प्रस्तुत है आर्यशील आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण कल भैया यज्ञदत्त 1998, भैया अभिनय मिश्र 1998 और भैया आकाश मिश्र 2001 अपने सरौंहां गांव में भविष्य के साधना केन्द्र विचार केन्द्र कर्म केन्द्र युग भारती के केन्द्र आमलक -कुञ्ज में आचार्य जी से मिले आप लोगों ने गीताप्रेस की कुछ पुस्तकें हनुमान जी के मन्दिर में रख दीं l ग्रन्थागार भी बढ़ना चाहिए ये पुस्तकें मात्र पूजा के लिए नहीं अपितु अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन के लिए होती हैं और वैचारिक शक्ति का आधार होती हैं,वैचारिक शक्ति जो हमारे यहां है वह भक्तिमूलक है भैया संतोष मिश्र जी के प्रयास से अपने गांव सरौंहां में कल से विद्युतीकरण का कार्य प्रारम्भ हो गया है ये सब सांसारिक उपलब्धियां हमारे किसी भी उद्देश्य के प्रति हमें उत्साहित करती हैं और यह उत्साह कर्म को और अधिक क्रियाशील करता है आचार्य जी ने भज् धातु की व्याख्या की और बताया कि प्रेम की अभिव्यक्ति का नाम शृङ्गार है आचार्य महावीर प्रसाद के अनुसार इससे विकृति आती है जब कि जय शंकर प्रसाद ने उसको उन्नत बना दिया ये सब देखें तो मानव मन की भावनाएं ही हैं इसी तरह हम लोग राष्ट्रभक्ति का आधार लेकर चलते हैं भारत माता में सारी देवशक्तियां हैं ज्ञान शक्तियां हैं शक्ति के बिना संसार नहीं है और भक्ति के लिए भी शक्ति की आवश्यकता है हमारे यहां इतिहास में 1192 में भयानक स्थिति आ गई जब कुछ युद्धों ने उत्तर भारत को मुस्लिम नियन्त्रण के लिए खोल दिया और आज भी किसी न किसी रूप में चल रही है हम फिर भी संघर्षरत रहेंगे हम स्वतन्त्र थे स्वतन्त्र हैं और स्वतन्त्र रहेंगे हमारे यहां का भक्ति साहित्य अत्यधिक विस्तृत है लेकिन भक्ति के आधार में शक्ति थी अब रामजन्मभूमि निर्माण हो रहा है कृष्णजन्मभूमि के लिए संघर्ष चल ही रहा है यह संघर्ष आत्मशक्ति विकसित करने के लिए है हमारा काम इस सदाचार वेला को सुनना भर नहीं अपितु गुनना भी है,अपने परिवारों को अपने पड़ोस को इन विचारों से आप्लावित कर दें भ्रम और भय त्यागकर धैर्य भी रखें कुटुम्ब को संस्कारी विचारशील संयमी और राष्ट्रप्रेमी बनाने की आवश्यकता है चिन्तन विचार के लिए कुछ छोटे छोटे कार्यक्रम करें |