प्रस्तुत है वद आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण जबरदस्ती संन्यास को धारण करना भी अपराध है रिस्थितिवश बहुत से लोग अन्त तक गृहस्थ आश्रम को त्याग नहीं पाते l भक्तिकाल में गृहस्थ धर्म को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा गया लेकिन ये साहित्य के ऐसे अंश हैं जिनसे चिढ़ना नहीं चाहिए l कल की बात को विस्तार देते हुए आचार्य जी ने बताया कि दान का अर्थ हमें समझना चाहिए l हम लोग कन्या का दान सुयोग्य वर को देखकर करते हैं क्यों कि हम भविष्य की सृष्टि का संचालन करने जा रहे हैंl परिवारों के संस्कारों को बढ़ाएं l
धन आदि का दान करें तो दम्भ न करें l अब आज के मुख्य विषय की ओर उन्मुख होते हैं -
वेद ज्ञान है उपनिषद्द र्शन है पुराण महाभारत रामायण हमारा इतिहास है गीता श्री रामचरित मानस साहित्य है इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है इनका आधार बनाकर चलने पर हम भ्रमित नहीं होते l इनके प्रति हमारी श्रद्धा हो जिज्ञासा हो इसकी आवश्यकता है स्वाध्याय चिन्तन मनन करें और इसके लिए समय भी निकालें l आचार्य जी ने पूजा के महत्त्व को बताया घर को पाठशाला बनाकर बच्चों को सिखाएं l अपने भीतर की शक्ति का सदुपयोग करना हम लोग सीखें और परिवार को आधार मानकर हम लोग विकासोन्मुख होएं l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य श्री शेंडे जी की कौन सी एक बहुत अच्छी बात बताई जानने के लिए सुनें |