7 फरवरी 2022
सोमवार
मेरी प्रिय सखी,
चलो एक बार फिर से बच्चा बन जाते हैं।
स्लेट पेंसिल लेकर पढ़ने बैठ जाते हैं।।
दुनिया की दुकानदारी अब नहीं आती समझ।
इससे तो अच्छा था बने रहते बच्चे ही हम।।
कई बार मन ना जाने क्या सोचने लग जाता है। पंख लगा मानो बचपन की तरफ उड़ने लग जाता है। अभी आए बसंत पंचमी के दिन मन बहुत उदास हो गया था।
बचपन के वे उल्लास भरे दिन खुशियां न जाने कहां काफूर हो गई हैं। समय के साथ-साथ जिम्मेदारियों के बोझ तले शायद कहीं हवा हो गई है।
मुझे इस दिन का खास इंतजार रहता था बसंत पंचमी के दिन का। इस दिन पिताजी कहते थे मां सरस्वती पुस्तकों में हमारे लिए हमारा भविष्य लिखतीं हैं। इसलिए आज के दिन पढ़ना नहीं चाहिए और हम खुश होकर सारी किताबें मां सरस्वती के सामने रख दिया करते थे। सारा दिन उछल कूद मचाते रहते थे, लेकिन पढ़ते नहीं थे।
पिताजी का हर दिन पढ़ाई के लिए टोकना आज के दिन बिल्कुल शांत हो जाना हम लोगों को दोनों सिक्के के दो पहलू लगते थे।
समय कितना बदल गया है। शायद पीढ़ी बदल गई है उसी का नतीजा हो। पता नहीं।
सुबह उठकर नहा धोकर भगवान को एक दूसरे से पहले पुष्पांजलि देने के लिए हम बच्चों में रेस सी लगी रहती थी। चाहे मां सरस्वती के सामने किताब रखने की हो, चाहे अपनी किताबें सबसे ऊपर रखने की।
दोपहर को स्कूल से आकर खिचड़ी खाना, खिचड़ी में ऊपर से बार बार घी डलवाना कितना भाता था हम लोगों को। और आज बच्चे कितने हेल्थ के प्रति जागरूक हो गए हैं।
घी नहीं खाना, ऑयली नहीं खाना और भी न जाने कितना कुछ कहकर कैलोरी का एक लंबा चौड़ा चिट्ठा पेश कर देते हैं। इस उम्र में हम लोग तो इन सब से अछूते ही थे। जो मिला वही खा लिया करते थे।
मैं अपनी बेटी और बेटे का भी देखती हूं वे भी तैलीय खाने को ना पसंद करते हैं।
तुम्हें तो पता ही है जब भी बहनों का फोन आता है बस कहतीं है मुझे भूल ही गई है फोन कर लिया कर।
कल बेटा एग्जाम देकर आया। पता नहीं क्या होगा? बच्चे बड़े होते हैं तो उनकी नौकरी की, बेटियों की शादी की बड़ी फिक्र होने लगती है। कई बार लगता है भगवान जो करेगा अच्छा ही करेगा।
हम लोगों के समय तो शादी की बात चलते ही हम लोग लजा जातीं थी। आजकल की लड़कियां तो बरस पड़ती है नहीं करनी हमें शादी।
चलो फिर बात करती हूं तुमसे। चाय का समय हो गया, चाय पीते हैं।
प्रतिलिपि लेखिका
पापिया