जो सामने बीत रहा है बचपन।
नन्हे पौधे में भी पनपेगा यौवन।
ताली एक हाथ से नही बजती,
पिता का जीवन है इसमे अर्पण।
पूरा संसार घर ले आता
भूखा रहकर रुखा सुखा खाता
एक नन्हे जान की खातिर,
अमीरो की गुड़िया ले आता।
शाम को उनके आने का राह ताकते
जाकर दरवाज़े पर बार बार झांकते
मन में गम तो कभी खुशी लिये,
सुबह दोपहर शाम तक जागते ।
माँ के सपनो का सौदागर
बच्चो को पाल पोषकर
वो रहता मैले कपड़ो में,
जो ईट पकाता आग लगाकर।
वो नीव जिसमे माँ गुनगुनाते
वो नीव जिसमे बच्चे खिलखिलाते
समा बाँधा है पिता ने इस तरह,
यहाँ पराये भी अपने कहलाते।
save tree🌲save earth🌏 save life❤