प्रस्तुत है चोक्ष आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण :-
स्थान : उन्नाव
जिस प्रकार कथावाचक को अपने अन्दर के भाव व्यक्त करने के लिए किसी को यजमान बनाना पड़ता है इसी तरह आचार्य जी का ध्यान इस वायवीय कथा को कहते समय किसी श्रोता पर केन्द्रित हो जाता है आचार्य जी ने बताया कि उन्होंने अध्यापन से बहुत कुछ सीखा विवेक जाग्रत हुआ भाव जाग्रत हुए बहुत से सद्गुण विकसित हुए हमें मृत्यु से भयभीत नही होना चाहिए अपितु जिज्ञासा होनी चाहिए जिज्ञासा उन्हीं की बढ़ती है जो स्वस्थ होते हैं व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है प्राणायाम से प्राण, प्राण प्राणिक शक्ति है आन्तरिक शक्ति है ऊर्जा है जो शरीर को चलाती है जब हम बोझ उठाते हैं तो हमारा हाथ नहीं उठाता अपितु हाथ के अन्दर की ऊर्जा उठाती है |
गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च । नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च ।।
जो मनुष्य सदैव गीता का पाठ करता है और प्राणायाम में तत्पर रहता है, उसके इस जन्म में और पूर्वजन्म में किये हुए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । पाप बोझ हैं पुण्य हल्कापन है मन के अन्दर बोझिल करने वाली कामनाएं अधोगतिज हो जाती हैं जिस प्रकार आचार्य जी शिक्षक रूप में कक्षा में जाकर हम लोगों पर दृष्टिपात् करते थे उसी प्रकार हम लोगों के सामने भी गृहस्थ-आश्रम रूपी उच्च कोटि का विश्वविद्यालय है जहां माता पिता अभिभावक आदि के अनुभवों का लाभ लेना चाहिए उन्हें प्रसन्न रखना चाहिए अपितु संपूर्ण विश्वविद्यालय पर दृष्टि रखनी चाहिए अन्यथा जीवन की कथा व्यथा बन जाएगी हमें कहीं वीरत्व धारण करना होगा कहीं शान्त रहना होगा दैन्यभाव हानिकारक है मानस गीता बहुत अच्छे ग्रन्थ हैं |
मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने। सकृद्गीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम्॥
मनुष्य स्नान करके प्रतिदिन अपने को स्वच्छ कर सकता है, लेकिन यदि कोई भगवद्गीता रूपी पवित्र जल में एक बार भी स्नान कर ले तो वह भौतिक जीवन (भवसागर) की मलिनता से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है । सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥ बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥ कहीं राम कहीं कृष्ण कहीं अर्जुन बनने की स्थिति हमारे सामने आती रहती है इन सब का समन्वय सामञ्जस्य बैठाकर आनन्दित होकर जीवन को चलाना चाहिए और हमें इस सदाचार वेला का भी आनन्द लेना चाहिए | इसी प्रकार युगभारती संगठन राष्ट्र के लिए है राष्ट्र से ही हमारी पहचान है यहां हमारा जन्म हुआ है यह दिव्य स्थान है जब विद्यालय में पानी नहीं रहता था तो आचार्य जी अपने छात्रों को कहां ले जाते थे आदि जानने के लिए सुनें |