प्रस्तुत है समाख्यात आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण यश की कामना मनुष्य के साथ पूरे जीवन संयुत रहती है संन्यास लेने के बाद भी वह यशस्विता प्राप्त करने की चेष्टा करता है कि मुझे मोक्ष का यश प्राप्त हो गया यश केवल धन से, शक्ति से, विभिन्न उपलब्धियों से नहीं आता अपितु अपने विचारों के साथ आता है और ये विचार विशेष प्रकार की मानवीय व्यवस्था से संयुत है और हमारी संस्कृति में मानवीय व्यवस्थाओं पर सबसे अधिक विचार हुआ है हमारे चक्रवर्ती सम्राट बिना रक्तपात किये विस्तार करते थे और उन्होंने विश्वगुरुत्व की एक कल्पना की हमें राक्षसी संस्कृतियों से संघर्ष करने की भी आवश्यकता है l धर्म पूजापाठ नहीं है धर्म किसी वस्तु की विधायक आन्तरिक वृत्ति है प्रत्येक पदार्थ का एक व्यक्तित्व होता है वही उस पदार्थ का धर्म है यतो अभ्युदय नि: श्रेयस सिद्धि: स: धर्म: अर्थात् जिससे इस जीवन में अभ्युदय (उन्नति) और भावी जीवन में मोक्ष की सिद्धि हो , वह धर्म है | वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियं आत्मनः । तच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् । मनुस्मृति 6 /92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं ।
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥
1 – धृति ( धैर्य रखना, संतोष )
2 – क्षमा ( दया , उदारता )
3 – दम ( अपनी इच्छाओं को काबू करना , निग्रह )
4 - अस्तेय ( चोरी न करना , छल से किसी चीज को हासिल न करना )
5 - शौच ( सफाई रखना , पवित्रता रखना )
6 - इन्द्रिय निग्रह ( इन्द्रियों पर काबू रखना)
7 - धी ( बुद्धि )
8 – विद्या (ज्ञान)
9 – सत्य ( सत्य का पालन करना , सत्य बोलना )
10- अक्रोध ( क्रोध न करना )
धर्म सन्मार्ग का पहला उपदेश है उन्नति का एक नियम है संयम उस नियम के पालन को कहते हैं संस्कार उन संयमों का सामूहिक फल है और किसी विशेष देश काल के निमित्त विशेष प्रकार की उन्नत अवस्था में प्रवेश करने का द्वार है और सारे संस्कारों को व्यक्तित्व के विकास का आधार कहते हैं | सांस्कृतिक विकार ज्यादा खतरनाक है इस तरह के वैचारिक तूफान को समाप्त करने की आवश्यकता है पहले स्वयं में परिवार में से इसे शमित करें हमारे अन्दर हनुमानत्व को प्रवेश कराने की आवश्यकता है हनुमान अर्थात् संयम साधना सेवा शक्ति भक्ति का प्रतीक हनुमान के गुणों को अपने अन्दर प्रवेश कराएं यही धर्म है और इससे ही धर्म का विस्तार हो जायेगा प्रतिदिन शरीर को मानस को शुद्ध करें पठन पाठन, यजन याजन, दान देना दान लेना ये सब ब्राह्मणोचित कर्म हैं हमारा एक धर्म है हिन्दु धर्म l इसके अतिरिक्त डा शान्तनु जी के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें |