प्रस्तुत है वृन्दारक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण कल भैया डा प्रदीप त्रिपाठी 1984 के बड़े भाई का एक मार्ग दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया जिसके कारण पूरे युगभारती परिवार को अत्यन्त दुःख पहुंचा जितना अधिक परिचय होता है उतना ही अधिक दुःख होता है इसलिए कुछ लोग संन्यास ले लेते हैं जिससे परिचय छूट जाए जीवन अत्यन्त अद्भुत है इसमें एक ओर तो प्रसन्नता, उत्साह है तो दूसरी ओर इस प्रकार की सूचनाएं मिलती हैंऔर ऐसे में धीरज का भी परीक्षण हो जाता है (अरण्यकांड में) धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥ बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥ और ये सब सृष्टि में लगातार चलता रहता है ऐसे संकट आएं तो मानस का स्मरण करना चाहिए प्रेमचन्द की मृत्यु के समय के दृश्य सरीखी स्मृतियां भावनाओं को झकझोर देती हैं तुलसी’ जस भवितव्यता, तैसी मिलै सहाय। आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥ भाव यह है कि भाग्य के आगे किसी का वश नहीं चलता। भाग्य के लेख पढ़ना अत्यंत कठिन है इसलिए धैर्य का अभ्यास करना चाहिए और परमात्मा पर विश्वास नहीं डिगना चाहिए हमारा लक्ष्य है मोक्ष, मोक्ष और मृत्यु में अन्तर है | सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं। दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥ धीरज धरहु बिबेकु बिचारी। छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥ गीता मानस सहज ग्रंथ हैं अध्ययन करते करते धीरे धीरे कंठस्थ होने लगते हैं हमारे पास बहुत सी वैचारिक निधियां हैं और जो प्राप्त है उससे क्या नवनीत निकाल सकते हैं और परिस्थितियों को किस प्रकार संभाल सकते हैं यह देखना चाहिए शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा इन चार सूत्रों पर विचार करते हुए आत्मशक्ति वैचारिक शक्ति संगठित शक्ति से युक्त होकर आगे के संघर्षों के लिए |