प्रस्तुत है वाग्य आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त (दीपावली ) का सदाचार संप्रेषण आज दीपावली है आज के दिन हम आत्मविश्वास जगाएं आत्मशक्ति जगाएं हमारे अन्दर संयम के साथ ऊर्जा भी हो अन्यथा संयम निराशा का उद्यम बन जाता है भारतवर्ष की ऊर्जा को अपने अन्दर प्रवेश कराएं दीपज्योति हमारे भीतर प्रवेश कर जाए अन्धकार को पचाएं प्रकाश को फैलाएं l आर्ष (अर्थात् ऋषियों के द्वारा) व्यवस्था के अन्तर्गत हमारे यहां जितने भी पर्व निर्धारित हैं वे सब सकारण हैं भगवान् राम आज ही के दिन रामराज्य का भार उठाने के लिए अयोध्या में प्रवेश करते हैं कल मुकेश जी ने आचार्य जी के साथ मिलकर वञ्चित बच्चों को वस्त्र दिये l यह सुसंगति का प्रभाव है l हम भारतीयों के बहुत से सद्गुणों को दोषपूर्ण बनाने के लिए बाहर से बहुत लोग आते रहे विलायती लोग व्यापार करने आये और देखा कि भारतवर्ष के लोगों को तो आसानी से घुमाया जा सकता है अर्थात् अपनी आस्था से संस्कृति से विश्वासों से डिगाया जा सकता है | आचार्य जी ने JEAN ANTOINE DUBOIS नामक फ्रेंच मिशनरी की चर्चा की इसकी विस्तृत जानकारी हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत लेखक सुरेश सोनी लोकहित प्रकाशन लखनऊ में मिल जायेगी पश्चिम के लोग धीरे धीरे हमारी संस्कृति का अध्ययन करके इसे विकृत करने लगे मैक्स मूलर ने भी इसे बहुत विकृत किया | वेद हम विदेशी नजर से पढ़ने लगे | आचार्य जी ने अपनी लिखी एक कविता सुनाई | हुआ अजब मतफेर लग रहा सगा पराया और ये कैसा अन्धेर जीत को गया हराया... इसके अतिरिक्त विद्यालय में हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा के समय मुख्य पुरोहित कौन थे? बैरिस्टर साहब का आज आचार्य
जी ने नाम क्यों लिया? आदि जानने के लिए सुनें |