प्रेमचंद भारत के सबसे महान राइटर माने जाते हैं. हम कहते हैं वो सबसे नए और कूल राइटर थे. आज होते तो दर ऑफेंड होते लोग उनसे. ट्विटर पर उनको बहुत कोसा जाता और वेबसाइट्स उनकी कहानियों के बीच से लाइन निकाल-निकाल कोट्स बनाती. सन 36 था, दिन आज का था. आज मतलब 8 अक्टूबर. जगह बनारस थी और वो दुनिया छोड़ गए.
जब उनका जन्मदिन था. हमने आपको कहानियां पढ़ाई थी उनकी. पूरे हफ्ते. आज आपके लिए वही सारी कहानियां एक जगह लाए हैं. एक से एक कहानियां हैं. पढ़िए नॉन स्टॉप पढ़िए.
पहले पढ़िए कहानी मंत्र. नमूने का एक टुकड़ा ये रहा.
कई साल गुजर गए. डॉक्टर चड़ढा ने खूब यश और धन कमाया. लेकिन इसके साथ ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी की, जो एक साधारण बात थी. यह उनके नियमित जीवन का आर्शीवाद था कि पचास वर्ष की अवस्था में उनकी चुस्ती और फुर्ती युवकों को भी लज्जित करती थी. उनके हरएक काम का समय नियत था, इस नियम से वह जौ-भर भी न टलते थे. बहुधा लोग स्वास्थ्य के नियमों का पालन उस समय करते हैं, जब रोगी हो जाते हें. डॉक्टर चड्ढा उपचार और संयम का रहस्य खूब समझते थे.
कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक जमाइए.
फिर हामिद और दादी अमीना की कहानी ईदगाह . नमूना यहां पढ़िए.
हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है- तुम डरना नहीं अम्मां, मैं सबसे पहले आऊंगा. बिल्कुल न डरना. अमीना का दिल कचोट रहा है. गांव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं. हामिद का बाप अमीना के सिवा और कौन है! उसे कैसे अकेले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ से बच्चा कहीं खो जाय तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी. नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जायेंगे. जूते भी तो नहीं हैं. वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेकिन यहां सेवैयां कौन पकायेगा?
कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक जमाइए.
घीसू और माधव का ये किस्सा तो पढ़ा ही होगा?
चमारों का कुनबा था और सारे गांव में बदनाम. घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता. माधव इतना काम चोर था कि आध घंटे काम करता तो घंटे भर चिलम पीता. इसलिए उन्हें कहीं मजदूरी नहीं मिलती थी. घर में मुठ्ठी भर भी अनाज मौजूद हो, तो उनके लिए काम करने की कसम थी. जब दो चार फाके हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढक़र लकडिय़ां तोड़ लाता और माधव बाजार से बेच लाता और जब तक वह पैसे रहते, दोनों इधर उधर मारे मारे फिरते.
कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक जमाइए.
फिर ये कहानी जिसे पढ़ जी गिनगिना जाता है. सद्गति
यह कहकर दुखी फिर संभल पड़ा और कुल्हाड़ी की चोट मारने लगा. चिखुरी को उस पर दया आई. आकर कुल्हाड़ी उसके हाथ से छीन ली और कोई आधा घंटे खूब कस-कसकर कुल्हाड़ी चलाई; पर गांठ में एक दरार भी न पड़ी. तब उसने कुल्हाड़ी फेंक दी और यह कहकर चला गया तुम्हारे फाड़े यह न फटेगी, जान भले निकल जाय.’
कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक जमाइए.
अलगू और जुम्मन वाली कहानी. पंच-परमेश्वर
अलगू चौधरी सरपंच हुए. रामधन मिश्र और जुम्मन के दूसरे विरोधियों ने बुढ़िया को मन में बहुत कोसा.
अलगू चौधरी बोले-शेख जुम्मन ! हम और तुम पुराने दोस्त हैं ! जब काम पड़ा, तुमने हमारी मदद की है और हम भी जो कुछ बन पड़ा, तुम्हारी सेवा करते रहे हैं. मगर इस समय तुम और बूढ़ी खाला, दोनों हमारी निगाह में बराबर हो. तुमको पंचों से जो कुछ अर्ज करनी हो, करो.
कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक जमाइए.
पूस की अंधेरी रात! आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे. हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पतों की एक छतरी के नीचे बांस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा कांप रहा था. खाट के नीचे उसका संगी कुत्ता जबरा पेट मे मुंह डाले सर्दी से कूं-कूं कर रहा था. दो में से एक को भी नींद न आती थी.
कहानी पढने के लिए यहां क्लिक कीजिए.
और हां जाते-जाते नशा भी पढ़ते जाइए. जानिए कि बीर गांधीवादी था, ईश्वरी जमीदारों का लड़का, फिर क्या हुआ जब बीर जमीदारों के बीच पहुंचा.
गाड़ी चली. डाक थी. प्रयाग से चली तो प्रतापगढ़ जाकर रुकी. एक आदमी ने हमारा कमरा खोला. मैं तुरंत चिल्ला उठा-दूसरा दरजा है-सेकेंड क्लास है. उस मुसाफिर ने डब्बे के अंदर आकर मेरी ओर एक विचित्र उपेक्षा की दृष्टि से देखकर कहा, ‘जी हां, सेवक भी इतना समझता है, और बीच वाली बर्थ पर बैठ गया. मुझे कितनी लज्जा आई, कह नहीं सकता.’ भोर होते-होते हम लोग मुरादाबाद पहुंचे.
यहां क्लिक कर कहानी पर जाइए. खुद पढ़िए सबको पढ़ाइए.
साभार : The Lallantop