरत है जब वारिसदार मौजूद है, उपयोगिता को देखें तो कष्ट ही कष्ट होता है कि माँ-बाप अभी जिंदा है और हम उनकी छाया से अपनी सुख-सुविधा के लिए वंचित हैं क्यों कि वृद्धाश्रम है। निदान- बहुत आसान है हम बिना पर उड़ना बंद कर दें और यह जाने कि परमात्मा के बाद अगर कोई आत्मा हमारे भले के लिए पृथ्वी पर है तो वह है माँ-बाप। इनकी आत्मा दुखाकर हम सुखी नहीं रह सकते, इनकी चरणों में चारोधाम है। इनकी पूजा हमारा कर्तव्य है इनका आशीष हमारे सशक्त निधि है। इनको प्यार से रखें और भारतीय सानिध्य को बरकरार रखें। इस जन्नत को जहन्नुम न बनाएं। इस वटवृक्ष को सम्हालें और तमाम व्याधियों से मुक्त रहें।


महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय, स्वागतम

15 दिसम्बर 2018

Tushar Thakur

Tushar Thakur

Thanks For Posting such an amazing article, i really love to read your Post regulearly on this community of shabd. Also Visit :<a href="https://bharatstatus.in">bharatstatus</a> & Read Also: <a href="https://bharatstatus.in/latest-jokes">WhatsApp Funny jokes</a> Read Also:<a href="https://bharatstatus.in/facebook-status-and-royal-attitude-status">attitude status in hindi</a>

14 दिसम्बर 2018

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

मंच व मित्रों का हृदय से आभारी हूँ, इस लेख को श्रेष्ठ रचना का सम्मान देने के लिए व मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित करने के लिए, सादर नमन

10 दिसम्बर 2018

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

स्वागतम आदरणीय, हार्दिक धन्यवाद

10 दिसम्बर 2018

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

स्वागतम आदरणीय, हार्दिक दहन्यवद

10 दिसम्बर 2018

उदय पूना

उदय पूना

भावपूर्ण लेख के लिए, बधाई |

10 दिसम्बर 2018

रेणु

रेणु

आदरणीय भैया -- वृद्धाश्रम की उयोगिता क्यों ? ये प्रश्न बहुत ही अजीब है | माता पिताके लिए हम जो आज सोचेंगे कल वाही हमारे साथ होने वाला है ये बात जरुर याद दिलाने वाली है | अपनी कहूं तो मैं भी माता - पिता जी यानि मेरे सास - ससुर के सानिध्य में बाईस साल से हूँ | मुझे कभी बच्चों की चिंता नहीं हुई | उनके सुख मैंने हर पल अनुभव किये हैं | कभी - कभी बुजुर्ग - दिवस , मातृ- दिवस या पितृ- दिवस इत्यादि पर वृद्धाश्रम के संतान द्वारा त्यागे गये माता - पिताओं की व्यथा कथा मन को भिगो देती है | तब प्रश्न उठता है उन्होंने क्या कमी कर दे होगी अपने स्नेह ममता के बारे में ? और हम क्या खास करते हैं अपनी संतान के लिए जो हम उनसे अपने सुरक्षित भविष्य की आशा रखते हैं? हर माता पिता अपने पालन पोषण पर गर्व करता है और यथा संभव अपने बच्चों के लिए करता है | भारतीय संस्कृति में स्वेच्छा से गृह त्याग के उदाहरन तो मिलते हैं पर माता पिता को घर से दूर वृद्धाश्रम में भेजने के नहीं | वृद्धाश्रम जैसी व्यवस्था इस पर दाग के सामान है | श्रवण कुमार की भूमि पर वृद्धाश्रमों की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए | आपे विचारों से अक्षरशः सहमत हूँ | काश कोई भटका बेटा बेटी ये विचार अपनाकर भटके रस्ते से वापिस लौट आये || भावपूर्ण लेख के लिए सस्नेह बधाई |

9 दिसम्बर 2018

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गीतिका/ग़ज़ल

11 जुलाई 2016
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गीत/नवगीत विशेष, वर्षा ऋतु, श्रावण गीतिका/ग़ज़ल मन भाए मेरे बदरा,भिगा जा मुझे   छाई कारी बादरिया,जगा जा मुझे    मोरी कोरी माहलिया,मुरझाई सनम  रंग दे अपने हि बरना,रंगा जा मुझे॥  काली कोयलिया कुंहुकत,मोरी डाली राग बरखा की मल्हारी,सुना जा मुझे॥मोरा आँगन बरसा जा, रेनिर्मोहिया मोर अनारी की सारी,दिखा जा म

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“कुंडलिया”

30 अगस्त 2016
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“कुंडलिया” नाचत घोर मयूर वन, चाह नचाए ढेलचाहक चातक है विवश, चंचल चित मन गेल चंचल चित मन गेल, पराई पीर न माने अंसुवन झरत स्नेह, ढेल रस पीना जाने कह गौतम चितलाय, दरश आनंद जगावतमोर पंख लहराय, टहूंको मय लय गावत॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“राधेश्यामी छंद” (लोक आधारित छंद)

4 मई 2016
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मंच को सादर निवेदित है कुछराधेश्यामी छंद पर प्रयास..........  16-16 पर यति, मात्रा भार- 32,  पदांत गुरु, दो दो पंक्तियों मेंतुकांत , लय- जिस भजन में  राम का नाम न हो, उस भजन को गाना न चाहिए....... “राधेश्यामी छंद”   (लोक आधारितछंद)अपनापन यह अनमोल सखा, बेमोल चाह मिल जा

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“कुछ हाइकु”

23 जून 2016
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कटते बागउजड़तीधरती रूठतामेघ॥-1 लगाओपेड़ जिलाओतो जीवन बरसेमेह॥-2बरसों मेघापवन पुरवाईधरा तृप्त हो॥-3काला बादलछाया रहा घनेराआस जगी है॥-4नहीं भूलतीवो बरसाती रातबहता पानी॥-5बहा ले गईभावनाओं को साथशिथिल पानी॥-6धरती मौनगरजता बादलपानी दे पानी॥-7   देखो तो आजचली है पुरुवाईबदरी छाई॥-8  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुर

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कजरी गीत

27 मई 2016
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एक कजरी गीत........चित्र अभिव्यक्ति परझूला झूले राधा रानी, संग में कृष्ण कन्हाई ना कदम की डाली, कुंके कोयलिया, बदरी छाई नाझूले गोपी ग्वाल झुलावे, गोकुला की अमराई विहंसे यशुमति नन्द दुवारे, प्रीति परस्पर पाई ना॥गोकुल मथुरा वृन्दावन छैया रास रचाई ना छलिया छोड़ गयो बरसाने, द्वारिका सजाई नामुरली मनोहर रा

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“हाइकु”

18 अप्रैल 2016
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एव मंच को सादर निवेदित है “हाइकु”वो पहाड़ है तमतमाया हुआ मानों हिला है॥ धूल उडी है आस पास बिखरी हवा चली है॥ हलचल है अंदर ही अंदर शुष्क नमी है॥ सड़क पर औंधे मुंह गिरा है जहां जमीं है॥ निकलेगा वो कारवां लिए हुएशिला चली है॥रोक लो उसे गिरते ही उठेगी खलबली है॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“भीगता आदमी” मुक्त काव्य

27 जुलाई 2016
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“भीगता आदमी”बरसात में यह कौन है?जो कुंडी खटखटा रहा है  देखों तो कौन बेअदब  अभी पानी भीगा रहा है॥ कटकटा रहा है दाँत उसकान जाने क्या सुना रहा है?बुला लो अंदर उसको जो अपनी ठंड हिला रहा है॥ दे दो किसी पुराने पड़े हुये कपड़ेको  कह दो निचोड़ दे तरसते हुये पानी को साथ में दो रोटी भी देना उसे बासी घसीट कर लाया

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“गज़ल, गुबार मेरे”

17 मार्च 2016
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“गज़ल, गुबार मेरे”जब अपना कोई होता नहीं, इर्द गिर्द यार मेरे पहुँच जाता हूँ गाँव अपने, दूर रख गुबार मेरे उठा लाता चौबारों में, छिटके हुये दीदारों कोगमों के पहाड़ उड़ा जाते, बचपनी बयार मेरे॥ टहलते हुये मिल जाते, घरघर के आदर्श जहाँ बैठी मेरी माँ मिल जाती, गुजरी हुई द्वार मेरे॥ बचपन के मीत मिलते, भूलेबिसर

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संस्मरण

20 मई 2016
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संस्मरण-गांवऔर आभाव दोनों का गहरा नाता रहा है। अब ऐसे परिवेश में क्या संस्मरण और कैसी यादें, जिंदगी रोटीसे शुरू होती है और रोटी पर समाप्त हो जाती है। हाँ आज कुछ परिवेश बदला जरूर हैंफिर भी रोटी, रोजी और माथे पर एक ओढना कर पाना, कइयों कास्वप्न आज भी दिवास्वपन बनकर हलाल जरूर हो रहा है। बहुत ही पुरानी ब

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"भक्ति गीत"

26 मार्च 2016
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"भक्ति गीत"प्रभो तुमको यादो में पाने लगा हूँखुद को मै खुद ही भुलाने लगा हूँनहीं जानता मेरी मंजिल किधर हैहर गली तेरी मूरत सजाने लगा हूँ ।।न देखा तुझे न मंजिल पर ठहरान मुखड़ा दिखा मै लुभाने लगा हूँ ।।न स्वर ही सुना न शिकवा है कोईमगर राह तेरी गुनगुनाने लगा हूँ ।।पुलिंदा लिए जाऊं दर है अनेकोन उठता वजन भा

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"दोहा मुक्तक"

16 जून 2016
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शब्द/शीर्षक मुक्तक आयोजन शब्द- उपाय - युक्ति, साधन, तरकीब, तदबीर, यत्न, प्रयत्न"दोहामुक्तक"उपाय तो बहुते हैं, करो युक्ति मन लायसाधन है सुविधा लिए, यत्न प्रयत्न बनायतरकीब तदबीर मिले, नए सोच संचारकर्म धर्म साथी निभे, दुनियां सहज सुभाय।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"ग़ज़ल"

13 जून 2016
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"ग़ज़ल"निगाहों में सबके निठल्ला रहा जोहुनर वही सभी को सिखला रहा है बताएं क्या कैसी वो सोहबत रहीछोड़ आएं नगर तो झुठला रहा है।।बहुत चाह होती की लौटूं गली में मन सिकुड़ा है ऐसे घृणा ला रहा है।।घिसती रही राह बचपन में जिनसेमोड़ वो पुराना फिर से बुला रहा है तमन्ना पुरानी जुड़ती जा रही अबगुमसुदाई का दौरा कुलबुला

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"कुंडलिया छंद"

13 अप्रैल 2016
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मंच को सादर निवेदित है कुंडलिया छंद......."कुंडलिया"गर्मी का है बचपना, जीवन हुआ मोहालअभी जवानी देखना, बाकी है दिन लालबाकी है दिन लाल, दनादन पारा चढ़तामौसम है बेहाल, दोपहर सूरज बढ़ताकह गौतम कविराय, पेड़ पौधों में नर्मीझुके हुए कुमलाय, कपारे चढ़ती  गर्मी।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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कुण्डलिया छंद

30 जून 2016
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 एक कुण्डलिया छंद........  मन मयूर चंचल हुआ, ढ़फली आईहाथ प्रेम प्रिया धुन रागिनी, नाचे गाए साथ नाचे गाए साथ, अलौकिक छवि सुंदरता पिया मिलन की साध, ललक पाई आतुरता कह गौतम कविराय,कलाकारी है कर धनमंशा दे चितराय, सुरत बसि जाए तन मन॥  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी  

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"कुंडलिया छंद"

9 मार्च 2016
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“कुंडलिया छंद”गर्व सखा कर देश पर, मतरख वृथा विचारमाटी सबकी एक है, क्यों खोदें पहारक्यों खोदें पहार, कांकरा इतर न जाए किसका कैसा भार,  तनिक इसपर तो आएं कह गौतम कविराय, फलित नहीं दोषित पर्व विनय सदैव सुहाय, रखो नहीं झूठा गर्व॥महातम मिश्र (गौतम)

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गीतिका छंद

18 जुलाई 2016
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गीतिका छंद, 2122, 2122, 2122,212मोहना तोरी बंसी है, चाह चित मोरी बसीचोरजाते हो कन्हाई, राग सखियों की हंसी।बाढ़ यमुना की चढ़ी है, डूब जाती आस जी सूनलागे रात कारी, नट नचाओ रास जी।।महातम मिश्र,गौतमगोरखपुरी

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“दोहा मुक्तक”

26 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है एक दोहा मुक्तक............“दोहा मुक्तक”इच्छा हैकि आज बने, लिट्टी चोखा दालमित्र मंडली साथ में, जमकर होय निहाल बैगन आलूका भरता, लालटमाटर चटनीसाथ में प्रभु किर्तन हो, अभिलाषा खुशहाल॥  महातममिश्र, गौतम गोरखपुरी   

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&quot;पल्लवी का पल्लू&quot;

17 अगस्त 2016
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"पल्लवी का पल्लू"  यूँ तो कई बसंत देख चुकी है पल्लवी, पर एक भी बसंत उसके जीवन में उत्साह न भर सका। आज वह पैंतीस के चौपाल पर खड़ी है। शायद खुद से पूछ रही है की मेरा बसंत कहाँ है और खुद को जबाब नहीं दे पा रही है। बला की खूबसूरती लिए हुए, हर पल-कुपल को जबाबदारी के साथ सरका रह

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"ग़ज़ल"

6 फरवरी 2016
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सादर शुभदिवस आदरणीय मित्रों, एक ग़ज़ल आप सभी को सादर निवेदित है, आभार"ग़ज़ल"चलो आज फिर से, लिख लेते पढ़केकिताबों के पन्नों में, खो जाते मिलकेकई बार लिख लिख, मिटाई इबारतअब न लिखेंगे जो, मिट जाए लिखके ।।बचपन की पटरी, न पढ़ती जवानीबहुत नाज रखती, नशा नक्श दिलके ।।कहरहा तजुरबा, वक्त की नजाकतमिलती न शोहरत, न मि

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“कर्म ही फल बाग है”

7 सितम्बर 2016
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एक मुक्त काव्य............ भाग्य तो भाग्य है कर्म ही तो फल बाग है बारिश के जल जैसा थैली में भर पैसा ओढ़ ले पैसा ओढ़ा दे पैसा पानी के जैसा बहा दे पैसा किसका अनुभाग है कर्म ही तो फल बाग है॥ कुंए का जल है परिश्रम बारिश का नहाना बिना श्रम भाग्य में यदा-

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"शायद वह जा रही थी"

21 मार्च 2016
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“शायद वह जा रही है” शायद वह जा रही थी॥ मुड़ मुड़ कर उसका देखना ठिठक कर रुकना फिर पैरों पर चलनाकिसे दिखा रही थी शायद वह जा रही थी॥ बंद दरवाजे को खोलना उसका  कुछ बोलना उसका उसको सुने बिना ही पग आगे बढ़ा रही थी शायद वह जा रही थी॥ काँटों से दूर  चाहत से दूर दामन में अपने  कुछ रख छुपा रही थी शायद वह जा रही

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“गज़ल” (आज धीरे से)

20 मई 2016
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“गज़ल” (आज धीरे से)लगा है ज़ोर का झटका, चमन को आज धीरे से परिंदों की उठी आवाज, स्वरों मे दम मजीरे सेपत्तों का वजन कितना, जरा उस डाल से पुछो हिले है साख साखों से, महज कुछ ही नजीरे से॥ जल छोड़ा न थल छोड़ा, न नभ छोड़ा बताओ तो रसातल ले गए धरती भला, तुम किस जखीरे से॥ न कलरव हुआ न शोर ही, वह उड़ गई चिड़ियालगा दो

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"कुण्डलिया"

26 फरवरी 2016
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चित्र अभिव्यक्ति मेंआप सभी का हार्दिक स्वागत है सादर सुप्रभात मित्रों........“कुंडलिया छंद”माँ बसंत मैं देख लूँ, आई तेरी कॉखदेख पतझड़आयगा, नवतरु पल्लव शौखनवतरू पल्लव शौख, मातु मैं कली बनूँगीपा तुमसा आकार, धन्य मैं बाग करूंगी कह गौतमकविराय, भ्रूण भी कहता माँ माँ हरियाली लहराय, कोंख से पुलकित है माँ॥ म

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"पद"

13 जून 2016
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मोहन का तकि चित विसरायोंमथुरातजि गोकुल में आयो, पा तोहीदुलरायों।जतनकियों जस मातु देवकी, किलकारीसुनि धायो।। माखनमिश्री घर घर गोकुल, लखि चखिदहिया खायो।भोरप्रात गैयन ले मोहन, जल यमुनालहरायो।।काहेंके छोड़ि गयो कछारी, रासद्वारिका आयो।विनतीकरूँ बहुरि फिरि आओ, वृन्दावनअकुलायों।।काहेंमोहन रूठ गए हो, मुरली वि

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"दोहा"

30 मार्च 2016
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नव वर्ष की हार्दिक  शुभकामना……… “दोहा”विक्रम संवत वर्ष पर, वर्षाभिनंदन भाय शुक्ल प्रतिपदा चैत्र से, माँ वंदन शोभाय॥ नवरात्रि श्रद्धा सुमन, कंकू चंदन छाय जय हो रामनवमी की, दशरथ नंदन राय॥महातम मिश्र (गौतम)

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"दोहा"

16 जून 2016
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"दोहा"कैसेकहूँ महल सुखी, दिग में ख़ुशी न कोयबहुतायतीअधीर है, रोटी मिले न भोय।।-1मुट्ठीभरते लालची, अपराधी चहुँ ओरकोनाकोना छानते, लेते मणी बिटोर।।-२दूधोंवाली गाय को, करते सभी दुलारदूधनहीं दाना नहीं, चला करे तलवार।।-3निर्ममहत्या बहुबली, कला करें सरकारमथुराकाशी कोशला, कैसे हैं लाचार।।-4पूतकपूत को तौलते,

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"पद"

15 जून 2016
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"पद"कान्हा अब तो धरा उबारोआओ देखों मीन पियासी, ताल तलैया खारो।बूंद बूंद को तरसत धरती, फिर मानव तन धारो।।बैर बढ़ा के खैर तलाशे, वहि कंसा को मारो।माधव नारी वारी हारी, हिय करुणा हुक्कारो।।मानों परवत हुआ अधीरा, छा छवि वाहि निवारोमहातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"कुण्डलिया"

8 अप्रैल 2016
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विक्रम संवत नववर्ष की बधाई , चैती नवरात्र की मंगलमयी शुभकामना आदरणीय विद्वतगण ..... चित्र अभिव्यक्ति“कुंडलिया”तीन पीढ़ियाँ मिल रहीं,, नाती बेटा बाप कितना सुंदर सृजन है, नैना हरषे आप नैना हरषे आप, अंगुली पकड़ के चलना तुतली बोली थाप, ठिठक कर बाबा कहना कह गौतम कविराय, हृदय में बाजते बीन देखत मन हरषाय, मि

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"महंगाई"

22 जून 2016
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एक मुक्त काव्य........."महंगाई"लो कर लो बात कहते हैं मंहगाई हैआखिर पूछो तो ये कहाँसे आई है खेतों में उगने लगेईटों के पौध पेड़अरहर मटर में कहाँ रसमलाई है।।सात सौ किलो की मीठी मिठाई हैएक सौ बीस की दालचतुराई है उगाए किसान गैर लगाएमिर्च तड़काकड़ाही में तेल घर उसकेमनाई है।।जखीरा जमाखोरी माल उतराई है दूध दही

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"चौताल"

5 मार्च 2016
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 फागुन के उल्लास पर एक चौताल का नया सृजन, आशीष की अपेक्षा लिए हुए, आप सभी आदरणीय मित्रों को सादर निवेदित है.........."चौताल"फागुन को रंग लगाय गई, पनघट पट आई पनिहारिनरंग रसियन चाह बढ़ाय गई, गागरिया लाई पनिहारिननिहुरि घड़ा अस भरति छबीली.................................मानहु मन बसंत डोलाय गई, पनघट पट आई

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"ग़ज़ल"

28 जून 2016
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"ग़ज़ल"रातों की रानी ने कैसी अलख जगाई है चंचल कलियों में मादकमहक पिराई है बागों का माली चंहकेचंपा चमेली संग रातरानी ने घूँघट पट कोसहज उठाई है।।मंद मंद माँद से निकलतेहुए कुछ मणिधर लिपटने को आतुर रातरानीभरमाई है।।खतरों से खेले है चाहपंनग शिकारी सी गफलत की झाड़ी में छाँहसरक उग आई है।।हरी हरी डाली श्वेतपुष

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"स्तुति"

15 अप्रैल 2016
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“स्तुति”दशरथ नन्दन अवध बिहारी, आय गए प्रभु लंका जारी धन्य धन्य है मातु कोसल्या, सीता सहित आरती उतारी॥ कोशल कवन भांति दुलराऊँ, हनुमत हिय सिय ढिग बैठारीलहेऊ लखन कर चूमत माथा, साधि पुरावति सब महतारी॥भरत भूआल सत्रुघ्न लखि लखि, चारिहु ललन वारि ले वारी सरयू तट माँ महा आरती, मिलही प्रजा प्रभु दरश निहारी॥ च

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कुछ हाइकु.......

4 जुलाई 2016
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कुछ हाइकु....... 1-आई बरखा नाचती गाती गोरी  वन में मोर॥ 2-पानी पानी है चहु दिश बदरी पी चितचोर॥ 3- लजाये नैना भीगत पट सारीवा मनमोर॥ 4-दर दूर से  गागर भरी लाई छलके कोर॥ 5- चाह मिलनसावन पिय पाई न कर शोर॥6-उड़े विहग भीजत घर वारीटपके पोर॥ 7-धरी कठौता बूंद जतन करूँ चातक लोर॥ 8-साध सगुन किलके किलकारीनाचत घो

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“चेहरा”

1 फरवरी 2016
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सादर सुप्रभातआदरणीय मित्रों, एक और रचना आप सभी सादर निवेदितहै....... “चेहरा”घनाअंधेरा छाया देखों अंतर्नाद मलिन हुआ रत्तीभर चिंगारी से हर चेहरा अब खिन्न हुआकहते थे ये आतंकी हैं पुरे जगत के अपराधी मानवता की हत्या है चेहरा नकाब से भिन्न हुआ॥ महातम मिश्र   

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राधा छन्द

12 जुलाई 2016
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राधा छंद पर नवीन प्रयास........। विधा -- वाचिक राधा छन्द, मापनी ---2122 2122 2122 2“वाचिक राधा छंद”फिर चली है आज आँधी, जुल्फ लहराई। हुश्न हाबी हो रहा है, चाह चितराई।देखना इन बादलों को, ये बरसते हैं। भीग ना जाये दया मन, जो लहरते हैं॥चल पड़ी है आज पूर्वी, पवन सुखदाई। शोर भी करने लगी है, ठंड पुरवाई। हौस

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“कुंडलिया”

22 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है कुंडलिया........“कुंडलिया”पौध पेड़ होता नहीं, जबतक लगे न हाथ अंकुर होता बीज है, पाकर माटी साथ पाकर माटी साथ, पल्लवित होता है तरु दाना दाना बीज, किसान रोपता है धरुकह गौतम कविराय, ना पेड़ों को अब रौद छाया कर समुदाय, उगाकर धरोहर पौध॥महातम मिश्र, गौत

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“आज मैं लाचार हूँ”

21 जुलाई 2016
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गुरुवार- चित्र अभिव्यक्ति आयोजन“आज मैं लाचार हूँ” आज मैं लाचार हूँ, उम्र की दहलीज पर बन सखी मेरी खड़ी, वैसाखी शरीर परभार मेरा ढ़ो रही, शय समय की चाकरीमाँ बनी बेटी पुतर, जीव है उम्मीद पर॥ देखता हूँ जब इसे, तो आँखें भर जातीउम्मीद का सामना, दामन पकड़ा जातीकुढ़ती है खत मेरी, हर पल शीसकती हैचाहता पढ़ ले मुझे,

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"ग़ज़ल"

13 मार्च 2016
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"गज़ल"कभी कभी तो पतझड़ भी, पुलकित करता है वन उपवनकभी कभी तो बिन बरखा, दिल झूम  के गाता है सावनआज पुरानी राग ए जिय, लय मचला तो तूफान उठायौवन जीवन प्यारी छाया, मुंह मोड़ के तपता है मधुवन।।एक बार मुड़कर देखों, उन राहों में खेलता बचपन थायौवन भी था उन्माद लिए, सम्मान सजता है चाहचमन।।हर उम्र सलीके से आती, हर

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गजल/गीतिका

5 अगस्त 2016
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गीत/नवगीत/तेवरी/गीतिका/गज़ल आदि आयोजन, के अंतर्गत आज- नवगीत विशेष आयोजन पर एक गजल/ गीतिका, मात्रा भार - 24, 12-12 पर यति...........देखों भी नजर उनकी, कहीं और लड़ी है सहरा सजाया जिसने, बहुत दूर खड़ी है गफलत की बात होती, तो मान भी लेते लग हाथ मेरी मेंहदी, कहीं और चढ़ी है॥ये रश्म ये रिवाजें, ये शोहरती बाज

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"ग़ज़ल"

30 अप्रैल 2016
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मंच को सादर निवेदित है एक ग़ज़ल............212 212 212 212तर्ज- हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम"ग़ज़ल"तुम न आते न मौसम बदलता सनमदूर बादल कहीं रुक बरसता सनमआह भरती रही ये बिजुरया चमकश्वांस मेरे न बादल गरजता सनम।।तुमहि मेरे सबर के हो अभिराम जी पास आओ जरा गम सुलगता सनम।।देख

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“मुक्तक”

30 अगस्त 2016
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प्रदत शीर्षक- दर्पण ,शीशा ,आईना,आरसी आदि “मुक्तक” शीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतें तहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“दोहा-मुक्तक”

12 जनवरी 2016
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मंचको सादर निवेदित है एक शीर्षकमुक्तक --आक्रोश/ क्रोध “दोहा-मुक्तक” ------क्रोधी लोभी लालची,बिन मारे मरि जाय कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय आक्रोश जस जस बाढे, तस बाढ़े उत्पातमहिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरतापाय ॥ महातम मिश्र 

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दोहा “मुक्तक”

31 अगस्त 2016
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प्रदत शीर्षक- अलंकार, आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर दोहा “मुक्तक” गहना भूषण विभूषण, रस रूप अलंकार बोली भाषा हो मृदुल, गहना हो व्यवहार जेवर बाहर झाँकता, चतुर चाहना भेष आभूषण अंदर धरे, घूर रहा आकार॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

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“कुण्डलिया छंद”

11 मई 2016
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काँटों भरी न जिंदगी, काँटोंभरा न ताजमाँ धीरज रख निकालूँ, पैरन तेरे आज   पैरन तेरे आज , कभी नत पीड़ा होगीलूँ काँटों को साज, दुखों से दूर रहोगीकह गौतम कविराय, उम्मीदों को न पाटोंभार गोद अकुलाय, डगर नहि बावों काँटों॥  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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“गज़ल” (मन मनाने लगी)

12 मई 2016
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मंचके समस्त सुधीजनों केसमक्ष प्रस्तुत है एक गज़ल......... “गज़ल” (मन मनाने लगी)वो जमीं प्यार की, याद आने लगी वीणा बिनतार ही, कुनमुनाने लगी किस धुन पे चढ़ी, बावरी झुनझुनी अंगुलियाँ आपही, मनमनाने लगी॥ न मौसम कोई, न कोई रागिनीये फिज़ाएँ अलग, गुलखिलाने लगी॥बेवफा बादलों की, घुमड़ती चलन बेमौसम की बदरी , छमछमान

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“कुण्डलिया छंद”

24 फरवरी 2016
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सादर शुभप्रभातमित्रगण, आज आप सभी को सादर निवेदित है एक कुण्डलिया छंद.............. “कुण्डलिया छंद”मन जब मन की ना सुने, करे वाद प्रतिवादकुंठित हो विचरण करे, ताहि शरण अवसाद ताहि शरण अवसाद, निरंकुश बैन उचारे  लपकि करे अपराध, हताहत रोष पुकारे कह गौतम कविराय, न विकृति बोली सज्जन बिन वाणी अकुलाय, विहंगम ह

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“विनती”

20 मई 2016
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शीर्षक मुक्तक, प्रदत्त शब्द- श्याम/कृष्ण सम्भावीमुक्तक, मात्राभार-16-16=32 “विनती”हे प्रिय माधव कृष्ण मुरारी, सुन श्याम सखा गिरधारी तुम हो आलम गिरिवरधारी, मन छा गए सुदर्शनधारी सुन लो विनती यशुमति नंदा, गोकुला हियो नट गोविंदा दहि-माखन गोपियन जुठारी, सुधिया हमरी लो बनवारी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी  

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"चौताल फ़ाग गीत"

24 मार्च 2016
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सादर शुभ दिवस आदरणीय मित्र महोदय/ महोदयापावन होली के शुभ अवसर पर आप को एवं आप के समस्त परिवार को, मेरे और मेरे समस्त परिवार के तरफ से हार्दिक बधाई, शुभकामना और प्रकृति के हर अनुपम रंग प्यार........"चौताल" फ़ाग गीतपट धानी चुनर सरकाओ, लली तोहें रंग डालूंचित चंचल नैन चलाओ, लली रंग अंग डालूंनिली पिली भरि

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"पद"

26 मई 2016
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मंच के सम्मानार्थ प्रेषित एक पद काव्य........."पद"ऊधौ बांचो राग विरागाजतन कियो कपटी मन साधा, चित न चढ़ो अनुरागा।पाई पाई जोड़ा तिनका, तासो तमस चिरागा।।बहुत चाह से रखा शरीरा, पहिरायो मन धागारोज सुबह इठलाये मनवा, काँव काँव कर कागा।।पिया न आए ठौर ठिकाने, सौतन पर हिय लागाउनहि कोइ उपचार बताओ, ऊधौ जिय ले भाग

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कुण्डलिया छंद

15 जनवरी 2016
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सादर शुभ दिवस, एक कुण्डलिया छंद आप सभी को सादर निवेदित है.........गंगा यमुना सरस्वती, संगम है प्रयागसूर्याभिषेक मकर में, तर्पण अहोभाग्यतर्पण अहोभाग्य, गंग ही पूर्वज तारेदुःख क्लेश नियराय, न कोई रौनक जारेकह गौतम कविराय, अनूठा पर्व विहंगाजल जीवन है भाय, स्वच्छ हो पूजित गंगा ।।महातम मिश्र

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"पद"

31 मई 2016
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"पद"बनवारी यह तोरी मायासाथी सखा तबहिं मन भाए, जब हो तुमरी दाया।लपट कपट काके मन नाहीं, दिय हरि कमली काया।।करम धरम की बेड़ी लागी, तापर प्रेमी छायालोभ क्रोध चिंता का ताला, चाभी मोहक माया।।कस खोलूं आपन दरवाजा, बिनु आहट के भायाकुण्डी मोर बजाओ मोहन, दरशन दो हरि राया।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"कर प्रण सपथ"

28 मार्च 2016
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“कर प्रण सपथ” कर प्रण कर प्रण कर प्रण करप्रण सपथ हर बेटा माँ भारती का चलता उसके पथ वह मुंह कैसे बोलेगा जो बना हुआ है घून बंटा हुआ विचार लिए खींचता गैर का रथ॥बेचा जिसने नारोंको विचारोको त्योहारोंकोचले भंजाने मूर्ख वही माँ के जयकारों कोकहते हैं लिखा नहीं भारत के संबिधान मेंभारत माँ की जय कैसे देदूँ मै

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“दोहा मुक्तक”

13 जून 2016
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शब्द ''कच - बाल, केश, कुन्तल, चिकुर, अलक, रोम, शिरोरूह आदि '' पर चपला केश जस भ्रमर, उभरे पुलकित रोमशोभा मुख मण्डल दिखे, चाह बरसे व्योमअलक पलकघेरे रहे, बालहाल अतिनेह चन्द्रमुखीविहंसे डगर, वारि धारअनुलोम॥ महातममिश्र, गौतमगोरखपुरी

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"हिरनी"

28 फरवरी 2016
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सादर शुभदिवस, मंच को सादर निवेदित है एक कहानी........“हिरनी"      एक दिन एक हिरनी जंगल में अपने झुंड से अचानक बिछड़ जाती है। घबराई हुई, डरी हुई, बेतहासा दौड़ते-दौड़ते वह नन्हीं हिरनी जंगल के उस छोर पर आ खड़ी होती है जहां से मनुष्यों की बस्ती यानि की फ़सली मैदानी भाग शुरू होता है। नया दृश्य देखकर वह और भी

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“दोहा मुक्तक”

13 जून 2016
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कान्हा जल यमुन तीर, तट सखिया अधीरनाव लगे काहि किनार, घुमत बनिके फकीरहाहाकार हर कगार, निश दिन छाए रारबड़े बड़े मच्छा मगर, हरडगर नर नजीर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी      

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"कुंडलिया"

1 अप्रैल 2016
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चित्र अभिव्यक्ति पर सादर प्रेषित एक कुंडलिया..............................."कुंडलिया"चला लक्ष्य नभ तीर है, अर्जुन का अंदाजसमझ गया है सारथी, देखा वीर मिजाजदेखा वीर मिजाज, दिशाएं रथ की मोड़ीलिए सत्य आवाज, द्रोपदी बेवस दौड़ीकह गौतम कविराय, काहि महाभारत भलाघर में नहि पोसाय, तीर दुश्मनी तक चला।।महातम मिश्र

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“कुण्डलिया छंद”

15 जून 2016
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“कुण्डलिया छंद”पुत्तरखुश पंजाब दा, बोल सतश्री अकाल आइलोहड़ी झूमती, भांगड़ा खुश खुशाल  भांगड़ाखुश खुशाल, पाँवथिरकत देतालीफसल हुई तैयार, न कोई घर है खाली कह गौतम कविराय, न कोईप्रश्न न उत्तर हुआ किसान निहाल, नचाओ गावोपुत्तर॥महातममिश्र, गौतम गोरखपुरी      

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"बाग़ बिन पर्यावरण"

15 जून 2016
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"बाग़ बिन पर्यावरण"बुजुर्गों ने अपने हाथों से बाग़ लगाया था गाँव के चारों ओर, याद है मुझे। मेरा गांव बागों सेघिरा हुआ एक सुन्दर सा उपवन था।कहीं से भी निकल जाओं, फलों से मन अघा जाता था। महुआ, जामुन मुफ़्त में मिल जाते थे तोआम, आवभगत के रसीले रस भर देते थे। शीतल हवा हिलोरें मारती थी तो बौर के खुश्बू, हर

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"कुंडलिया"

6 अप्रैल 2016
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“कुंडलिया”मन कहता काला करूँ, काले धन की बातपर कितना काला करूँ, किससे किससे घात किससे किससे घात, कहाँ छूपाऊँ बाला हर महफिल की शान, सराहूँ कैसे हाला कह गौतम कविराय, कलंकित है काला धन जल्दी करों उपाय, नहीं तो मरता है मन॥महातम मिश्र, गौतम

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पिरामिड

16 जून 2016
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पिरामिड 1॰ये पेड़ खड़े है कटेंगे क्या नजर लगी कुछ तो बात है छाया देंगे घर को॥ 2॰लो सूखरहा है ड़र गया कट जाएगा बेकार हो गया मरती हरियाली॥ 2महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"गीत- नवगीत"

3 मार्च 2016
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सादर शुभप्रभात, सादर निवेदित है एक रचना आशीष प्रदान करें ......... “गीत-नवगीत”गीत कैसे लिखूँ नाम तेरे करूँ  शब्द शृंगार पहलू समाते नहींकिताबों से मैंने भी सीखा बहुतहुश्न चेहरा पढ़ें मन सुहाते नहीं॥....... गीत कैसे लिखूँ ........ ये शोहरत ये माया की मीठी हंसीलिए पैगाम यह चुलबुली मयकसी होठ तक सुर्खुरु

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ग़ज़ल

22 जून 2016
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"भटकन"सुन रीबावरी सुन किधर जा रही हैयेगली वो नहीं तूं जिधर जा रही है लौट आ महलों को उठाए है बेसबरख़्वाबों की जिंदगीकब बेपीर रही है।।हकीकत से दूर किसे तलाशती है गैरे महफ़िल किसकी अमीर रही है।।परछाइयाँ किसे धनवान बना गईं हैंरातों से पूछ किसकी जागीर रही है।।जेहन पर कर्ज मर्ज गर्ज तो सबके हैधीरज की बूटी अ

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"हाइकू"

11 अप्रैल 2016
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“हाइकू”तुक बंद है कविता पसंद है वाह रे वाह॥ -1 लिखता हूँ मैंपढ़ता कोई और आह्लाद है न॥– 2 साहित्य साथीबड़े बड़े महारथी शब्द चैन है॥– 3गुम होते हैं गुमनाम भी हैं ही कवि है कवि॥– 4 छाप छापते पन्नो पर पन्ना है खूब सजाते॥– 5 खुश हो जाते मन ही मुसुकाते कहाँ अघाते॥- 6लिख जाते हैं शब्द की चाह बढ़ा रास्त दिखाते॥

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दोहा मुक्तक

22 जून 2016
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विधा-- दोहा मुक्तक झुंड लिए खग उड़चला, स्वच्छ देख अकाश दूर देश नभचर विहग, ढूंढ रहाप्रकाश प्राण पखेरूविकल है, असमंजस का दौर कत उड़ जाऊँ थिर रहें, टूट रहा विश्वास॥महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी  

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"कुण्डलिया"

30 जनवरी 2016
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सादर शुभ दिवस प्रिय मित्रों, एक कुण्डलिया छंद आप सभी को सादर निवेदित हैइस बार मौनी अमावस्या दिन सोमवार को है जिसका एक अलग ही महात्म्य है अतःइस पावन पर्व को मनन करते हुए यह रचना आप सभी को सादर प्रस्तुत है । प्रयाग संगम में आप भी हमारे साथ माँ गंगा जी में श्रद्धा की डुबकी लगाएं------------------------

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“गज़ल”

24 जून 2016
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एक रचना आप सभीके समक्ष प्रस्तुत है सादर सुझावआपेक्षित………..“गज़ल” बेढंगी उँगली को लिखना सिखाया आप ने  ककहरे की बारहखड़ी भी बताया आप ने  अब कलम चलने लगी है कागजों पर बिनरुके  कह तजुरबे की कहानी भी सुनाया आप ने॥ शब्द है जुडने लगे मिले अक्षरों के पारखी  बहस करते तोतले भाषण सुनाया आप ने॥ आप तो उस्ताद है स्

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"गीतिका"

13 अप्रैल 2016
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विधाता विधा-- गीतिका मापनी --1222. 1222 1222. 1222,“गीतिका”महक उठता सुखा उपवन तरलता पास आने पर।निगाहें भी छलक जाती मधुरता हाथ आने पर॥ बहुत देखा जमाने को बिठाया दिल वीराने में। कहीं से चाह ना आई दिले दिलदार जाने पर॥ खुली खिड़की खड़कती है हवावों की भनक पाते। दीवारों से लिपट जाती जरा सी राह पाने पर॥मरहला

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“दोहा”

28 जून 2016
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“दोहा” हरिहर अपने धाम में, रखेंभूत बैताल गणपति बप्पा मोरया, सदा सर्वखुशहाल॥-1बाबा शिव की छावनी, गणपतिका ननिहाल धन्य धन्य दोनों पुरा, गौरामालामाल॥-2 शिव सत्य वाहन नंदी, डमरूनाग त्रिशूल भस्म भंग सह औघड़ी,मृगछाला अनुकूल॥-3 महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी  

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"कंहरवा तर्ज"

7 मार्च 2016
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 मंच को सादर प्रस्तुत है एक शिवमय रचना, आप सभी पावन शिवरात्री पर मंगल शुभकामना, ॐ नमः शिवाय"कंहरवा तर्ज पर एक प्रयास"डम डम डमरू बजाएं, भूत प्रेत मिली गाएंचली शिव की बारात,  बड़ बड़ात रहिया।नंदी नगर नगर,  घुमे बसहा बयलसंपवा करे फुफकार, मन डेरात रहिया।।गलवा सोहे रुद्राक्ष, बासुकी जी माल भालसथवां मुनि ऋष

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"लावणी छंद"

4 जुलाई 2016
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"लावणी छंद"सुबह सुबह जप हरी का नाम, दिन और रात . ....सुधार लेहोयप्रभु की महिमा न्यारी, सुलहा.....सीख.......उधारले।।महल अटारी धरि रह जाए, नाता.......रिश्ता दुवार लेअंतसमय का साथ अकेला, अविनाशी को पुकार ले।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"ग़ज़ल"

16 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है एक ग़ज़ल...........पाकिस्तान को सन्देश.....भाई मेरे........भटके को राह मिल जाती डूबते को थाह मिल जाती कदम एक नहीं चला पाए कैसे तुम्हें पनाह मिल जाती।।तजुर्बा कहता है पूछो जराकिसे मुफ़्त सलाह मिल जाती।।कब गुनाह का जुदा घर होताछुपी जिश्म गुनाह मिल जाती ।।खुद गिरकर निचे उठोगे कैसेन

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“दोहा मुक्तक”

6 जुलाई 2016
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प्रदतशीर्षक-  सिंह- केसरी, शेर, महावीर, हरि, मृगपति, वनराज, शार्दूल, नाहर, सारंग, मृगराज “दोहा मुक्तक” हे सारंग नाहर हरि, सिंह शेरमृगराज महावीर मृगपति महा, केसरियावनराज राष्ट्रीय वनचर महिप, शूर बीरपहचान जंगल में मंगल करो, कुनवा घटेन राज॥महातम मिश्र, गौतमगोरखपुरी  

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“कुण्डलिया छंद”

8 जनवरी 2016
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सादरसुप्रभात मित्रों, आज युवा उत्कर्ष साहित्य सचित्र रचनाआयोजन में एक कुंडलिया छन्द प्रस्तुत किया जो आप सभी का आशीष चाहती है …… “कुण्डलिया छंद”ठंढी गई आकाश में, तितली गई पातालचारुलता चंचल तितली, कण पराग बेहाल  कण पराग बेहाल, समझत बच्चा नाही तितली का उपहार, दिखाऊँ कैसे वाही कह गौत

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एक परिदृश्य ......

11 जुलाई 2016
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एक परिदृश्य ......अजीब अजीब दृश्य देखने को मिल जाते हैं झरनों, पहाड़ों, झील व कंदराओं में, हैरत की बात नहीं हैअजायबी से भरी है प्रकृती की गोंद। शायद इसी लिए लोग बाग घूमने के लिए, मन बहलाव के लिए, यदा कदा ऐसी जगहों परछुट्टी बिताने के बहाने मनोरंजन की शैर पर निकल जाते हैं। जहाँ से न जाने क्याक्या देख स

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"दोहा"

20 अप्रैल 2016
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मंच के सम्मान में प्रस्तुत है कुछ दोहे......"दोहा"कटिया लगभग हो गई, खेत हुए वीरानजूंझ रहा किसान है, सन्न हुआ खलिहान।।-1नौ मन ना गेहूं हुआ, ना राधा कर नाचकर्जे वाले आ गए, लिए लकुड़िया साच।।-2मरता कहाँ किसान है, मरता उसका नीरखेतों में वह लाश है, उसको कैसी पीर।।-3पानी में सड़ता रहा, पानी उगता धानबिन पानी

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“दोहा मुक्तक”

14 जुलाई 2016
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“दोहा मुक्तक” (शीर्षक- ताल,सरोवर, पोखर ,तड़ाग ,तालाब)ताल तलैया भर गए, बहे सरोवर वाढ़ कहि सुखी सी बादरी, वर्षा तड़क अषाढ़हाहाकार मचा रहे, पोखर अरु तालाब तक रही बखरी मेरी, चिंता कसक कुषाढ़॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"कुंडलिया छंद"

11 मार्च 2016
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 सादर निवेदित एक कुंडलिया छंद........"कुंडलिया"तुलसी आँगन में रहें, सदा करे कल्याणदूध पूत स्वस्थ रहें , रोग करे प्रयाणरोग करे प्रयाण, सुन्दर चेहरा दमकेरख विवाह की साध, महीना कातिक चमकेकह गौतम कविराय, अलौकिक महिमा तुलसीविष्णु प्रिया सुहाय, प्रभु संग पूजित तुलसी।।महातम मिश्र (गौतम)

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मुक्त काव्य

18 जुलाई 2016
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मुक्त काव्य, मात्रा भार- 22  सुबह होती है तो शाम भी होती हैअसल चेहरों से पहचान भी होती हैपर मन तो मन की मानता साहब अवगुणी से कहाँ राम राम होतीहै॥  मल में कमल खिलता है बहुधामखमली मल नहाते ताल में मचाकर खलबली उगता रहता कमल मला मल के मल मेंरुक कमल को निहारन लगी हैचुलबुली॥ महकता यह महल बेखौफ हुआ जाता भा

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"सूरज और चंदा"

24 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है एक वार्ता......."वार्ता"सूरज और चंदासूरज-  कैसी हो चाँद, आज दिन में कैसे?????चंदा-   गर्मी,, बहुत गर्मी चढ़ी है तुमको, खूब तपा तो रहें हो, जिसे देखते हो झुलसा ही देते हो, मुझे देखते ही पिघल गएसूरज-  तुम तो शीतल हो न, चांदनी लिए अपनी रात के आगोश

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गीतिका

27 जुलाई 2016
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गीतिका- आधार छंद - आनंदवर्धक मापनी 2122 2122 212हाल ए गम में दिवाना आ गयाउफ़यहाँ तो मय खजाना आ गयासाफ़कर दूँ क्या हिला कर बोतलेंशामआई तो जमाना आ गया।।देखिये यह तो न पूछें जानकरदागदीवारें दिखाना आ गया।।उलझनों में बीत जाती जिंदगी आपकहते हैं बहाना आ गया।।दोपहर यह ताक पर है साहबासुबहकिसका अब सुहाना आ गया।

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“गज़ल”

4 फरवरी 2016
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सादर सुप्रभात आदरणीय मित्रों, एक गज़लआप सभी को अर्ज करता हूँ, आशीष प्रदान करें........ “गज़ल”दिल ही तो है, लगालूँ क्या गम के बादल, छुपा लूँ क्या। उठा दरद है, मरज़पुराना बिच दांतों के, दबालूँ क्या॥ फूल गुलाबी, खिले हुए हैं गेशू गजरा, सजा लूँ क्या ॥ लगी हुई है, हवा दीवानी दूर नहीं रब, माना लूँ क्या ॥छोड़

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मुक्तक (लोरी)

27 जुलाई 2016
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मुक्तक (लोरी) प्रदत शीर्षक-  घन/मेघ/बादल माई माई के भाई मामा चंदा की मिताई लेके दूध भात आजा मीठी भरी रसमलाई आजा हो चंदा मामा ले चाँदी के कटोरवा ये छाए घन बादल मेघा जामे गइल लुकाई॥  महातममिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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"ग़ज़ल"

28 अप्रैल 2016
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सम्मानित मंच के सम्मुख सादर प्रस्तुत है एक गज़ल........ “गज़ल”अब लगता है हम भी बदलने लगे फल बड़े पेड़ छोटे आम्र फलने लगे गमलों में लगाया आम्रपाली बहुत स्वाद फ्रूटी पर बच्चे पिघलने लगे॥ महुआ अब टपकती नहीं बाग में लय अंगूरी लता संग थिरकने लगे॥इन अनारी के दानों को मुंह में र

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“मुक्तक”

10 अगस्त 2016
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प्रदत शीर्षक- हौसला , उम्मीद , आशा , विश्वास , आदि समानार्थी दोहा मुक्तक........ हौसलों को संगलिए, उगाहुआ विश्वासचादर है उम्मीदकी, आशातृष्णा पास दो पैरों पर चलरहा, लादेबोझ अपार झुकती हुई कमरकहें, कंधाखासमखास॥  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी    

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"दोहा मुक्तक"

15 मार्च 2016
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शीर्षक शब्द -नदी/नदिया /दरिया /जलधारा आदि "दोहा मुक्तक"नदी सदी की वेदना, जल कीचड़ लपटायकल बल छल की चाहना, नदिया दर्द बहायजलधारा बाधित हुई, दरिया दुर्गम राहकैसे बिन पानी दई, वंश वेलि बढ़िआय।।महातम मिश्र

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गीतिका/ग़ज़ल

20 अगस्त 2016
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"गीतिका" मात्रा-भार, 28, 16- 12 पर यति खुल जाती है नित्य नींद एक, नया सबेरा लेकर अरमानों के विस्तर पर इक, नया बसेरा लेकर चल देते हैं पाँव रुके बिन, अपनी अपनी मंजिल ढ़ल जाता दिन रफ़्ता रफ़्ता, नया बसेरा लेकर।। मिल जातें हैं कहाँ सभी को, खुशियों के दिन ठाँव दिन में शाम तंग हो जाती, नया बसेरा लेकर।।

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"मुकरियां"

2 मई 2016
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मंच को सादर निवेदित है, तदन नव प्रयास के साथ कुछ मुकरियां...........“मुकरियां” मन मह छाए रहता नितप्रतिबहुरि करूँगी उससे विनती कह सुन लूँगी उससे बाता है सखि साजन, नहि सखि दाता॥ रात सताए हाथ न आए इधर उधर जा गोता खाएरखूँ सम्हारी न धीरज धारेहै सखि साजन, नहि सखि तारे॥ मैं उसको वह मुझको निरखे सुबह शाम देख

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&quot;मनहर घनाक्षरी&quot;

30 अगस्त 2016
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यह चार पदों(पंक्तियों मे) लिखा जाने वाला वार्णिक छंद है। इसमे वर्ण अर्थात अक्षरों की गिनती होती है, 8/8/8/7 पर यति अर्थात प्रति पंक्ति 31 वर्ण, भाव प्रभाव रचना मे तुकांत लघु गुरु पर अनिवार्य।"मनहर घनाक्षरी" दाना मांझी को बताई, प्रशासन ने अधिक, लाचारी जो लिए चली, चलन बीमा

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"मौसम है क्या"

11 दिसम्बर 2015
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सादरसुप्रभात मित्रों, चेन्नई में बाढ़ का कहर देखकर मन द्रवित हुआ और आज उसी विषयपर युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा रचना प्रस्तुतकरने काअवसर इस चित्र के माध्यम से प्राप्त हुआ।कलम चलती गयी और जो लिखा गया वो आप को सादर प्रस्तुत है | आपसभी का दिन शुभ हो..........<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x000

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"कुंडलिया"

30 अगस्त 2016
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"कुंडलिया"लालीउगी सुबह लिए, पूरब सूरज तातनवतरकिरणें खेलती, मन भाए प्रभातमन भाएप्रभात, निहारूँ सुन्दर बेलाभ्रमरभंगिमा प्रात, पुष्प दिखलाए खेलाकहगौतम चितलाय, सुहानी बरखा आलीघटतबढ़त निशि जाय, पल्लवित हर्षित लाली।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“मुक्तक”

6 मई 2016
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मंचको सादर निवेदित है एक मुक्तक, 13-12 परयति........“मुक्तक”कलियों को देख भौंरा, फूला समा रहा है फूलों के संग माली, मनमन अघा रहा है कुदरत का ये करिश्मा, पराग पूष्प पल्लवनैना भिरामा दृश्यम, हेला जगा रहा है॥  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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“गीतिका/गजल”

2 सितम्बर 2016
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गीतिका/गजल.............मात्रा भार-26 घास पूस लिए बनते छप्पर छांव देखे हैं हाथ-हाथ बने साथ चाह निज गाँव देखे हैं गलियां पगडंडी जुड़ जाएं अपनी राह लिए खेत संग खलिहान में चलते पाँव देखे हैं॥ आँधी-पानी बिजली कड़के खुले आकाशों से गरनार तरते पोखर गागर नाव देखे हैं॥ शादी-ब्याह सगुण-निर्गुण प्रीति

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मालिनी सम छंद एवं कुंडलिया

19 मार्च 2016
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मालिनी (सम छंद)नगण नगण मगण यगण यगण - 15 वर्णरस रंग लय मोरा फ़ाग हारा जहाँ है सुख दुःख कर मोरा प्राण प्यारा जहाँ है चल सखि चल जाऊं वाहि तारा बनूँगीअंसुवन भरि नैना नेह धारा जहाँ है।।"कुंडलिया"सखि आयो मोर बसंत, तनि गाओ रे फ़ागलगाओ उनहि तन रंग, दुलराओ रे रागदुलराओ रे राग, मोर पिय जाए न दूरलियो मोर अनुराग,

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“कुण्डलिया छंद”

7 सितम्बर 2016
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“कुण्डलिया छंद” गुरुवर साधें साधना, शिष्य सृजन रखवार बिना ज्ञान गुरुता नहीं, बिना नाव पतवार बिना नाव पतवार, तरे नहि डूबे दरिया बिन शिक्षा अँधियार, जीवनी यम की घरिया कह गौतम चितलाय, इकसूत्री शिक्षा रघुवर गाँव शहर तक जाय, ज्ञान भल फैले गुरुवर॥ महातम मिश्र, गौतम

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"उम्मीद"

20 मार्च 2016
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जय माँ सरस्वती जय माँ भारती"उम्मीद"उम्मीद ही उम्मीद है उम्मीद को मत तोड़िएउम्मीद से उम्मीद का हरवक्त नाता जोड़िएउम्मीद पर ही कायम है उम्मीद का संसार उम्मीद है जीवन धरा उम्मीद को मत मोड़िये।।देखिये उम्मीद पर गुमान भी न कीजियेबैठकर उम्मीद पर इत्मीनान भी न लीजिएकर्म ही उम्मीद का संचार करती है गौतमपरिवार क

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“कुण्डलिया”

20 मई 2016
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 चित्र अभिव्यक्ति“कुण्डलिया”हर सुबहा की लालिमा, लाए खुशी अपार हनुमान सी सोच लिए, बालक है तैयार बालक है तैयार, पकड़ लूँ सूरज दादाहोनहार की धार, मनोरथ पुरे विधाता कह गौतम कविराय, न लागे बच्चों को डरकौतुक भल सोहाय, बाबा बमबम हरी-हर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी  

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कुण्डलिया छंद

14 जनवरी 2016
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सादर शुभप्रभात, पावन पर्व उत्तरायन पर आप सभी को हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना.........  कुंडलिया छंद सूरज अब उत्तर चला, मकर राशि में आय धुंधा तिलवा पापड़ी, करो दान चित लाय करो दान चित लाय, गंग चल मकर नहावोंखिचड़ी शुभ फलदाय, सुसादर विप्र जिमावोंकह गौतम कविराय, शुभेशुभ होय न अचरजऋतु शादी की आय, दनादन बढ़

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"मुक्त काव्य"

20 मई 2016
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"मुक्त काव्य"लगा ज़ोर का झटका है धीरे से भाई लूटो तो तनिक सलीके सेबिना आग के उठता नहीं धुआँ करोड़पती कब कमाता पसीने से॥ देश है अपना कुछ भी बेंच देंगे मिली नागरिकता हक बेंच देंगे हिस्सा तो कण-कण पर सबका जमीर तो क्या आत्मा बेंच देंगे॥ रिश्वत के बाजार में बिरले बचेंगे धंधे में विचौलिये ही ताकत बनेंगे घाट

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"कुंडलिया"

23 मार्च 2016
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आज शहीदी दिवस पर राष्ट्र महान क्रांतिकारियों को याद कर रहा है। मंच की तरफ से उन्हे सादर श्रद्धाँजलि समर्पित, होली के पावन पर्व पर आप सभी को कोटि कोटि शुभ कामना।“कुंडलिया”होली हमने खेल ली ,सीमा पर ललकार माँ माटी को चूम ली, तेरी जय जयकार तेरी जय जयकार, मातु यह मनुज सितारा लिए तिरंगा साथ, चला यह लाल दु

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"लावणी छंद"

20 मई 2016
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लावणी छंद, 16-14 पर यति, युग्म पंक्ति तुकांत और अंत में दो गुरु........"लावणी छंद"कब तक होगा युद्ध तात जी, कबतक महि भारत होगाकबतक यह  द्रोपदी शभा बिच, न्याय चित कारक होगा।।कबतक अर्जुन खामोश रहें, कबतक जिय नारक होगाकुछ तो कहो मुरारी माधो, सुधि बुधि कब धारक होगा।।खर दूषण मन दूषण दूषण, जल थल नभ कबतक हो

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"खेमटा"

25 फरवरी 2016
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सादर शुभदिवस मित्रों, आज एक क्षेत्रीय गीत “खेमटा” आप सभी को सादर निवेदित है......... “खेमटा” बताव पिया कइसन राग मल्हार सुनाव पिया काइसन राग मल्हार॥बिन बदरा सूनी बरशे बदरियाँ काली घटा घिरी आय संवरियाजब गाए ध्वनि स्वर सुर सितार.....बताव पिया कइसन राग मल्हार पूरब गइली पश्चिम न देखलीतोहरी सुरतिया हिया ल

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“पानी”

20 मई 2016
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एक रचना, मात्रा भार, 16-16 = 32 “पानी”नौजवान यह भारत देशा, पुनि कांहे को भरा कलेशाधरती मांगे अंबर पानी, झूम रहें हैं राजनरेशा॥  कौतुक लागे देख विचारा, बाँधी डोर है खिचत धारा असहाय हुआ काहें मानव, अवनिन आवत एकहि तारा॥जल गागर भरि भरि कित लाऊं, होठ लगाऊँ आस बुझाऊँ खींचू गाड़ी जलबिन जीवन, को विधि मन सागर

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"गजल, दरख़्त व छाँव"

25 मार्च 2016
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 प्रदत चित्र पर किसी भी विधा मे एक साहित्यिक रचना के तहत"ग़ज़ल, दरख़्त व छाँव"दरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिनमहल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिनकाश रुक पाता नदी लिए पेड़ों की छैयांतो झुरमुटों की छाँव बैठता एक दिन।।शुद्ध पानी दीवारों से छान पिया बहुतचुल्लूभर पीता सतही गन्दगी हटाके घिन।।दोनें में भर लाता

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“ऐसा चेहरा”

26 मई 2016
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“ऐसा चेहरा”बंदगी करता रहा उमर भर का आदमी ठहरा चलता रहा जुबां पर लगा पहरा हिल गए ये होठ यूं ही एकदिन जख्म दे रहा इंसान ही इंसानको गहरा॥ कैसी है सोच आदमी का चेहरा चेहरा हर वक्त गिराता उठाता सेहरा बदनशीबी तो देखों आदमी के चंगुल में आदमीअब तो नित नए आतंक दिखाता है बन मोहरा॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी 

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"गजल"

24 दिसम्बर 2015
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सादर शुभप्रभात आदरणीय मित्रों, एक नई गजल आप सभी को सादर प्रस्तुत हैं आशीष की अनुकंपा सह......"गजल"हम मुलाकात करने गए, पर तुम नाराज से दिखेतुम्हारी नज़रों से पूछा, तो तुम नासाज से दिखे आखिर क्या है तुम्हारी, जिंदगी सफर का मिजाज कभी-कभी तुम अपने आप में, खुशमिजाज से दिखे ।।क्यूँ नहीं करते अपनों से, अपने

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“मन अजोर हो गइल”

31 मई 2016
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एकभोजपुरी रचना.........“मन अजोर हो गइल”तोहरी देखली सुरतिया मनअजोर हो गइलरात देखली सपन सजनचितचोर हो गइल चित के चैना उड़ल मन केमैना उड़ल पंहुचल बगिया में जाकेबिभोर हो गइल॥प्रीति के रीति कबहु हमन पढ़ली सखीआज सिखली नव हरफ बड़ शोरहो गइल॥सुधि बुधि खो गइल राहअरुझे लगल अंगना के अंजोरिया बहुतथोर हो गइल॥ कइसन हवे

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"बाँग देता नहीं मुर्गा"

27 मार्च 2016
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विधा - कहानी"बाँग देता नहीं मुर्ग़ा"       रोज-रोज, सुबह ही सुबह, जोर-जोर से बाँग देकर पुरे गाँव को जगाने वाला मुर्ग़ा दो दिन से न दिखाई दिया नाहीं सुनाई पड़ा। वैसे भी अब सबकी सुबह अपने-अपने अनुसार हो ही जाती है मुर्गे की किसे पड़ी है। जरुरत ही सबकी यादें ताजा करती है, गांव के एक बच्चे ने अपने हमउम्र से

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“शादी नहीं, समझौता है”

31 मई 2016
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“शादी नहीं, समझौता है”यूं तो आज मोना के जिंदगी का सबसे खुशी कादिन है पुत्र रत्न की प्राप्ति जो हुई है। ऐसे खुशी के मौके पर उतरा हुआ चेहरादेखकर नर्स ने पूछा अरे आप आज उदास क्यों हैं। चिंता मत करिए दीदी मैं आप से नेगनहीं मागूंगी लेकिन आप खुश रहिए, देखिये न कितना सुंदर लाड़ला दिया है भगवान ने आप की झोली

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"मत्तगयंद/मालती सवैया"

27 फरवरी 2016
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आज का छंद है मत्तगयंद/मालती सवैया 211 211  211  211  211 211 211  22"मत्तगयंद/मालती सवैया"मोहन मान बिना कब आवत नाचत मोर घना वन राचेंचातक जाचक देखत है रुक मांगत है घर पावस बांचे।।बोलति बैन न बांसुरि रैन नहीं दिन चैन कहां मन पाएहे मन मोहन आपहि राखहु मांगत हूँ कर जोर लजाए।।महातम मिश्रएक प्रयास आप सभी क

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गजल............

13 जून 2016
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काफ़ीया- आ-ओगे,  मात्रा भार-24 अतीत को अब कब्र से, कैसे निकालोगे गुजरे हुये पैगाम को, कितना निहारोगे  वफा सीख लो ताबूत से, रखो सम्हाल केइस कर्म धर्म मर्म को, कितना बिगाड़ोगे॥इंसाफ भी इंसाफ को, डरा के जी रहा दिवारों में अब कितनी, सूली लगाओगे॥ हद के बिना किसकी, औकात है कितनी  बोलो किस वजूद पर, हिमालय बस

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“दोहा मुक्तक”

29 मार्च 2016
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शीर्षक मुक्तक, शीर्षक-नभ / गगन/ अम्बर/आकाश आदि पर सादर निवेदित है एक दोहा मुक्तक........“दोहा मुक्तक”आँसू सूखे नभ गगन, धरती है बेचैन कब ले आएगा पवन, मेरी रातें चैन खिलूंगी मैं पोर पोर, डाली मेरे बौरछम-छम गाऊँगी सखी, लहरी कोयल बैन॥महातम मिश्र (गौतम)

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“ऐसा चेहरा”

13 जून 2016
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छंदमुक्त आयोजनबंदगी करता रहाउमर भर का आदमी ठहरा चलता रहा जुबां पर लगा पहरा हिल गए ये होठ यूं ही एकदिन जख्म दे रहा इंसान ही इंसानको गहरा॥ कैसी है सोच आदमी का चेहरा चेहरा हर वक्त गिराता उठाता सेहरा बदनशीबी तो देखों आदमी के चंगुल में आदमीअब तो नित नए आतंक दिखाता है बन मोहरा॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

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"गजल"

24 जनवरी 2016
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सादर शुभप्रभात प्रिय मित्रो, एक गजल आप सभी को सादर निवेदित है, जय हिन्द "गजल" दिखी जमीन अपनी, पहाड़ों पर चढ़कर जिसपर चलता रहा, रोज खूब अकड़कर  आकाश नजदिक था, जो धुंआ धुंआ दिखा कुठरता सहम गई, न जाने क्योे डरकर ।।उखड़ने लगी साँस, काँपने लगे पाँवरुँध गई आवाज, सर्द हवा बिछाकर ।।सुखने लगे होष्ठ, अनजान पगडंडि

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एक कुंडलिया छंद.........

13 जून 2016
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आँधी चलीकतेक से, उड़े धूलआकाशआँखों मेंहै किरकिरी, मलिन पंथप्रकाश मलिन पंथप्रकाश, न दिखे निचेगड्ढ़ाआई कमरन मेंचोट, गिरि कराहेबुड्ढ़ा कह गौतमकविराय, उड़ाए झोंकापाँतीबरष असाढ़ेजाय, उड़ी यह बैरीआँधी॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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"चइता गीत"

31 मार्च 2016
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“चइता- गीतसखी मन साधि पुरइबे हो रामा, चइत पिया अइहेंननद जेठानी के ताना मेंहणानाहीं पिया भेद बतईबे हो रामा। चइत पिया अइहें..... अनिवन बरन जेवनार बनईबे, सोनवा की थाल जिमइबे हो रामा॥ चइत पिया अईहें...... पनवा गिलौरी लवंग इलायची बिरवा इतर लगइबे हो रामा॥ चइत पिया अईहें......सोरहों शृं

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गज़ल”

13 जून 2016
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देखो जरा मेरी तन्हाइयों कोदूरखिसकती इन परछाइयों को।   सुबह कोबढ़ें दोपहर से ढलेंचूमतीहुयी अपनी खरखाइयों को॥ अंधेरोंसे लड़ती रही रात भर   संवरती सुबहनितमुलाक़ात पर खुद ही जुदा हो वह जा रहीं हैं  अब मिलनेचली नई रूसवाइयों को॥घर छोड़अपना किधर जा रहीं है परायों सा चेहरा किये जा रही है छद्म सबको रुलाया है हर

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“विदाई”

29 फरवरी 2016
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मेरी भतीजी की आज विदाई हुई और बोझिल मन छलक गया....... “विदाई”आज सुबह से दिल बार बार कह रहा है गुजरे हुये लम्हों पर इतबार कर रहा है बीत गया एक बचपन आँखों के सामने बेटी की डोली है आँसू विचार कर रहा है॥गत कुछ साल में बड़ी हुई नन्ही सी परीआज घूँघट में रुकसत इंतजार कर रहा है॥खिखिलाती हंसी कूंकती कोयलिया म

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"गज़ल"

15 जून 2016
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"गज़ल"बना दिया मैंने जाने घरौंदे कितनेअब एक भी नहीं किसमेगुलाब रक्खूंगामिटता गया बनकर हर रोजसपनाकिस आशियाने में सुर्खगुलाब रक्खूंगा।।हटा लो अपनी रंगीनफिजाओं कोकिस बगीचे में यह कलीगुलाब रक्खूंगा।।रंग भी बदल दिए है धनेगेसुओं नेझुकी डालियाँ न फुलेगुलाब रक्खूंगा।।रहने भी दो अब मिजाज कीपेशगीपुराने गमले मे

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"झबरी और मतेल्हु"

3 अप्रैल 2016
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मंच को समर्पित एक लघु कथा/कहानी......."झबरी और मतेल्हु"समय बीत जाता है यादें रह जाती हैं। आज उन्हीं यादों की फहरिस्त में से झबरी की याद आ गई, जो हर वक्त छोटकी काकी के आस-पास घूमा करती थी। कितना भी डाटों-मारों चिपकी रहती थी, काकी के पल्लू से। म्याऊं म्याऊं करते हुए सबकी झिड़क सहते हुए, घर की चहारदीवार

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" मुक्तक”

15 जून 2016
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" मुक्तक”जा रे बिजुरीसवति घर जा रेचंचल चपलाकसक कर जा रेकारी रतियाविरह डर लागेचमके गरजेमनहि भर जा रे॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“झूल रही है”

15 जून 2016
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 छंद मुक्त आयोजन“झूल रही है” मानदारी व नैतिकता कीदो चादरें झूल रही है अरगनी को थाम्हे हुये जिन्हें ओढ़ते बिछातेसलवटें सिथिल हो गयी हैं पहनते सहेजते पसीनागंध से भर गया है॥ कुशलता रूठ गई है बीमार हवा हिल रही है पर कहीं भी दाग नहीं है सफ़ेद है शीतल है कई जगह सिली हुई अरमानों में कोमलता करुणा का दामन पकड़े

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"दोहा मुक्तक"

5 अप्रैल 2016
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शीर्षक-  भाग्य/किस्मत आदि“दोहा मुक्तक”किस्मत बहुत महान है, पुलक न आए हाथ कर्म फलित होता सदा, अधिक निभाए साथ न बैठो मन भाग्य पर, कर्म करो चितलाय लिखा लिलार मिटे नहीं, दुर्गुन किसका नाथ॥ महातम मिश्र, गौतम

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"रुबाइयाँ"

16 जून 2016
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"रुबाइयाँ"हम यूँ न आदर अदायाकरते है बड़ हुनर सम्मान समायाकरते है अजीब ख़ुशी मिलती हैसआदर मेंपराए भी मिल निभायाकरते है।।रह गुजर शकून दिलायाकरते है मिल बैठकर हँस हँसायाकरते हैगम के बखार में कुढ़तेहैं कीड़ेहम दाँत निम रस पिलायाकरते हैं।।घर मिलती सीख निभायाकरते है हरपल माँ बाप बुलायाकरते है खुशियाँ अपार रज

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"कुंडलिया"

2 मार्च 2016
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“कुंडलिया”चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर नाचत नर्तक मोर, विरह में आँसू सारे पंख मचाए शोर, हताशा ठुमका मारे कह गौतम कविराय, बिरह बिना कैसी अहकतोर मोर नहि जाय, तज रे मन कुंठित चहक़॥महातम मिश्र (गौतम)

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"ग़ज़ल"

16 जून 2016
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वज्न- 1222 1222 1222 1222"खुदाभी जब जमीं पर आसमाँ पर देखता होगा""ग़ज़ल"हवाओं में तपिस इतनी भिगे दामन मिनारों मेंन बच पाए चुनर धानी नपानी ही किनारों मेंबदले रुख दिशाओं ने भलीबरसात की बातेंसनम अपनी अदाओं कोदिखादे आ दिदारों में।।बुलाती है तुझे तेरीतलैया आज चिंता मेंतड़फती हैं मछलियां चैनखोती घिर विचारों म

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"ग़ज़ल, दर्द दामन"

7 अप्रैल 2016
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गज़ल “दर्द दामन”तुम्ही ने चैन चुराना, हमें सिखाया था प्यार मैंने भी किया, तुम्हें बताया था तेरा वो वक्त जमाना दिखाया तुमने दिल से पुछो दिल किसने लगाया था॥सुबह की शाम हुई चाहतें परवान हुई धूप धधकी, छांव किसने ओढ़ाया था॥ सरक जाने लगी तिजहर ऐ नशेमन धूल गोधूली गुल किसने उड़ाया था॥बरसने लगी बरखा रात पुरवाई

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दोहे

16 जून 2016
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दोहे ...........पशु पंक्षी की बोलियाँ, समझ गया इंसाननिज बोली पर हीनता, मूरख का अभिमान।।-1विना पांव चलते रहे, प्रीति रीति अरु नावलहर लाग लग डूबते, दे जाते बड़ घाव ।।-2हरषित मन बैठा रहा, चारा डाले सोचआएगी मछली बड़ी, खा जाऊंगा नोच।।-3कदम कुहाणी पर धरें, बहुत मनाए खैरधार न परखे चातुरी, मीत हीत अरु गैर।।-4

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“कुण्डलिया”

29 जनवरी 2016
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सादर सुप्रभात मित्रों, आप सभी कास्वागत करते हुए चित्र अभिव्यक्ति आयोजन में एक कुण्डलिया सादरनिवेदित है......... “कुण्डलिया”मन में चिंता हंस करे, जल मलीन है आजउलझ गया शेवाल है, नदियां बिन अंदाज ॥ नदियां बिन अंदाज, हंस उड़ गया चिहुँककर कमल खिले कत जाय, नीर निर्मल जस तजकर कह गौतम कविराय, हंस सुंदर दिखे

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“रुबाई”

16 जून 2016
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चित्रअभिव्यक्ति आयोजन “रुबाई”गुटुरगूं गुटुरगूं दिल जब करता है अंदर कबूतर फुद-फुदक उड़ता है प्रेमी परिंदा मिलन की चाह लिएइतिश्री चोंच को आलिंगन करता है॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी  

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"दोहा"

9 अप्रैल 2016
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"दोहा" माँ की वंदना..............क्षमा करो गलती प्रभो, गौरी नन्द गणेशमोदक लड्डू पाइए, शिव सुत प्रभु महेश।।- 1जगजननी भयहारिणी, कृपा करो हे मातुसहकुल मैं वंदन करूँ, नव दिन माँ नवरातु।।-3शिव शम्भू शांत करें, माँ काली का रोषहाथ जोर विनती करूँ, पाऊँ फल आशीष।।- 3ले अच्छत दूब चंदन, धूप दीप नैवेदकरूँ आरती क

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"मत्तगयंद मालती सवैया"

22 जून 2016
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"मत्तगयंदमालती सवैया" सात भगण अंत में दो गुरुराघव फिर अब बाण धरो वन में सिय लाल लखन संग आओराक्षस घेरि लिए जग कोऋषि जंगल हारि गयो उन लाओ।।आपुहि आय विचार करो तनिदेख अवध कस रूप बनायोलाल हुई धरती वह पावनजह तुम कोशल नाम धरायो।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"मुक्तक"

4 मार्च 2016
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आप सभी के सादर सम्मान में प्रस्तुत एक मुक्तक......."चित्र अभिव्यक्ति मुक्तक"उखाड़ों मत मुझे फेकों, अरे मैंरेल की पटरी न गुस्सा आग बरसाओ, उठाती हूँतेरी गठरी। जरा सोचो निहारो देख लो मंजिल कहाँजाती मंजिल मैं मिला देती, बिना पहचान की ठठरी॥महातम मिश्र

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हाइकु

22 जून 2016
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कटते बागउजड़तीधरती रूठतामेघ॥-1 लगाओपेड़ जिलाओतो जीवन बरसेमेह॥-2बरसों मेघापवन पुरवाईधरा तृप्त हो॥-3काला बादलछाया रहा घनेराआस जगी है॥-4नहीं भूलतीवो बरसाती रातबहता पानी॥-5बहा ले गईभावनाओं को साथशिथिल पानी॥-6धरती मौनगरजता बादलपानी दे पानी॥-7   देखो तो आजचली है पुरुवाईबदरी छाई॥-8  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुर

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"दोहा मुक्तक"

12 अप्रैल 2016
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शीर्षक मुक्तक, प्रदत शीर्षक / शक्ति /बल/ताकत आदि“दोहा मुक्तक”ताकत बल भी खूब है, जब तक रहे शरीर जर जमीन और जोरू, संचित रहे जमीर बुढ़ापा बिन ताकत का, गई जवानी आय बिना शक्ती के साधू, कोई कहाँ अमीर॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

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"कुण्डलिया छन्द"

23 जून 2016
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चित्र अभिव्यक्ति आयोजन मंच को सादर प्रस्तुत है एक कुण्डलिया छन्द..............बढ़ी उमर गुजरी हुई, साथी संग मुकाम रफ़्ता रफ़्ता सरकती, जीवन पहिया शाम जीवन पहिया शाम, न बिछड़े बैरी का भी बहुत कठिन आयाम, बुढ़ापा बड़ घर का भी कह गौतम कविराय, बिना बेसना की कढ़ीसंगिनी है सहाय, उमर ज्यों पग पग बढ़ी॥महातम मिश्रा, ग

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“सुमुखी सवैया छंद”

7 जनवरी 2016
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सादर शुभदिवस मित्रों , आज सुमुखी सवैया छंद आप सभी को सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया आशीष प्रदान करें.......“सुमुखी सवैया छंद”रहूँ तुझ आपनि जानि प्रिए, तुम बूझत नाहि बुझावत हो। असूवन काढ़ि निकारि जिया कस नैनन नेह लगावत हो॥ऊष्मावत हो बहलावत हो, नहि जीवन छांह दिखावत हो। हटो न कपोल किलोल करो, तजि लाज वफा

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विधा -- दोहे

23 जून 2016
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विधा -- दोहेचौदह स्वर डमरू के,सारेगामा सारजूट जटा गंगा धरें, शिव बाबा संसार।।-4सोलह कला की चंदा, धारण करते नाथअर्ध भागी पार्वती, सोहें शिव के साथ।।-5महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"गीतिका"

13 अप्रैल 2016
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विधाता विधा-- गीतिका मापनी --1222. 1222 1222. 1222,“गीतिका”महक उठता सुखा उपवन तरलता पास आने पर।निगाहें भी छलक जाती मधुरता हाथ आने पर॥ बहुत देखा जमाने को बिठाया दिल वीराने में। कहीं से चाह ना आई दिले दिलदार जाने पर॥ खुली खिड़की खड़कती है हवावों की भनक पाते। दीवारों से लिपट जाती जरा सी राह पाने पर॥मरहला

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"मत्तगयंद मालती सवैया"

28 जून 2016
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"मत्तगयंद मालती सवैया" सातभगण दो गुरुमाखन मीसिरि को नहि लागत मीठ मिठाइ जु मोहन मानोआवत हो तुम मोर घरेमटकी संग चोरत हो हिय जानो।।एकहि बार विचार कियो तुम गोपिन तोहरी राह बखानो आज कहूँ मन माधव मोहनको नहि तो सम प्रान पियानो।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"उलारा गीत"

6 मार्च 2016
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सादर निवेदित एक भोजपुरी उलारा जो  रंग फ़ाग चौताल इत्यादि के बाद लटका के रूप में गाया जाता है। कल मैनें इसी के अनुरूप एक चौताल पोस्ट किया था  जिसका उलारा आज आप सभी मनीषियों को सादर निवेदित है, पनिहारन वही है उसके नखरे देखें"उलारा गीत"कूई पनघट गागर ले आई, इक कमर नचावत पनिहारनछलकाती अधजल कलसा, झुकि प्या

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“फोन की घंटी भी अफीम सी होती है”

28 जून 2016
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एक मुक्त काव्य रचना....... “फोन की घंटी भी अफीम सी होती है” अजीब सी होती है करीबसी होती हैकभी तो बहुत खुशनशीबसी होती है रूठकर बड़ी तकलीफ दे जाती सखे   फोन की घंटी भी अफीम सी होती है॥सुबह घनघना उठी ज़ोर सेविस्तर परसिरहाने ही रखा था उसकोकनस्तर झनझना कर रख दिया पूरे माहौल को सखियों ने बुलाया है मैडम कोसै

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"ग़ज़ल"

15 अप्रैल 2016
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मंच को सादर निवेदित है एक गजल........ मित्रों,  महाष्टमी, रामनवमी व नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना, बधाई व मंगलमयी प्यार........नववर्ष पर आप सभी लोग खूब खुश रहें, धूमधाम से विक्रम संवत का जश्न मनाये यही हमारा नववर्ष है जिसपर हमें नाज है इस पर अपने उन्नत विचारों का खूब आदान-प्रदान करें........जय भारत मा

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“दोहा मुक्तक”

29 जून 2016
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प्रदत शीर्षक-  शहद - पुष्परस,मधु, आसव, रस, मकरन्द।शहद सरीखे लय मधुर, लाल रसीले होठनैना पट लजवंत हैं, चंचल चाहप्रकोष्ठ लटलटकाये कामिनी, घूमतजस मकरंदपुष्परस मधु विहारिणी,संचय छ्त्ता गोठ॥ महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी  

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"कुण्डलिया"

31 जनवरी 2016
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सादर शुभ दिवस मित्रों,  मंच के समस्त प्रबुद्ध जनों को सादर प्रेषित है एक कुण्डलिया......."कुण्डलिया"छोड़ तुझे जाऊं कहाँ, रे साथी ऋतुराजअब तो पतझड़ आ गया, कैसे कैसे राजकैसे कैसे राज, वाग नहि देता मुर्गाभोर दोपहर होय, मनाऊँ कैसे दुर्गाकह गौतम कविराय, चिरईया दौड़े दौड़पाए नहीं सराय, कहाँ जाए तुझे छोड़ ।।महा

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गज़ल

1 जुलाई 2016
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घड़ी हूँ नियत समय चाह बताती हूँ सुन री सखी वक्त आगाह बताती हूँ धीरे-धीरे चलती बिन रुके सुई मेरी भूल न जाना जीवन राह बताती हूँ॥ एक एक पल को रखती हूँ सहेजकर शुरू तो कर सफर निर्वाह बताती हूँ॥ सुबह शाम रात दिन गोधुली गुबार में घटे बढ़े दिन को उत्साह बताती हूँ॥मौसम बेमौसम ऋतुओं के रहूँ साथ     ठंढ धुप बरखा

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"स्तुति"

15 अप्रैल 2016
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“स्तुति”दशरथ नन्दन अवध बिहारी, आय गए प्रभु लंका जारी धन्य धन्य है मातु कोसल्या, सीता सहित आरती उतारी॥ कोशल कवन भांति दुलराऊँ, हनुमत हिय सिय ढिग बैठारीलहेऊ लखन कर चूमत माथा, साधि पुरावति सब महतारी॥भरत भूआल सत्रुघ्न लखि लखि, चारिहु ललन वारि ले वारी सरयू तट माँ महा आरती, मिलही प्रजा प्रभु दरश निहारी॥ च

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प्रिय सखा, नावल बिहाड़ी, पत्र

4 जुलाई 2016
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पत्र एक मित्र कोप्रियसखा, नवलबिहारीस्वस्तीश्रीसर्बोउपमा योग्य, अत्रकुशलम त्त्रास्तु,याद तो आई पर पांती नहीं आई।  जीवन का दिन रफ़ता रफ्ता रंडकता रहा। जब तुम साथ थे तब न दुआ, न प्रणाम, न दिखावा, न छलावा और न ही कोई दूरावा था।अगर कुछ था, तो केवल और केवल खेलने की ललक थी। न कोई चेहरा था, न ही कोई मोहरा, ब

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विश्व महिला दिवस पर एक कुंडलिया

8 मार्च 2016
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सादर शुभ प्रभात मित्रों,आज विश्व महिला दिवस पर मंच की सभी महिला मित्रों को सादर प्रणाम, महिला शक्ति को सादर नमन। मुझे लगता है कि आज हमें अपने अंतरमन से यह जरूर पुछना चाहिए कि क्या हमारे अबतक के जीवन का एक पल भी बिना किसी महिला के साथ के व्यतित हुआ है। अगर उत्तर नहीं है तो पीछे मुड़कर देखें, जन्म दिया

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कुछ दोहे..........

5 जुलाई 2016
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विषय- वर्षाकुछ दोहे.......... उमड़ घुमड़ कर बादरा, बरसन को तैयार हवा बहे तो जल चले, वरना चह बेकार॥ आस लगी नभ देखकर, चपला चमके मेह सावन कजरी नायिका, बरसत वसुधा नेह॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी     

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"कहानी"

17 अप्रैल 2016
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एवं मंच को सादर प्रस्तुत है एक कहानी........गोलू अपने माँ बाप का इकलौता दुलारा बेटा है। बहुत लाड़ प्यार में शरारती होना लाजमी है और बचपन का यह गुण सराहना का पात्र भी है । धीरे धीरे गोलू बढ़ने लगा उसके साथ ही साथ उसकी शरारत भी बढ़ने लगी। साथी बच्चों में वह खूब मशहूर है कारण उसके पास मंहगे खिलौनों का भंड

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कुंडलिया

11 जुलाई 2016
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कुंडलिया........जब खुद से मानव जुड़े, तब मिलता इंसानईददीप नेकी खिले, जब हँसता इंसानजब हँसता इंसान,ताकत तन बढ़ जातीगले गला पहनाय,रोशनी मन छा जातीकह गौतम सुखआय,धरो जनजन जीय जानवनित्य रोज त्यौहार, मनाओ बनकर मानव।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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“हवा का झोंका”

18 अगस्त 2015
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वह दिल हचमचा कर चली गयी मुझे छूकर किनारे सेबड़ी सिद्दत से पूछा तो लोंग कहते हैं हवा का झोका है ||मन में कुछ अजब सा विचार आ रहा है इन आँखों में फिर उसका दीदार आ रहा है देर तक बरस गयी बिन मौसम की बारीश सी क्यूँ ख्यालों में सावन का अब ख़याल आ रहा है ||उमड़ पड़ी हैं पुरानी तवारिखें पहलू में मेरे पूर्वी रिमझ

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गीतिका छंद

11 जुलाई 2016
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गीतिका छंद( 2122 2122 2122 212<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->हे महा माँ सिंह सवारी, शरण अपने लीजिए।मोमुरख को मातु क्षमा दे, चरण रज सुत दीजिए।।मातु माया कनक थारी, मोह ममता चाहना।छूटजाए मोर अवगुन, मनमहक जा साधना।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"दोहा मुक्तक"

19 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है मुक्तक, शीर्षक- उल्हास, आनन्द, उत्सव, आदि"दोहा मुक्तक"उल्हास अतिरेक लिए, शादी में धक धाँय आनंद का विनाश है, बंदुक बरात जाय खुशी को भी मातम में, बदलते क्यों लोगकैसी शहनाई आज, बजती उत्सव आय॥महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

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पिरामिड........

11 जुलाई 2016
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विषय --वर्षा ,श्रावण,बाढ़, जलसंचयन<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]--> 1-रे वर्षा बरस सावन मेंफुहार तो दे निहार रहा हूँ उगा कर अंकुर॥2-  ये नई फसल बिन तेरे मुरझा न जा चाहत न जला लहरा दे सागर॥3-हैमेरीजमीन कोरी कोरी जल भर ला छलका तो ज़रासंचयन गागर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी     

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"ग़ज़ल"

10 मार्च 2016
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सादर शुभप्रभात आदरणीय मित्रों, आज आप सभी को सादर निवेदित है एक ग़ज़ल ………….  “गजल”चाहतें चाह बन जाती, अजनवी राह बन जाती मिली ये जिंदगी कैसी, मुकद्दर छांह बन जाती  पारस ढूँढने निकला, उठा बोझा पहाड़ों का बांधे पाँव की बेंड़ी, कनक री, राह बन जाती॥   मगर देखों ये भटकन, यहाँ उन्माद की राहें  मंज़िले मौत टकराती

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कुंडलिया छंद””

14 जुलाई 2016
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चित्र अभिव्यक्ति.......साथी मेरे सीप का, मोती मत विखरायस्वाती मेरे नैन से, नाहक मत बरसाय नाहक मत बरसाय, जानती ये विष पीना सीमा खुद सिखलाय, पलक जाने है जीनाकह गौतम कविराय, बिना दातों की हाथी भले रूप सरखाय, महावत गरजे साथी॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"गज़ल"

21 अप्रैल 2016
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सम्मानित मंच के सम्मुख सादर प्रस्तुत है एक गज़ल..............“गज़ल”जिंदगी ख्वाब अपनी सजाती रहीवो इधर से उधर गुनगुनाती रही पास आती गई मयकसी रात मेंनींद जगती रही वो जागती रही॥ पास आने की जुर्रत न जेहन हुई दूर दर घर दीपावली जलाती रही॥ शीलशिला साथ रह सुर्खुरु हो गईसुर्ख लाली लबों पर लजाती रही॥ना चाहत चली

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"दादरा गीत"

18 जुलाई 2016
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"दादरा गीत"बरसिजा रे बदरा मोर अँगनईयाँमचलजा रे भौंरा मोर अमरइयाँआके बरस मोर अंगना रे बदराचंपाचमेली सजा मोर गजराछलकाजा रे तू मोरी सेजरियाभिगामोर अंचरा पिया की डगरिया, बरसि जा रे बदरा मोर.......आज पिया मोरा अइहें माहलियामनभर नाचूंगी साथ सहेलियासजाजाउंगी रे सोलहो श्रृंगार मदनछलका जा रे मोरी बखरिया, बरस

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"मुक्तक"

2 फरवरी 2016
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सादर स्नेह प्रिय मित्रो, आप सभी को निवेदित है मेरी एक रचना मुक्तक........“मुक्तक”उठा लो हाथ में खंजर, बुला लो जलजला कोई न होगा बाल बांका भी, लगा लो शिलशिला कोई अमन के हम पुजारी हैं, शांति के हम फरिस्ते हैं न करते वार पीछे से, सुना लो मरहला कोई ॥ महातम मिश्र

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"अहसास"

18 जुलाई 2016
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कथा/ लघुकथा "अहसास"अनायास ही हंसी आ जाती है | अतीत की बातें कभीसोचकर तो कभी सुनकर | जब हर मोड पर वयोंवृद्ध,कहतेरहते हैं कि अतीत को भूलना ही बेहतर है | क्या सचमुच वें लोंगभुला पाए हैं अपने अतीत को | शायद नहीं | क्याअतीत से उनकी झुझालाहट उन्हें चैन से जीने दे रही है | क्या बार-बार उनके सीनेपर आकर सवार

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"ग़ज़ल"

23 अप्रैल 2016
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मंच को सादर निवेदित है एक गज़ल..........."गज़ल"गर्मी की छुट्टी का कुछ तो प्लान बनाएंचलो इसबार सपरिवार लातूर हो आएंसुना है पानी को भी अब प्यास लगी हैमौका है सुनहरा उसकी प्यास बुझाएं।।रखो दश बीस बोतल फ्रिज से निकालोंबच्चों को कहो नया कैमरा न भूल जाएं।।होटल के मैनेजर को ठीक से समझा दोकह दो उससे ए.सी. का

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“गीतिका छंद”

19 जुलाई 2016
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गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर, प्रथम गुरु माता-पिता के साथ सभी बड़ों एवं गुरुजनों को सादर प्रणाम, हार्दिक बधाई (गीतिका छंद ,, 12/14 पर यति) 2122, 212- 221 22 212ले चला हूँ आप का, साहित्य लोगों के लिए।लिख रहा हूँ चाह की, पटरी बताने के लिए॥ज्ञान के भंडार गुरु, वो दृष्टि अपनी दीजिए। मात मोरी शारदे, निज स

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बुरा न मानों होली है.....जोगीरा सररररर..........

12 मार्च 2016
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बुरा न मानों होली है.....जोगीरा सररररर..........होली में हुड़दंग मिला है, जश्न धतूरा भाँग.....रंग गुलाबी गाल लगा है, खूब चढ़ा बेईमान.....जोगीरा सरररररझूम रहा है शहर मुहल्ला, खाय मगहिया पानगली गली में शोर मचा है, माया की मुस्कान......जोगीरा सरररररजोर-शोर से हर सेंटर पर है हल्ला इम्तहानबाप सिखाए अकल नक़ल

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“लोकगीत”

27 जुलाई 2016
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“लोकगीत”होइहे मिलनवा, हो हमार मितवुतनि राखहु थीर, चितचाह हितवुमन में ललक बा, साधि पुरइबजियरा गले मिलब ज़ोर ज़ोर, से लगाइबचितवु.......जल्दी.....होइहें मिलनवा ...... अनुज नेहिया तुहार, ते रुलाई दिहलसआज दुपहर में तारा, दिखाई दिहलस अस लागेला मोर-तोर, प्रीति बापुरान मन में आशा किरिनिया जगाईदिहलस.......जल्द

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"हाइकु"

25 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है हाइकु------------------“हाइकु”वह कौन है सड़क पर औंधे मुंह गिरा है॥ उठाओ उसे देखों तो घायल है मदत करो॥ मत जा छोड़ बेसहारा किसी को हाथ बढ़ाओ॥ आदमी तो है आदमी के ख़ातिरउसे जिलाओ॥ दर्द इसको किसने दिया होगा आद्मी बताओ॥महा

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“सेल्फ़ी, अच्छी या बुरी”

27 जुलाई 2016
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“सेल्फ़ी, अच्छीया बुरी” अतिका भला न बोलना, अतिकी भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥ यानिअति सर्वत्र वर्जयेत। जैसा कि अकसर देखा जाता है कि हर तसवीर के दो पहलू होते हैंऔर दोनों को गले लगाने वाले लोग भी प्रचूर मात्रा में मौजूद हैं। उन्हीं लोगों मेंसे अपना-अपना एक अलग ही रूप लेकर ईर और बीर,

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“दोहा-मुक्तक”

12 जनवरी 2016
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मंचको सादर निवेदित है एक शीर्षकमुक्तक --आक्रोश/ क्रोध “दोहा-मुक्तक” ------क्रोधी लोभी लालची,बिन मारे मरि जाय कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय आक्रोश जस जस बाढे, तस बाढ़े उत्पातमहिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरतापाय ॥ महातम मिश्र 

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मत्तगयंद/मालती सवैया

27 जुलाई 2016
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मत्तगयंद/मालती सवैया 211 211 211 211 211 211 211 22<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->नाचत, गावत शोर मचावत, बाजत सावन में मुरली है भोर भयो चित चोरगयो भरि, चाहत मोहन ने हरली है॥  साध जिया मग का यहचातक, ढूंढ़त ढूरत घा करली है गौतम नेह बिना नहिभावत, काजल नैनन में भरली है॥ महातम मिश्र, गौत

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"दोहा"

27 अप्रैल 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है कुछ दोहे..........“दोहा”अजब गजब की रीत नित, अजब गजब का शानकिसका किसने लुट लिया, किसकी है पहचान।।-1भीड़ मची दो घाट पर, धोते हैं सब खूबएक दूजे की कालर, पकड़े है अब डूब।।-2भारत माँ की एकता, होती है पैमाललगता है की वतन है, होता है जयमाल।।-3खिचड़ियां त्यौहार है, रोटी भी है ईदआपस में

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“कुंडलिया”

4 अगस्त 2016
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“कुंडलिया”कल्पवृक्ष एक साधना, देवा ऋषि की राहपात पात से तप तपा, डाल डाल से छांह डाल डाल से छांह, मिली छाई हरियाली कहते वेद पुराण, अकल्पित नहि खुशियाली बैठो गौतम आय, सुनहरे पावन ये वृक्षमाया दें विसराय, अलौकिक शिवा कल्पवृक्ष॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी    

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"बसंत जगा रहा है"

14 मार्च 2016
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"बसंत जगा रहा है"शायद वो बसंत है, जो पेड़ों को जगा रहा हैमंजरी आम्र का है, कुच महुआ सहला रहा हैबौर महक रहें हैं बेर के, सुंगंध बिखराए हुएरंभा लचक रही है, बहार कदली फुला रहा है।।किनारे पोखर के सेमर, रंग पानी दिखा रहा हैकपास होनहार रुईया को, खूब चमका रहा हैपीत वदन सरसों, कचनार फूल गुलमोहर काबिखरें हैं

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”दोहा”

9 अगस्त 2016
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”दोहा”सावन सावन मत कहों, आवत नहि वनमोरभरि गागरिया ले खड़ी, कहाँ गयो चितचोर॥-1 उमस रही है बादरी, ललक बढ़ी हैज़ोर आ रे साजन झूलना, लचक रही हैडोर॥-2महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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“दोहा मुक्तक”

29 अप्रैल 2016
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मंच को सादर निवेदन है एक मुक्तक..........“दोहा मुक्तक”चिंतन यू होता नहीं, बिन चिंता की आह बैठ शिला पर सोचती, कितनी आहत राहनिर्झरणी बस में नहीं, कमल पुष्प अकुलाय कोलाहल से दूर हो, ढूढ़ रही चित थाह॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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एक दोहा मुक्तक..........

16 अगस्त 2016
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गंगा यमुना कह रहीं, याद करों तहजीबहम कलकल बहते रहें, ढोते रहे तरकीबअवरुद्ध हुई है चाल, चलूँ मैं शिथिल धार   सागर संग लहराऊँ, चलूँ किसके नशीब।।  महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"दोहा मुक्तक"

5 फरवरी 2016
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सादर सुप्रभात आदरणीय मित्रों, आज एक चित्रअभिव्यक्ति आप सभी को सादर निवेदित है........“दोहा मुक्तक”पारिजात का पुष्प यह, खिली कली मुसकाय देवलोक की सुंदरता, निरखि हृदय ललचायअति पवित्र अति सादगी, अति सुगंध आकार  अतिशय कोमल रूप-रंग, शोभा बरनि कि जाय॥ महातम मिश्र  

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रक्षाबंधन पर एक कुंडलिया

18 अगस्त 2016
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गुरुवार- चित्र अभिव्यक्ति आप सभी मनीषियों को पावन रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना.......जय माता दी....... "कुंडलिया" बैठो मत उदास सखे, हर्षित राखी आज बहनों का आशीष है, थाली कंकू साज थाली कंकू साज, कलाई धर दे अपनी वादा कर शिरताज, झोलियाँ भर दे सपनी कह गौतम चितलाय, हिया में आकर पैठो नेकी क

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"संस्मरण"

1 मई 2016
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मंच को सादर प्रस्तुत है एक संस्मरण...........यूँ तो बात बहुत पुरानी है पर है पते की। 1970 के दशक का दौर था मेरे अनुज की शादी में राजदूत मोटर सायकल दहेज़ में मिलने वाली थी। उस वक्त सपने में सायकल ही बड़ी मुश्किल से आती थी यहाँ तो फड़फड़िया फड़फड़ा रही थी। दहेज़ जरुरत तो कभी न रहा हाँ सम्मान पर खूब चढ़ता-उतरत

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एक मुक्त रचना.....

30 अगस्त 2016
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"एक बेटी- शिक्षिका बनने की ख़ुशी" ख़ुशी मिली है ख़ुशी मिली है यारों मुझको ख़ुशी मिली है......मेहनत लगन अधीर हुई थी करम करत तन पीर हुई थी आशा और निराशा के संग बोझिल यह तकदीर हुई थी आज मुझे भी सुबह मिली है यारों मुझको ख़ुशी मिली है...... अक्षर अक्षर लकीर हुई थी शब्द सुलह

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"मत्तगयंद/ मालती सवैया"

16 मार्च 2016
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"मत्तगयंद/ मालती सवैयाजा मत छोड़ मकान दलान मलाल जिया मत राखहु स्वामीधीरज धारहु आपुहि मानहु जानहु मान न पावत नामी।।खोजत है मृग राखि हिया निज आपनि कोख सुधा कस्तूरीपावत नाहि कुलाच लगाय लगाय जिया जिय साध अधूरी।।शौक श्रृंगार तजौ पिय आपनि भोग विलास अधार न सांईमोह मया तजि आस भरो मन रेत दिवाल कहाँ लगि जाई।।न

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&quot;गीतिका&quot;

30 अगस्त 2016
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"गीतिका" शाम का पहर है चांदनी भी खिली होगी आ चलें समन्दर किनारों पे गलगली होगी वो लहर उफ़नकर चूमती जो दिदारों को जान तो लो किस हसर में वो तलहटी होगी।। मौजा उछल रही होगी चिघड़ती दहाड़ती भूगर्भ में मची अब कैसी खलबली होगी।। धार नहाती होगी रिमझिम फुहार लिए मचलती होगी

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मुक्तक

3 मई 2016
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5शीर्षक-मुक्तक, उपवन , बाग़, बगीचा, उद्यान, वाटिका, गुलशन। मंच को सादर प्रस्तुत है एक मुक्तकपथिक भी अब बाग में रुकता नहींछांव उपवन में कहीं दिखता नहींउजड़ा हुआ गुलशन बिरानी वाटिकाभौरा भी कलियाँ जबह करता नहीं॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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हाइकू”

30 अगस्त 2016
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शिक्षा शिक्षा है बेहतर है शिक्षा ले तो लो शिक्षा॥-1 शिक्षित घर खुशियों का आँगन हरें हैं बाग॥-2 नौ मन भार पढ़ाये बचपन झूकी कमर॥-3 खेलेने तो दो अपनी गलियों में नौनिहाल हैं॥-4 ये भविष्य हैं उछलता कूदता हर्षित देश॥-5 बेटी हमारी खुशिहाली घर क

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“तारनहारा है” (भजन)

14 अगस्त 2015
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गोकुल मथुरा वृन्दावन, कणकण में समाया है राधे राधे बोलो, बोलो कृष्ण कन्हैया आया है ||गोकुल की गैया ग्वालबाल मैया को जगाया है मथुरा में किया हडकम्प सुदर्शनधारी आया है भादों की रातें कारी यमुना है बिकल मझारी कंस किया बेहाल लाल देवकी का जाया है ||बंसी बजाये कदम की डारी सबका प्यारा है मिश्री माखन चुरान

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"कुंडलिया"

30 अगस्त 2016
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"कुंडलिया"लालाका यह जन्म दिन, रोहिणि खासम खासबुधवारीतिथि पावनी, गुरूवार उपवासगुरुवारउपवास, उदित यह महिमा भारीमथुराभयो प्रकाश, पधारे हैं गिरधारीकहगौतम चितलाय, गोकुला में गोपालायशुमतिकोंख सुहाय, देवकी माँ का लाला।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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"" किसकी छबी है ये

6 मई 2016
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मंच के समस्त सम्माननीय सदस्यों के समक्ष सादर प्रस्तुत है एक ग़ज़ल……..“गज़ल” (किसकी छबी है ये)किसने इसे फेंका यहाँ, रद्दी समझ कर के हाथों से उठा अपने, पड़ी किसकी छबी है ये यहाँ तो ढ़ेर कचरे का, इसे भी ला यहीं डाला महज कूड़ा समझ बैठा, बता किसकी छबी है ये॥ जरा सी जान बाकी है,

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“मुक्तक”

30 अगस्त 2016
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“मुक्तक”प्रदत शीर्षक- दर्पण,शीशा ,आईना,आरसी आदिशीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतेंतहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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कुंडलिया

18 मार्च 2016
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शुक्रवार '' चित्र अभिव्यक्ति आयोजन ''( 18.3.2016) ♧♧"कुंडलिया छंद"देखता बादल को है, नित सोचता किसानसीढ़ी होती स्वर्ग की, करता एक विधानकरता एक विधान, दौड़ के उसपर चढ़ताकरता तुझमे छेद, खेत का पानी बढ़ताकह गौतम कविराय, हाथ से लक्ष्य भेदतातुमहि देत बतलाय, सुनहरी फसल देखता।।महातम मिश्र (गौतम)

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कुंडलिया छंद.....

1 सितम्बर 2016
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गुरुवार- चित्र अभिव्यक्ति आयोजन एक कुंडलिया छंद..... चाहे काँटें पथर पग, तिक्ष्ण धार हथियार पुष्प प्रेम सर्वत्र खिले, का करि सक तलवार का करि सक तलवार, काटि नहि पाए चाहत जुल्म-शितम हरषाय, अंकुरण करि करि आहत कह गौतम चितलाय, प्रकृति की कोमल बांहें आलिंगित करि जांय, को

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“जिंदगी भी अजीब है”

11 मई 2016
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 दिन गुजर होता है  रात बसर होती हैसुबह शाम हँसती है धूप में पिघलती है बारीश में बरसती है  जिंदगी भी अजीब है खुसर पुसर चलती है॥अरमानों का जखीरा गमों का पहाड़ खुशियों की बौछार अपनों का दुलार पायदानों में होती हैजिंदगी भी अजीब है खुसर पुसर चलती है॥तन्हाइयों का रेला मिजाजों का झमेला जबाबदारीयों का ठेला च

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मनहर घनाक्षरी

7 सितम्बर 2016
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"मनहर घनाक्षरी" सुबह की लाली लिए, अपनी सवारी लिए, सूरज निकलता है, जश्न तो मनाइए नित्य प्रति क्रिया कर्म, साथ लिए मर्म धर्म, सुबह शाम रात की, चाँदनी नहाइए कहत कवित्त कवि, दिल में उछाह भरि, स्वस्थ स्नेह करुणा को, हिल मिल गाइए रखिए अनेको चाह, सुख दुःख साथ साथ, महिमा मानव

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“शीर्षक मुक्तक”

23 फरवरी 2016
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सादर शुभप्रभात प्रिय मित्रों, कुछ दिनों के पश्चात आप सभी से पुन: मिलन का सौभग्य मिला, माँ गंगा का आशीष मिला और आप सभी का स्नेह मिला, आज मंच के सम्मान में एक दोहा शीर्षक मुक्तक आप सभी को सादर निवेदित है...........शीर्षक है, अंधकार/अँधेरा/तिमिर/तीरगी“शीर्षक मुक्तक”मन में उठा विषाद है, अंधकार को दोष रे

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“दोहा मुक्तक”

11 मई 2016
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शीर्षक -- पहाड़ /पर्वत / भूधर<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->गिरि से उतरती गंगा, कलकल करती धारभूधर भूमि निहारता, जल ज़मीन का प्यारहरियाली धरी बसुधा, तरु पल्लवित सुवासमिल जाती है बेहिचक, सागर पानी खार॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी 

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“भर दो, मांग मेरी”

7 अगस्त 2015
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इस बेटी की ऐसी तो किस्मत कहाँ कठपुतली है मेरी, जरुरत तुम्हारी बाबुल का घर मेरी आँगन सगाई ये मेहंदी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ॥शिकवा करें ना शिकायत करें ना खिलने में कोई रियायत करें खनकेगी इशारों पे हरदम सनम यें चूड़ी है मेरी, जरुरत तुम्हारी ॥इस बेदी पर बैठी हूँ घूँघट तलें अरमानों को अपने दबा कर गले म

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“दास्ताँ प्यार का”

17 अगस्त 2015
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हम दोनों चले दिल साथ रहा, भीगी पलकें बरसात हुयी रात चाँद कुछ यूँ चहंका, ख्वाबों में तनिक मुलाकात हुयी |आगोंस में लिपटी रात सनम, छाया-साया के साथ हुयी रातों का मुसाफिर रुक ना सका, ना उससे कोई बात हुयी ॥राधा की डगर या मीरा की, वह कब राहों में टिक पाया कभी रिति-प्रीति ने ठुकराया, कभी जाति-धर्म ने मरवाय

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“कुण्डलिया”

1 जनवरी 2016
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सादर सुप्रभात मित्रों, वर्ष 2015की शानदार विदाई और नव वर्ष का शुभ स्वागतम का समय है। एक कुण्डलिया आप सभी को सादरप्रस्तुत है, हार्दिक बधाई सह.........“कुण्डलिया”नए वर्ष की आरती, सजी हुई है थाल गुजरे हुए महारथी, यादों में गत साल यादों में गत साल, बढ़ाए अगली पीढ़ीउद्दमी है खुशहाल, चढ़ें जो सौ सौ सीढ़ी कह ग

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कुण्डलिया छंद

27 जनवरी 2016
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सादर शुभ दिवस, एक कुण्डलिया आप सभी को सादर निवेदित है"कुण्डलिया"सरदी आखिर आ गई, लिए बरफ की छाँवकांपे चीन अमेरिका, ध्रूज रहा है पाँवध्रूज रहा है पांव, ठंढ लोगों से कहतीभर दूंगी गोदाम, बरफ झरनों में बहतीकह गौतम कविराय, न है कुदरत बेदरदीनाहक बैर लगाय, पहाड़ा पढ़े न सरदी ।।महातम मिश्र (गौतम)

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शीर्षक मुक्तक

1 मार्च 2016
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01 मार्च , 2016 ____मंगलवार, शीर्षक मुक्तक आयोजनप्रदत शीर्षक, मुद्रा/रुपैया /रुपया आदि“शीर्षक मुक्तक”हे यदुनंदन अब तो आओ, जग की नैया पार लगाओ विवश हुआ है जीवन जीना, एक बार तो चक्र चलाओ।  रुपया पैसा जग जीवन में, हे प्रभु बहुत महान हुआ आके देखों अपनी द्वारिका, गोकुल मथुरा पार लगाओ॥महातम मिश्र

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"हाइकू"

4 अप्रैल 2016
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“हाइकू”नाम भकोल दुलहा बकलोल घोड़ी चढ़ा है॥-१धनी है बाप खूब सजी दुकान झूमें बाराती॥– २कन्या की शादी वारीश की मुनादी आई बारात॥ -३सुहागिन है वर बड़ भाग्य है ले सात फेरा॥ -४शहनाई है कुल से विदाई है शादी बारात॥ -५महातम मिश्र (गौतम)

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"दिगपाल छंद"

15 जून 2016
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दिगपाल छंद पर पहला प्रयास, 12-12 पर यती, प्रथम यति के अंत में गुरु, और द्वितीय अति के अंत में दोगुरु तथा दो पंक्तियों का तुकांत......"दिगपालछंद"भुजबल की ताकत ही, साथ निभाती भायापराए की छाँव तो, मोहिनी धरे माया।।करमो धरम के बिना, हिलती न नीर नैयाआलस की बाजी को, पार लगाए दैया।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपु

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