आज एक पिता अपने मन की भावना को लिख रहा है है जिसने अपनी बेटी की दुर्दशा को शब्दों में व्यक्त किया है।
नटखट सी थी वो थोड़ी, थोड़ी शैतान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
थोड़ी सी थी वो चंचल थोड़ी नादान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
वो छू लेती आकाश को अपने पंख से
होंसलों से ऊंची उसकी उड़ान थी।
छाया नहीं थी वो मेरी, मेरा सम्मान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
जीवन भर रखता उसको अपनी पलकों पर
सब लूटा देता खुशियां उसकी झलकों पर
इस समाज की बुराई से वो अनजान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
एक रात का सन्नाटा उसको डराएगा
उसको क्या थी खबर क्या गुजर जाएगा
वो रोई होगी शायद कोई तो आएगा।
कुछ हैवानों से कोई उसको बचाएगा।
किस दर्द में थी वो पड़ी बेजुबान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
किसको सुना दूं अपने दिल की ये व्यथा।
आसान नहीं बनना एक लड़की की पिता।
मेरी सारी खुशियां बिखरी सरेआम थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
हिस्सा नहीं थी वो मेरी पहचान थी।
बेटी नहीं थी वो मेरी नन्ही सी जान थी।
धन्यवाद......