प्रस्तुत है शक्तिमय व्यवहार करने का प्रेरण प्रदान करने हेतु सूक्ष्मबुद्धि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण शक्ति के बिना भक्ति नहीं हो सकती और वह शक्ति व्यर्थ है जो केवल भाषा में बंधी रहे भाव भाषा के माध्यम से जब तक शौर्य का संस्पर्श नहीं करता तब तक भक्ति पूर्ण नहीं होती सब काम करते हुए राष्ट्रार्पित रहना समाजार्पित रहना और प्रभुमय जगत् देखते हुए भी दुष्ट का दलन शिष्ट का पल्लवन हमारे जीवन में सतत् विद्यमान रहना चाहिए जो भी काम करें उस काम के पीछे ध्यान यह रखें कि उससे समाज -हित कितना हो रहा है और वही समाज अपना हित कर सकता है जिसमें शक्ति, भक्ति, भाव,विचार,संयम, साधना, समर्पण है ये सारा सामञ्जस्य मानव जीवन है सुख दुःख में समाज के साथ रहें और समाज की शक्ति समाज के संयम की वृद्धि हेतु ऐसे प्रयास करें कि लोग देख सकें कि अपनी गृहस्थी चलाते हुए ये काम भी किये जा सकते हैं | आचार्य जी ने संत और संतत्व की विस्तृत व्याख्या की संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु। बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु l l जगत हित के लिए कर्म आवश्यक है| आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, तेग बहादुर, राम कृष्ण परमहंस, बन्दा बैरागी, गुरु गोविन्द सिंह, रामदास आदि श्रेष्ठ संत रहे हैं संतत्व के कारण ही आज गंगा जी काफी साफ हैं l आचार्य जी ने बताया युगपुरुष महामण्डलेश्वर स्वामी परमानन्द गिरि जी महाराज जी विद्यालय आ चुके
हैं | संतत्व का वरण हम कैसे करें इस पर विचार करें | व्यायाम पूजन ध्यान सात्विक भोजन नियमित करें | भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम पृष्ठ (सावरकर ) को पढ़ने का आचार्य जी ने परामर्श दिया |