प्रस्तुत है हमारे औन्नत्य के लिए प्रयासरत अमत्सर आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण प्रातःकाल हमें आत्मसमीक्षा और आत्मभाव का प्रक्षालन भी करना चाहिए l सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को उनकी पत्नी सुहागरात पुस्तक लिखने पर भावावेग में आकर कई बातें कह गईं लेकिन इस बात ने आचार्य महावीर का मार्गदर्शन कर दिया और फिर उन्होंने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया वे संपादक धर्म का पालन करने के कारण काट छांट करने के लिए मना करने वाले विद्वान लेखकों के लेख सादर वापस कर देते थे l आचार्य जी ने कहा हम लोग मानस और गीता का पाठ अवश्य करें | बालकांड और उत्तरकांड अत्यधिक दार्शनिक और तत्त्वपूर्ण हैं और बाकी में कथा के साथ दर्शन चला है |
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ।
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥
भाव अच्छा हो भाषा अच्छी नहीं होती तो भी अच्छी लगती है आचार्य जी ने एक अत्यन्त रोचक प्रसंग बताया कि एक बंशी वाले बाबा टीन की गाड़ियों से डरते थे ( हमें इस बात में गहराई देखनी चाहिए ) उनके एक शिष्य अपने सरौंहा गांव के पास कहीं रहते हैं l टीन आश्रम का छाजन बन जाए तो पूज्य और किसी कबाड़ी के यहां रहे तो बेकार --
प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग ॥
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान ।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥
को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि आपका प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर राष्ट्रभाव जाग्रत हो त्याग तपस्या के साथ शौर्य जागे हम लोग भाषा वाणी पर न जाकर भाव पर जाएं हम स्वाध्याय करें चिन्तन मनन करें निदिध्यासन करें परमात्मा हमारे अन्दर है यह भाव सदैव रहना चाहिए मानस का मूल भाव बोध यही है कि हम भी संगठित होएं जैसे मानस में तुलसी जी ने भगवान राम का सांगठनिक स्वरूप दिखाया है |