प्रस्तुत है संस्कृत संयतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी को बहुत कम आयु से एक सूत्र सिद्धान्त का वाक्य प्रभावित किये हुए है | जो करता है सब परमात्मा करता है और वह अच्छा ही करता है लेकिन यह प्रायः संकटों में याद आता है कष्ट संकट समस्याएं भोग हैं | धन की तीन अवस्थाएं भोग दान नाश हैं आचार्य जी ने ठण्डी पुलिया कानपुर से संबन्धित एक प्रसंग सुनाया जब संघ के प्रचारक रहे ठाकुर साहब स्व राम गोविन्द सिंह जी (हिन्दू जागरण मंच ) ने आचार्य जी को प्रदेश का बौद्धिक प्रमुख बना दिया था आचार्य जी ने एक और अत्यधिक रोचक कथा सुनाई जब देव इन्द्र ने ऋषि लोमस को अपने महल बुलाया तैत्तिरीय उपनिषद्में परमात्मा के बारे में ज्ञान मिल जायेगा आपने तुलसी के बारे में ये पंक्तियां लिखीं |
प्रचंड तेज शक्ति शील रूप के विधान हो
अनिन्द कर्म धर्म मर्म शर्म संविधान हो
उदार हो विदार हो प्रफ़ुल्ल कोविदार हो
प्रसार भक्ति भाव राम नाम के प्रचार हो
(शर्म का अर्थ रक्षा,विदार का अर्थ युद्ध,
कोविदार का अर्थ कचनार)
तुलसी हमारे मार्गदर्शक बने हुए हैं आपने दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं
स्मृतम्।।17.20।।गीता का अर्थ बताया
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः। ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।।17.23।
आदि में आये ॐ तत्स त् का अर्थ बताया संसार में हम कोई भी काम कर रहे हैं वह भगवान् करा रहा है यह भाव सदैव रहना चा |