कल Whatsapp पर एक संदेश पढ़ा था:
"लड़की स्कूटी से लड़के के सामने जोर से गिरी और शर्मिंदगी से फौरन खड़ी हो गयी
लड़का : ओह माई गॉड, आपको लगी तो नहीं ?
लड़की : नहीं मै स्कूटी से ऐसे ही उतरती हूँ।
आज राज्यसभा से बहनजी के त्यागपत्र की खबर सुनी, तो ये मैसेज याद आ गया। राजनीति में अक्सर कारण कुछ बताया जाता है, लेकिन असली कारण कुछ और ही होता है। इस मामले में मुझे ऐसा ही लग रहा है।
लोकसभा चुनाव में शून्य सीटें मिलीं। उप्र विधानसभा चुनाव में भी बुरी तरह हार हुई। फिर हजार पांच सौ के नोट बंद करके मोदी ने काली कमाई को कागज़ बना दिया। वित्तीय झमेलों में भाई फंसा हुआ है। दलितों को अपना वोट-बैंक मानकर चल रहे थे, उसे भी छीनने का कोई मौका मोदीजी नहीं छोड़ रहे हैं। यहां तक कि कैशलेस ट्रांजेक्शन के लिए बने ऐप का नाम भी मोदी ने "भीम" रखकर लोगों से अपील कर दी कि इसका उपयोग करके बाबासाहब को श्रद्धांजलि दें। राष्ट्रपति पद के लिए जिसे प्रत्याशी बनाया, उसकी भी जाति का उल् लेख करके बहनजी की परेशानी बढ़ा दी।
अब राज्यसभा में बहनजी का कार्यकाल कुछ ही महीनों में ख़त्म होने वाला है। उनकी पार्टी के पास विधानसभा में इतनी सीटें नहीं हैं कि वे फिर से जीतकर राज्यसभा में वापस आ सकें। तो खुद को मसीहा बताने का इससे बढ़िया तरीका क्या होगा कि सिद्धांतों के नाम पर इस्तीफा दे दिया जाए?
क्या आपको याद नहीं कि २००४ में इसी तरह किसी और ने प्रधानमंत्री पद का भी 'त्याग' किया था!!!
मूल लेखक : सुमंत विद्वांस