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कहॉ हो तुम

30 सितम्बर 2015

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featured imageअंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के, ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें। घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्‍त तीरों से, तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।। मेरी ये दोनों पलकें है, क्‍यों दृग जल से गीली, जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।। कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब खिलती थीं, पर जीता रहा निरन्‍तर, तुम स्‍वप्‍नों में मिलती थीं ।। आशाओं की जीवन में आईं बन कर बाराती, जी भर कर दिल से खेलीं फिर खाली कर दी छाती।। क्‍यों राेता रहा निरन्‍तर ये दुखित ह्रदय है मेंरा, जब अनजानों की खातिर, तुमने मुख मुझसे फेरा ।। अब नहीं फूटने कोपल, मेरी सूखी शखों से, कब ठूॅठ हरें होने हैं, बहते ऑसू ऑखों से ।। तुम बजा बजा कर हॅसती हो, शायद घर में ताली, हम रोते हैं छिन छिन में, छिन गया हमारा माली।। जब वर्षा में हल्‍की सी, ठंढी फुहार आती है, मेरे अभिशप्‍त ह्रदय में एक टीस उठा जाती है।। पर मेरे कटु जीवन से, तुमको क्‍या लेना देना, तुम तो प्रसन्‍न होती हो, मुट़ठी में लेकर सोना ।। तुमको न सुनायी देगी, मेरे क्रन्‍दन की वीणा, तुम कन्‍दुक समझ ह्रदय को करती रहतीं हो क्रीड़ा, आखिर क्‍यों मेरे मन की, रौदी तुमने फुलवारी, तुम पर मिटने की अपनी, पहले सी थी तैयारी ।। वो प्रेम नहीं सपना था फिर भी कुछ तो अपना था, ऑखें तुम पर टिकनीं थी, बस नाम तेरा रटना था ।। तुमको आखिर क्‍या सूझा, तोड़ा विश्‍वास हमारा, तुम छोड़ गईं हॉथों में, मेरे तपता अंगारा ।। आकाश धरा सागर का, ढूढा हर कोना कोना, तुम कहॉ छुपी बैठी हो, प्रिय अब तो बतला दो ना।। *******************************

सुशील कुमार रावत की अन्य किताबें

सुशील कुमार रावत

सुशील कुमार रावत

धन्‍यवाद वर्तिका जी

7 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

विछोह को गहराई से परिभाषित करती आपकी रचना, "आकाश धरा सागर का, ढूढा हर कोना कोना, तुम कहॉ छुपी बैठी हो, प्रिय अब तो बतला दो ना।" उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई!

1 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
sheel
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मेरे गीत व कवितायेँ
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कवि

21 सितम्बर 2015
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हाँ मैं कवि हूँ ,प्रकृति के छोरों को, बाँध -बाँध धागों में !एक- एक शब्द बाँट सहस्त्रों भागों में ,कवितायेँ रचता हूँ ,साहित्य का अवि हूँ,हाँ मैं कवि हूँ !!

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दीप की महानता

21 सितम्बर 2015
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दीप तुम महान हो !!अँधेरी रातों में,प्रियतम के हांथों में ,हीरे से दिखते हो,किरणों की खान हो!दीप तुम महान हो !!अति शांत चित्त हो, बड़े ही पवित्र हो ,यामिनी की छाती पर ,सदा विद्यमान हो !दीप तुम महान हो !!भक्ति के प्रतीक हो, ह्रदय के समीप हो ,पथिकों के मित्र हो ,पतंगों की जान हो !दीप तुम महान हो !!किया

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खंडित ह्रदय

22 सितम्बर 2015
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वह मुग्धा यूं ऊर बशी ज्यों माटी में प्राण,रूठी तो मानी नहीं, कितने दिये प्रमाण।कुछ पग चलकरके रूकी, देखा मेरी ओर।आगे चल फिर मुड् गई पहुॅच गली के छोर ।जाकर फिर लौटी नहीं, कितनी देखी राह। आखिर मे मन थक गया, मुख से निकली आह। पत्रों में भी शब्द् के, ऐसे मारे बॉण। हृदय टूट कर यूॅ गिरा ज्यों माटी के भॉड

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कहाँ भूलूंगा

22 सितम्बर 2015
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ऐसा अविरल प्यार कहॉ भूलूॅगा !केश घटा आकार कहॉ भूलूॅगा !तेरे तीखे नयन धनुष के उन बाणों के ,दिल पर हुए प्रहार कहाँ भूलूंगा !*********************याद मुझे है कीर्ति लता के उन पन्नों में ,छुपा -छुपा कर भेजा करती थी वो पाती ! प्रतिदिन छत पर आ जाती थी मिलने,छण भर का अवकाश अगर वो पाती !!*******************

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निष्‍ठुर परिवर्तन

23 सितम्बर 2015
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ओ निष्‍ठुर परिवर्तन तू , मत आना मेरी गलियों में,तेरे डर से हलचन है , मेरी बगिया की कलियों में ।जिनके दिल का रश पीने काे, बैठे हैं भंवरी सारे, उनकी खुशियों के पराग कण, सिमट गये हैं नलियों में ।।ओ निष्‍ठुर परिवर्तन ………मत आना तू तेरे डर से, पुष्‍पों में अकुलाहट है,प्रात: ही तोडे जायेंगें, सबके मन में आ

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बोनसाई

24 सितम्बर 2015
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गमले में पेड़ों का होना,जैसे पिंजरे में मैना,एक छोटी ब‍गिया में जैसे,रक्‍खा जाये मृग छौना,कैसे कटते होगें दिन,और कैसे कटती होंगी रातें,किससे कर पाते होंगें वो,अपने दिल की सारी बातें,कैसे कटता होगा उनका,जीवन यूॅ बनके बौना,गमले में पेड़ों का होना,जैसे पिंजरे मे मैना ।।

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क्‍या और गरल पीना होगा

29 सितम्बर 2015
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आह व्‍यथा क्‍या सहते सहते ही जीवन जीना होगा,बदन हो गया है नीला क्‍या और गरल पीना होगा ।।पीड़ा से दुखता है तल मन, धीरज का सारा संचित धन,कोई कब का चुरा ले गया, सब अच्‍छा ओ बुरा ले गया।।आशाओं के लिपि चित्रों पर काली काली पोत सियाही ,क्यों आँचल में छेद कर रहा भूल गया ये था उसका ही !!उसने ही अपने हॉथों स

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हॉ मैं कवि हूॅ

30 सितम्बर 2015
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स्‍वप्‍नों में रहता हूॅ,भावों में बहता हूॅ। अपने मन की सुनता हूॅ,अपने मन की कहता हॅ।। नीर छीर विवेक की,अ‍ति विशिष्‍ट छवि हूॅ ।। हॉ मै कवि हूॅ.............. प्रकृति के छोरों को,बॉध बॉध धागों में। एक एक शब्‍द बॉट,सहस्त्रो भागों में ।। मेघों को चीर कर,निकलता हुआ रवि

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कहॉ हो तुम

30 सितम्बर 2015
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अंतिम पल शेष रहे हॅ,मेरे पीड़ित जीवन के,ओ प्रेम पथिक आ जाओं मुंदने से पहले पलकें।घायल है ह्रदय हमारा, अगणित विषाक्‍त तीरों से,तुम हॅस कर खेल रहीं हो, निजी घर में यूॅ हीरों से।।मेरी ये दोनों पलकें है, क्‍यों दृग जल से गीली,जब तुम इठलाती फिरती हो, आेढ चुनरिया नीली।।कॉटे ही थे जीवन में, मृदु कलियॉ कब ख

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शायरी

7 अक्टूबर 2015
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खा न जाये ये अंधेरी रात मुझको इसलिए,                याद का उसकी जला रक्‍खा है मैने ये दिया ।। पर उसे क्‍या खबर, वो खेल समझी है इसे,                 जिसको चाहा दे दिया दिल जिससे चाजा ले लिया।।                                    **********कस्‍तियॉ डूब न जायें जो ये मझधार न हो,                  कोई यूॅ

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यादें

14 अक्टूबर 2015
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आज उठी फिर अन्‍तर्मन में, भूली बिसरी सी ज्‍वाला ।फिर से इस ह्रदय पटल पर, उन मेघों ने डाका डाला !!विमुख हो चुका था जिनसे मैं, भूल गया था जिनके दॉव ।आज अचानक हेर घेर कर, हाय दे गये कितने घाव  ।।यौवन की थीं कुछ यादें,  और कुछ  यादें थी तरूणाई की ।कुछ उसके अधरों की थीं, और कुछ उसकी अगणाई की ।।उस यौना का

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बाहुबली नेता

14 अक्टूबर 2015
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जिंदगी कुछ और सस्‍ती हो गई।शहर में इन कातिलों की,जबसे बस्‍ती हो गई।दूध जिनको था पिलाया,अब वही हमको डसेंगें ।अब तो सत्‍ता जालिमों की,ही गिरिस्‍ती हो गई।।

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गॉव

14 अक्टूबर 2015
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शहरों से दूर गॉव, मस्‍ती मे चूर गॉव, ठण्‍ढी बयारों में, हल्‍की फुहारों में, सावन में लगते हैं, जन्‍नत की हूर गॉव ।।

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