11 फरवरी 2022
शुक्रवार
समय-07:55
मेरी प्रिय सखी,
कल जिन कामों की अधिकता महसूस करने के कारण लग रहा था कि शायद सिर फटने वाला है उनमें से कुछ काम करने ही नहीं थे। इस बात का जब पता चला तो थोडी राहत मिली।
वे कार्य करने तो है लेकिन कुछ समय अंतराल करने पर भी कोई परेशानी नहीं होगी। फिर मैंने राहत की सांस ली।
कई बार लगता है कि लोगों में धोखाधड़ी करने की प्रवृत्ति शायद इतनी भरी हुई है कि कोई चाहे कितना भी कह ले। लेकिन उनमें धोखाधड़ी की प्रवृत्ति शायद नहीं जाएगी।
अब देखो ना कल ही दोपहर को मैं अंगूर खरीद कर लाई। उसके पास दो तरह के अंगूर थे। एक जो बंधे हुए और दूसरे जो लच्छों से बिखर गए थे। बंधे लच्छों का अलग मूल्य, बिखरे हुए अंगूरों के अलग मिले थे। मैंने उसे लच्छों में बंधे हुए अंगूर के दाम पूछे।
उसने कहा बंधे अंगुर 50 को है और बिखरे हुए 40 के है। उसने कहा बिखरे हुए ले जाइए।
मैंने उससे कहा बिखरे अंगूर सस्ते हैं लेकिन वे ज्यादा दिन नहीं चलेंगे।
तो तुम बंधे अंगुर 1 किलो पैक कर दो। ऐसा कह कर मैं पैसे निकालने लगी और जब घर आकर देखा तो पता चला उसने नीचे बिखरे अंगूर भी रख दिए थे। मेरे इतना मना करने के बाद भी उसने अपनी होशियारी दिखा ही दी। उसने वही किया जो उसके मन में था। बस तुरंत मुझे वो गाना याद आ गया।
थोड़ी हममें होशियारी है, थोड़ी है नादानी
थोड़ी हममें सच्चाई है, थोड़ी बेईमानी
फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।
फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।।
फिर मिलती हूॅं सखी तुमसे, अभी के लिए इतना ही।
तुम्हारी सखी
पापिया