वो जिन्दगी क्या जिसमें देशभक्ति ना हो.. और वो मौत क्या जो तिरंगे में लिपटी ना हो।
पुलवामा आतंकी हमला जिसे तीन साल हो चुके हैं। लेकिन फिर भी इसके जख्म और दर्द आज हरे हैं।
यह वो दिन है जिसे हम कभी भूलेंगे नहीं और न ही दोषियों को माफ करेंगे। 14 फरवरी जब लोग वेलेंटाइन डे पर अपने दोस्तों के साथ इस दिन का जश्न मना रहे थे, तभी दोपहर करीब पौने चार बजे टीवी पर पुलवामा हमले की खबर आई। पूरा देश सन्न रह गया।
देश में मनाई जाने वाली खुशियों पर कुठाराघात। क्या हालत हुई होगी जब परिवार जनों के पास देश के सपूत तिरंगे में लिपटे हुए घर पहुंचे होंगे
शायद मां की आंखें तो रोते-रोते छलनी हो गई होगी और विराम या शायद चोरी चोरा हो गया होगा सीना मां का कि मैंने ऐसे लाल को जन्म दिया इसने मेरी शादी का दूध पिया और देश के खातिर अपना लहू कुर्बान कर दिया।
क्षत्राणी अभी तो ऐसे ही कहती थी। आज भी देश की हर मां ऐसे ही बच्चों को शिक्षा देती है।
कई बार तो बेटे की शहादत पर पिता कहता है कि मैं अपने एक और पुत्र को देश के लिए देने को तैयार हूं। पुत्र को मां भारती को समर्पित करने वाले इस प्रकार के अभिभावक भी पूजनीय है।
जो देश की खातिर अपने नौनिहालों को कुर्बान करने में पीछे नहीं हटते।
पुलवामा हमले में उन शहीदों को शत-शत नमन जिन्होंने देश की खातिर अपना बलिदान कर दिया।
आज हम चैन से सोते हैं क्योंकि
देश की सीमा पर सैनिक अपना जीवन तपाता है ।
प्रतिलिपि लेखिका
पापिया