प्रस्तुत है कीर्तिभाज्आ चार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण कल मलय भैया (बैच 1982) के पुत्र अभिजात जी के विवाहोपरान्त आयोजित आशीर्वाद समारोह में आचार्य जी दीपक आचार्य जी और युगभारती के कई सदस्य बड़ीआत्मीयता के साथ मिले और मलय भैया ने अत्यन्त प्रेम और आनन्द के साथ उन सभी का स्वागत किया आचार्य जी ने संस्कृति और विकृति में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि हम युगभारती के सदस्यों को संयम आत्मविश्वास और सुस्पष्ट चिन्तन वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के साथ हर जगह जुड़ा रहना चाहिए | आपने Emergency का उल्लेख किया विद्यालय पर कुठाराघात हो गया हमें आपातकालीन संघर्ष गाथा आदि पुस्तकों को पढ़ना चाहिए | आज भी देश पर संकट के बादल छाएं हैं देश की स्थिति गम्भीर है ऐसे समय भावुक चिन्तक क्षमतासम्पन्न लोग भ्रमित हो जाते हैं तो स्थिति और गम्भीर हो जाती है अर्जुन को मोह हो गया तो गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।।2.5।। लेकिन अर्जुन में विवेक है
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।
हमें भी अपने विचारों पर विश्वास रखना होगा राम और कृष्ण हमारी भारत भूमि के दो बहुत बड़े मार्गदर्शक हैं किन रिस्थितियों में क्या करना चाहिए के लिए और आत्मशक्ति संवर्धन के लिए मानस और गीता का हमें अध्ययन करना चाहिए कर्म के लिए हम अकेले कुछ नहीं कर सकते बल्कि प्रेमपूर्वक विश्वासपूर्वक आत्मीयतापूर्वक संगठन करने की आवश्यकता होती है बहुत से ऐसे संगठन हैं जो सुख सुविधाएं तो देते हैं लेकिन राष्ट्रनिर्माण में इनका योगदान नगण्य रहता है धन ही साधन नहीं है मनुष्य के अन्दर की भावना विचार विश्वास राष्ट्र का निर्माण करते हैं बिरसा मुण्डन एक उदाहरण है धनिकों से भी राष्ट्र बनते हैं लेकिन तब जब उनकी भामाशाह जैसी वृत्ति हो जिसने देश के लिए सुधर्म के लिए पूरे जीवन की कमाई महाराणा प्रताप को सौंप दी इसलिए भामाशाह त्याग के प्रतीक बन गए हम थोड़ा सा त्याग करके यदि त्यागी बन जाते हैं तो यह विकृति है देने की भावना रहे और उत्साह रहे तो यह संस्कृति है हमारे अन्दर ये भाव विचार कैसे आएं इसके लिए सही जीवनचर्या संगति स्वाध्याय धीरज सही खानपान होना चाहिए |