प्रस्तुत है माहात्मिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण प्रायः सभी के दिन उतार चढ़ाव वाले होते हैं समय की गति टेढ़ी मेढ़ी होती है यह सीधी रेखा में कभी नहीं चलती और इसीलिए यह संसार संसार - सागर कहलाता है संसृति इति संसारः जो प्रतिक्षण बदल रहा है लेकिन चल रहा है संसार स्थूल है तो सूक्ष्म भी है संसार कभी वापस होकर नहीं आता जन्म मरण भी सिलसिलेवार चलता रहता है जहां संवेदनशीलता का अभाव है वहीं दुराव है जहां दुराव है वहीं विघटन है कुण्ठएं है कलह है कष्ट है संसार का आचरण उतार चढ़ाव वाला है चिन्तनशील लोग पीड़ा पी लेते हैं भले ही वो किसी आत्मीय से मिली हो जिस व्यक्ति में कष्टदायक बात को पचाने की क्षमता जितनी अधिक होगी वो उतना ही सफल है और यह क्षमता
ध्यान धारणा स्वाध्याय अध्ययन चिन्तन संगति से विकसित की जा सकती है लेकिन परमात्मा की लीला है कि जिसके हिस्से में जो आया है वह उसे भोगना ही पड़ेगा आचार्य जी ने अपनी एक रचना सुनाई :-- दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी आपने एक प्रसंग सुनाया जब वे संघ के प्रचारक के रूप में हमीरपुर के पास सुमेरपुर गये थे शिक्षक का भाव रहता है कि वह सदाचार के माध्यम से प्रेरणा दे सके जो आत्मस्थ होने का प्रयास नहीं करता वह खीझते खीझते ही जीवन व्यतीत कर देता है आत्मस्थ होकर अपनी धुन की पूजा करो | आचार्य जी ने बताया कि लोमश ऋषि जिनकी कल उन्होंने चर्चा की थी अमर माने जाते हैं और एक लोमश -रामायण भी है l आचार्य जी
ने एक और कविता सुनाई कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है.... आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त इक प्यार का नगमा है (फिल्म :शोर ) जैसे भावपूर्ण गीत लिखने वाले गीतकार संतोष आनन्द की चर्चा की l आज का TAKE HOME MESSAGE आत्मस्थ होने का प्रयास करें |