प्रस्तुत है मिश्रित आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण शरीर का बुद्धिमत्तापूर्वक विचारपूर्वक संयम के साथ पयोग करना चाहिए शरीर साधन है साध्य नहीं शरीर को साधन मानते हुए साध्य की दिशा में चलना चाहिए,एक साध्य तो मोक्ष है मोक्ष अर्थात् सब प्रकार की निश्चिन्तता हमारा परिवेश पर्यावरण निश्चिंत होने पर हमें भी निश्चिन्तता होगी निराशा हताशा कुण्ठा भय भ्रम भूख कलह बीमारी के बीच हम निश्चिन्त नहीं रह सकते इसलिए संपूर्ण प्रकृति को परिवेश को शुद्ध करने के लिए हमारे यहां यज्ञ -भाव से रहने के लिए कहा जाता था यज्ञ -भाव का अर्थ जैसे यह राष्ट्र का है यह देव का है और यह मैं अर्पण कर रहा हूं |
अन्नात् भवन्ति भूतानि पर्जन्यात् अन्न-सम्भवः । यज्ञात् भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्म-समुद्भवः ॥
यह एक क्रम चलता है और हम मनुष्य इस सृष्टि के स्थूल से सूक्ष्म तक के माध्यम हैं इन सब उदात्त विचारों के होते हुए और जब हम ही ने संपूर्ण विश्व अपना परिवार है ऐसा अनुभव भी किया तो भी हमें आत्मबोध नहीं आया तत्त्वबोध के साथ आत्मबोध जिनके जीवन में चलता है वो निर्द्वन्द्व रहते हैं | आचार्य जी ने यह भी बताया कि बैरिस्टर साहब आचार्य जी के ज्ञान और संयम का किस प्रकार वर्धन करते थे | त्यागपूर्ण भोग करने का अभ्यास होना चाहिए जो प्राप्त है उससे संतोष होना चाहिए | आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संस्काररूप में मिले भावों के कई प्रयोग विद्यालय में किये सुसंगति बहुत श्रेष्ठ कार्य है संगठन में सुसंगति का एक उदाहरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है युग भारती के सूत्र सिद्धान्त राष्ट्रनिष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष को हमें ध्यान में रखना चाहिए अपनों से अपनी बात आज ये कहना है संयमित शक्ति के साथ संगठित रहना है लालच से भय से भ्रम से मुक्त होकर हमें समाज को योगदान देना है इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा मलय भैया डा नरेन्द्र भैया पुनीत भैया अरविन्द तिवारी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें |