प्रस्तुत है यतात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने बताया पश्चिम यथार्थ तो देखता है लेकिन हम जीवन में उत्साह और जीवन में सातत्य देखते हैं | गगन के उस पार क्या, पाताल के इस पार क्या है? क्या क्षितिज के पार? जग जिस पर थमा आधार क्या है? दीप तारों के जलाकर कौन नित करता दिवाली?.... -श्याम नारायण पांडेय हर जिज्ञासु दीवार के उस पार देखना चाहता है संसार का जिज्ञासु भाव एक धन है l तुलसीदास जी ने सबसे पहले हनुमान चालीसा जानकी मंगल पार्वती मंगल लिखे और मानस में सबसे पहले अयोध्या कांड लिखा राम के कार्य को मांगलिक रूप से प्रारम्भ किया | बाल कांड अत्यन्त व्यवस्थित ज्ञान का आधार है और भिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान है आचार्य जी ने बी एन एस डी इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य श्री सद्गुरु शरण अवस्थी और बारानिकोह से
संबन्धित एक रोचक जानकारी दी और बताया कि सद्गुरु जी के अनुसार राम चरित मानस में उन्नीस हजार शब्दों का प्रयोग हुआ है क्या तुलसी जी की तुलना मिल्टन शेक्सपीयर आदि से की जा सकती है जिन्होंने छह से आठ हजार शब्दों का ही प्रयोग किया था हमारे सचमुच के तत्त्व को बहुत नीचे गिराया गया हमारे भाव को कुण्ठित किया गया हमारे ज्ञान के अथाह भण्डार को कम आंका गया लेकिन अब इस आत्मबोध को जगाने की आवश्यकता है कि हमारा ज्ञान अत्यन्त अथाह है और इसकी तुलना कहीं से नहीं की जा सकती |
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
आदि की अत्यन्त लम्बी व्याख्या की जा सकती है इसके अतिरिक्त आचार्य जी जब एक शादी में गये थे तो क्या घटना घटी और आचार्य जी ने जे पी आचार्य जी का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें |