ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)
प्रस्तुत है उत्तानहृदय आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने कल गांव की एक घटना का उल्लेख किया जिसमें तीन बेटों की एक मां की विषम परिस्थितियों में मृत्यु हो गई इसी तरह हम लोगों की उपेक्षा के कारण अपनी भारत मां की यह दशा हो गई है दुर्भावना में भारत मां के कुछ शत्रु बोलते हैं कि हम भी यहां के वासी हैं हम इसके टुकड़े कर देंगे l इन लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है l युग भारती ने शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा का बीड़ा उठाया है तो हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए भय और भ्रम को त्यागते हुए क्योंकि भय और भ्रम दोनों जीवन के लिए अत्यधिक घातक हैं गीता मानस उपनिषद् हमें यही सिखाते हैं कि हम भ्रमित न हों भयभीत न हों तत्त्व को समझें लेकिन यथार्थ
में क्या करना है यह भी जानने की चेष्टा करें और तब हमें बहुत संतोष होगा जैसे राम पर विश्वास होने के कारण तुलसीदास जी को हुआ |
जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव, जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।
करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र, भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १
मोहमय कुहु-निसा बिसाल काल बिपुल सोयो, खोयो सो अनूप रुप सुपन जू परे ।
अब प्रभात प्रगट ग्यान-भानुके प्रकाश, बासना, सराग मोह-द्वेष निबिड़ तम टरे ॥ २
भागे मद-मान चोर भोर जानि जातुधान काम-कोह-लोभ-छोभ-निकर अपडरे ।
देखत रघुबर-प्रताप, बीते संताप-पाप, ताप त्रिबध प्रेम-आप दूर ही करे ॥ ३
श्रवण सुनि गिरा गँभीर, जागे अति धीर बीर, बर बिराग-तोष सकल संत आदरे ।
तुलसिदास प्रभु कृपालु, निरखि जीव जन बिहालु, भंज्यो भव-जाल परम मंगलाचरे ॥ ४ (विनय पत्रिका)
ऐसे भाव तब आते हैं जब विश्वास टिक जाता है चाहे राम के प्रति हो चाहे राष्ट्र के प्रति हो | आचार्य जी चाहते हैं कि युगभारती की बैठकों और कार्यक्रमों के अन्त में राष्ट्रगीत अवश्य हो |