ये लेखमाला 3 भाग की है
"प्यार के दो तार से संसार बांधा है ।
बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है।"
ये "रेशम की डोरी" फिल्म ही नही वरन् आदि काल से चली आ रही दो स्नेह मान के धागे से जुड़ा सम्पूर्ण इतिहास गवाह है । यह एक कच्चा धागा नहीं पूर्ण रक्षाकवच है ।
रक्षाबंधन का इतिहास सतयुग के जमाने से ही जुड़ा है ।आज भी रक्षाबंधन उसी परंपरा से मनाया जाता है । भले ही यह पर्व भी अन्य पर्वों की तरह दिखावा (गिफ्ट के चलन) के बोझ से दब गया हो फिर भी हर भाई को रक्षाबंधन के दिन सूनी कलाई देख अपनी बहन की याद आ ही जाती है । रक्षा बंधन के दिन उन भाइयों और बहनों की उदासी देख समझ सकते हैं जिनके भाई या बहिन नहीं है ।
इसकी शुरुआत सत्युग काल से ही हो गई थी । पाताल के राजा बलि बहुत ही दानी थे । वह भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे । एक बार विष्णु जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी, उन्होंने दो पग में ही पृथ्वी और आकाश नाप लिया ,इस पर राजा बलि ने अपना सिर झुका कर तीसरा पग रखने को कहा भगवान विष्णु उनकी यह भक्ति देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए । उन्होंने दानवेन्द्र बलि से वरदान मांगने को कहा----
राजा बलिने आग्रह पूर्वक भगवान से पाताल चलकर रहने को कहा श्री हरि पाताल मे ही रहने लगे ।प्रभु के पाताल वास के कारण लक्ष्मी जी बहुत परेशान हो गई। तब वह एक गरीब स्त्री का रूप धारण करके राजा बलि के पास गई और तीन कच्चे सूत्र से बनी डोरी से राखी बांधी ।
राजा बलि ने कहा मेरे पास देने को कुछ नहीं है तब लक्ष्मी जी ने कहा ,"आपके पास तो साक्षात् लक्ष्मीपति है और वह अपने असली रूप में आकर बोली मुझे केवल वही चाहिए"। राजा बलि से राखी सूत्र से मानी हुई बहन का दुख देखा नहीं गया और प्रभु को जाने की आज्ञा दे दी ।
जाते समय भगवान ने बलि को वरदान स्वरुप कहा हर साल 4 माह मैं पाताल में ही निवास करूंगा । चार महीना चतुर्मास के रूप में जाने जाते हैं और भगवान शयन में चले जाते हैं ।
दूसरी कथा भी सतयुग की ही है वृत्तासुर संग्राम के समय इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षा सूत्र तैयार कर श्रावण पूर्णिमा के दिन ही इंद्र की कलाई में बांधा था इंद्र विजयी हुए थे ।इस कच्चे धागे के सूत्र मे विजय भलाई सर्व भाव कामना निहित है।
तीसरी कथा द्वापर युग की है ।श्री कृष्ण और द्रौपदी की है शिशुपाल वध करके लौटे श्री कृष्ण जी की छिंगी(छोटी) उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई उससे रक्त बहने लगा तब द्रौपदी ने अपने साड़ी के पल्लू को फाड़ कर श्री कृष्ण की उंगली पर बांध दिया । तब भक्तवत्सल श्री कृष्ण ने कहा, "इस दो धागे का अमूल्य ॠण का मै कर्ज दार हुआ वह कभी समय आने पर चुकाऊंगा कहते है वह श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था जब चीरहरण के समय भगवान ने चीर बढ़ा द्रौपदी की लाज रखी थी ।
सिकंदर की जान बख्शने के लिए राजा पुरु को सिकंदर की पत्नी ने राखी बांधी थी । राखी देख पुरु भावविभोर हो गए थे । सिकंदर पर आक्रमण के लिए उठे हाथ में राखी देख वे ठिठक गए थे सिकंदर ने भी भाई-बहन के सम्मान की लाज रख उनका राज्य वापस दे दिया था।
मध्यकालीन युग में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए कोई रास्ता ना देख दिल्ली के बादशाह हुमायूं को कर्मवती ने राखी भेजी थी और हुमायूं ने भी अपना वचन निभाते हुए उनके राज्य की रक्षा की थी।
हर काल में राखी के इन कच्चे धागों का महत्व अमूल्य ही रहा है और लोग इस बंधन में बंध करके निर्वहन भी करते रहे हैं ।
आज भी किसी शुभ कार्य पूजन के पश्चात पंडित जी या आचार्य निम्न श्लोक पढ़कर विजय ,आयु,प्राण,यश व बल के लिए रक्षा सूत्र बांधते हैं।
येन बद्धो बलि राजा ,दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचलः ।
इस तरह कच्चा सूत्र अभिमंत्रित हो प्रभावी हो जाता है ।मेरी दादी गायत्री मंत्र पढ़कर भी बांधती थी ।
अगले भाग मे रक्षासूत्र (राखी)के विषय मे जो मैने अपनी दादी जी को बनाते देखा है ।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी