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समाज

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हमारी पौराणिक कथाऐं कहती हैं होली की कथा निष्ठुर ,एक थे भक्त प्रह्लाद पिता जिनका हिरण्यकशिपु असुर। थी उनकी बुआ होलिका थी ममतामयी माता कयाधु ,दैत्य कुल में जन्मे चिरंजीवी प्रह्लाद साधु। ईश्वर भक्ति से हो जाय विचलित प्रह्लाद पिता ने किये नाना प्रकार के उपाय, हो जाय ज

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यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क: पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के

डाकिया अब भी आता है बस्तियों में थैले में नीरस डाक लेकर, पहले आता था जज़्बातों से लबालब थैले में आशावान सरस डाक लेकर। गाँव से शहर चला बेटा या चली बेटी तो माँ कहती थी -पहुँचने पर चिट्ठी ज़रूर भेजना बेटा या बेटी चिट्ठी लिखते थे क़ायदे भरपूर लिखते थे बड़ों को प्रणाम छो

आज एक चित्र देखा मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े

कुलपति साहब तो क्या उस छात्रा को संस्थान की अस्मिता के लिए अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?बीएचयू के मुखिया को ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी ?सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ता मनुष्य पशुओं से अधिक पाशविक व्यवहार पर उतर आया है साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे बीएचयू कैम्पस में हॉस

ग़ौर से देखो गुलशन में बयाबान का साया है ,ज़ाहिर-सी बात है आज फ़ज़ा ने जताया है। इक दिन मदहोश हवाऐं कानों में कहती गुज़र गयीं, उम्मीद-ओ-ख़्वाब का दिया हमने ही बुझाया है। आपने अपना खाता नम्बर विश्वास में किसी को बताया है,

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मैं सो रही थी मुझे उठाया गया,नींद में ही गाडी में बैठाया गया !होश में आती उससे पहले ही बताया गया, व्यापारियों का खून चूसने जीएसटी लगाया गया !अधिकारी के दफ़्तर संग लाया गया,टेक्स का सारा दुख जताया गया !टेक्स का सारा दुख जताया गया,मुझे अधिकारी के दफ़्तर लाया गया !बोले पहल तुम करोगी हमारी,दलदल में मुझ बे

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कुछ पता न चलेपर कारोबार चले,भरोसा न भी चले,जिंदगी चलती चले,चलन है, तो चले,रुकने से बेहतर, चले,न चले तो क्या चले,यूं ही बेइख्तियार चले,सांसें, पैर, अरमान चले,फिर, क्यूं न व्यापार चले,सामां है तो हर दुकां चले,हर जिद, अपनी चाल चले,अपनों से, गैर से, रार चले,इश्क है, न ह

घर के बाहर अकेली खेल रही वंशिका को देख कर पड़ौस में रहने वाले सत्या ने मुस्कुरा कर पूछा " आज स्कूल नहीं गयी वंशी? वंशी ने भी चहकते हुए जवाब दिया "नहीं भैया, पता है आज बड़े बच्चे टूर पर गये हैं इसलिये मेरी छुट्टी हो गयी, अौर अब मैं पूरा दिन खेलूंगी "। " अरे वाह फिर त

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थाने में बैठा कमलू सिपाहियों, पत्रकारों और कुछ लोगो की भीड़ लगने का इंतज़ार कर रहा था ताकि अपनी कहानी ज़्यादा से ज़्यादा लोगो को सुना सके। पुलिस के बारे में उसने काफी उल्टा-सुल्टा सुन रखा था तो मन के दिलासे के लिए कुछ देर रुकना बेहतर समझा।“हज़ारो किलोमीटर लम्बा सफर करते हैं हम ट्रक वाले साहब! एक बार में

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नशे, दारु की लथ में अपना पति खो चुकी औरत नशे में ही उसे ढूँढ रही है और पूछ रही है ऐसी क्या ख़ास बात है नशे में जो कितनी आसानी से कितनी ज़िन्दगीयां लील लेता है। इस बार एक कविता और एक नज़्म के साथ पेश है - नशेड़ी औरत! (काव्य कॉमिक्स)Illustrator - Amit Albert :: Poet, Scr

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 करते हैं बैठ चर्चा, खाली ये जब भी होते, कोई काम इनको करते मैने कभी न देखा. ................................................... वो उसके साथ आती, उसके ही साथ जाती, गर्दन उठा घुमाकर बस इतना सबने देखा. .............................................

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भारतीय परम्पराओं के मानने वाले हैं ,ये सदियों से चली आ रही रूढ़ियों में विश्वास करते हैं और अपने को लाख परेशानी होने के बावजूद उन्हें निभाते हैं ये सब पुराने बातें हैं क्योंकि अब भारतीय तरक्की कर रहे हैं और उस तरक्की का जो असर हमारी परम्पराओं के सुन्दर स्वरुप पर पड़ र

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मंडप भी सजा ,शहनाई बजी ,आई वहां बारात भी ,मेहँदी भी रची ,ढोलक भी बजी ,फिर भी लुट गए अरमान सभी .समधी बात मेरी सुन लो ,अपने कानों को खोल के ,होगी जयमाल ,होंगे फेरे ,जब दोगे तिजोरी खोल के .आंसू भी बहे ,पैर भी पकड़े ,पर दिल पत्थर था समधी का ,पगड़ी भी रख दी पैरों में ,पर दिल न पिघला समधी का .सुन लो समधी

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दूसरे हृदयघात के बाद आराम से उठने के बाद उद्योगपति तुषार नाथ का व्यक्तित्व बदल गया था। पहले व्यापार पर केंद्रित उनका नजरिया अब किसी छोटे बच्चे जैसा हो गया था। छोटी-छोटी बातों पर चिढ जाना, उम्र के हिसाब से गलत खान-पान और व्यापार में हो रहे घाटे पर ध्यान ना देना अब उनके लिए आम हो गया था। परिवार और परि

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 'साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले

़भारत के प्रमुख   देहबाजारऔरदस्तूरविषय पर एकपुस्तक प्रकाशित की जा रही है आपके पास कोई सूचना या जानकारी हो तो मेल करें : anil69790@gmail.com 

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विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही

भगवान ने अपने विभिन्न अवतारों में सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने हेतु संदेश दिया है वहीं दूसरी ओर श

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