एक "सेकुलर" मित्र ने मुझसे पूछा कि "आपने गंगा पर इतनी सुंदर पोस्ट लिखी, लेकिन उसमें आपने यह क्यों लिखा कि :
"ऐसा लगता है भारतभूमि के हर "हिंदू" मन की अपनी एक गंगा है!"
"हर "हिंदू" ही क्यों, हर "हिंदुस्तानी" क्यों नहीं?"
मैंने उनसे कहा, "भारत की आधी मुस्लिम आबादी यानी क़रीब क़रीब दस करोड़ मुसलमान गंगा नदी के किनारे रहते होंगे." उन्होंने कहा, "बिलकुल"! मैंने कहा, "तब आप मुझे बताइए कि :
1) कितने मुसलमानों ने मेरी उस पोस्ट को "लाइक" किया?
2) कितने मुसलमानों ने मेरी उस पोस्ट को "शेयर" किया?
3) कितने मुसलमानों ने मेरी उस पोस्ट पर "कमेंट" किए?
तक़रीबन डेढ़ हज़ार "लाइक्स" में से बमुश्किल एक या दो!
"सेकुलर पांडेय" सोच में डूब गए.
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फिर मैंने उनसे पूछा कि "अगर यही पोस्ट मैंने "गंगा" या "गाय" या "गीता" का उपहास करते हुए लिखी होती, जैसा कि हमारे पढ़े लिखे धर्मनिरपेक्ष लोग अकसर करते हैं, तो उस पर "लॉफ़िंग रिएक्शन" में मुसलमानों की क़तार नहीं लग जाती? आप फ़ेसबुक पर हिंदू प्रतीकों का उपहास करने वाली किसी भी पोस्ट के "लाइक्स" और विशेषकर "लॉफ़िंग रिएक्शंस" देख लीजिए! ऐसा क्यों है?"
"सेकुलर पांडेय" सोचने लगे कि इस पर कौन-सा "कुतर्क" प्रस्तुत करूं, उससे पहले ही मैंने कहा कि :
"अब दो बातें बताइए :
1) हाल ही में ईद मनाई गई. मुबारक़बाद देने के लिए हिंदुओं में होड़ लग गई. मैंने यह भी देखा कि "अब्दुल्ला दीवाने" की तरह हिंदू एक-दूसरे को ही "ईद मुबारक़" बोल रहे हैं. क्या आपने कभी देखा कि मुस्लिम भाई एक-दूसरे को फ़ेसबुक या वॉट्सएप्प पर किसी हिंदू त्योहार की मुबारक़बाद के लिए उस तरह से होड़ लगाए हों?
2) प्रसंगवश, अगर कोई हिंदू अपनी फ़ेसबुक वॉल पर कोई मुस्लिम विरोधी पोस्ट लिखता है तो कितने सेकुलर हिंदू उसका विरोध करने पहुंच जाते हैं? भीड़ लग जाती है! लेकिन क्या आपने कभी देखा कि कोई मुसलमान अपनी फ़ेसबुक वॉल पर कोई हिंदू विरोधी पोस्ट लिखे तो "सेकुलर मुसलमानों" की भीड़ यह कहते हुए उसका विरोध करने पहुंच जाए कि ख़बरदार जो हमारे भाइयों के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ भी बोला तो?
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इन तर्कों से अविचल "सेकुलर पांडेय" सांप्रदायिक एकता की मिसाल क़ायम करने के लिए किसी "फलां फ़ैज़ाबादी" की गंगा पर लिखी नज़्म सुनाने ही जा रहे थे कि मैंने कहा :
"जिस "गंगा जमुनी" संस्कृति के नाम में ही "गंगा" है, उसमें सांस्कृतिक सौहार्द के ये नज़ारे इतने इकहरे क्यों हैं, इतने विरल क्यों हैं? इनकी एक तरतीब क्यों नहीं नज़र आती? गंगा पर एक गीत, गाय पर एक नज़्म से क्या होगा? ये अपवाद की तरह दुर्लभ नहीं, नियम की तरह सर्वव्यापी होना चाहिए. अभी तो मुझे लगता है कि जैसे एकतरफ़ा ही मोहब्बत हो!"
सेकुलर पांडेय, जो कि स्वयं हिंदू थे, कुछ सोच ही रहे थे कि अब मैंने कहा :
"गंगा पर वह पोस्ट लिखने पर मुझे "संघी" कहकर पुकारा गया है लेकिन क्या गंगा हिंदुओं को ही अपना पानी देती है? दूसरे, गंगा नदी भारत की प्राण रेखा है और उसकी आराधना हर हिंदुस्तानी को करनी चाहिए, लेकिन जब आप गंगा को एक हिंदू प्रतीक मान लेते हो तो क्या आप प्रकारांतर से यह कहने का प्रयास नहीं कर रहे होते हैं कि केवल हिंदू ही हिंदुस्तानी हैं?"
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इन किंचित अकाट्य दलीलों से मेरे सेकुलर भाई अचकचा गए, तब मैंने अवसर देखकर कहा :
"क़ौमी एकता और भाईचारे की ताली एक हाथ से नहीं बजती, उसे दोनों हाथों को बराबरी से बजाना होता है और इक्का दुक्का मौक़ों पर नहीं, लगातार बजाना होता है, क्योंकि क़ौमी एकता एक साझा ज़िम्मेदारी होती है और वह काग़ज़ पर नहीं ज़मीन पर नज़र आनी चाहिए!"
सेकुलर मित्र ने कहा, "मैं इस पर थोड़ा चिंतन मनन करके आता हूँ."
मैंने कहा, "आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा रहेगी. किंतु सुनिए, रायशुमारी करने के लिए हिंदी के उस तथाकथित "महाकवि" के पास मत चले जाना, जिसके मन में मैल है, और जो बीते दो दिन में दो बार यह कह चुका है कि सुशोभित का मक़सद देश का एक और बंटवारा और मुसलमानों का क़त्लेआम करवाना है, और मांगे जाने पर भी वह अपने आरोप के पक्ष में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका है, क्योंकि सच्चाई का एक भटका हुआ लमहा भी आपको उस कुत्सित के पास नहीं मिलेगा!"
सेकुलर ने अन्यमनस्क मन से कहा, "जी अच्छा."
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मैंने चलते चलते कहा, "अच्छा सुनो, जब कोई सेकुलर पांडेय, मिश्र या दुबे नहीं, मुसलमानों का एक हुजूम आकर मुझसे कहेगा कि गंगा तो हमारी भी मां है, तब मैं अपनी पोस्ट को "एडिट" करके उसमें यह लिख दूंगा कि :
"ऐसा लगता है भारतभूमि के जन जन की हर मन की अपनी एक गंगा है!"
तब तक के लिए हार्दिक शुभेच्छा!
ऐवमस्तु!
मूल लेखक :Sushobhit Saktawat