प्रस्तुत है उदारसत्त्वाभिजन आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण ध्यान प्रारम्भिक स्थिति से लेकर अन्तिम स्थिति तक मनुष्य के अन्दर की अद्भुत शक्ति है हमारे ऋषियों द्वारा ध्यान के अधिकाधिक अभ्यास के कारण ही उनको वेदों की अनुभूति हुई दर्शन हुए और आचार्य जी ने परामर्श दिया कि भविष्य में इस पर चर्चा अवश्य हो जैसे तैत्तिरीय उपनिषद् की भृगुवल्ली में ऋषि भृगु के पिता महर्षि वरुण द्वारा ऋषि भृगु की ब्रह्म से संबंधित जिज्ञासा का समाधान किया गया है उसी प्रकार हम लोगों के बीच में प्रश्नोत्तर काल हो और उनसे तत्त्व निकाला जाए कि आज की परिस्थिति के अनुसार ध्यान चिन्तन लेखन व्यवहार आचरण का प्रयोग कैसे हो आचार्य जी ने कल भरत सिंह भैया के आवास पर सम्पन्न हुई अत्यन्त सफल लखनऊ युगभारती बैठक की चर्चा की जिसमें 37 सदस्य उपस्थित हुए और जो तीन अनुपस्थित थे उन्होंने सूचित किया वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक बड़े पदाधिकारी भी आमन्त्रित थे जिन्होंने कहा युगभारती में तो सभी राष्ट्रीय स्तर के लोग हैं और युगभारती कितना महत्त्वपूर्ण संगठन है आज उन्हें ज्ञात हुआ प्रातःकाल अपने विकारों का शमन और दूसरे के विचारों के आगमन का प्रयास करना चाहिए पुराने दम्भकारक प्रसंगों को हमें भुला देना चाहिए और गर्व करना चाहिए कि इस समय भी हम बड़े बड़े काम कर रहे हैं यह आत्मबोध है हम सभी ब्रह्मांश हैं कुछ भी कर सकते हैं रामकथा राष्ट्रकथा बनकर सामने आ रही है हम उस राम की पूजा करते हैं जो राष्ट्र का स्वाभिमान संयम मर्यादा विचार चिन्तन और समर्पण है जिसकी अनुभूति स्वामी विवेकानन्द आदि ने की हमें भी यह अनुभूति होनी चाहिए अपने कार्य व्यवहार को परिशुद्ध करते हुए अपने बड़े उद्देश्य को ध्यान में रखें भ्रष्टाचार आदि का चिन्तन न करें l