वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धार
काव्य सुलेखा मेरी कविताओं का संग्रह है, जिसमें मैंने जीवन के भिन्न भिन्न पहलुओं को उजागर किया है। कहीं रिश्तों का मर्म, कभी मन शांत तो उठते सवाल, पारिवारिक जीवन, मान सम्मान, नारी का आत्म विश्वास, जिंदगी के भिन्न भिन्न रंगो को अपनी कलम से सजाया है।
हर चेहरा कुछ कहता है और हर कोई अनेकों किरदार बखूबी निभाने की कला जानता है ।
कला और बूढ़ा चाँद छायावादी युग के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का प्रसिद्ध कविता संग्रह है। पंत जी की कविताओं में प्रकृति और कला के सौंदर्य को प्रमुखता से जगह मिली है। इस कृति के लिए पंत जी को वर्ष 1960 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' द्वारा सम्मानित
माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।
डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन
हे भोले नाथ हे शिव हे नीलकंठ तेरी महिमा है अजब निराली ! जाटा से गंगा निकली गले मे सर्पनागधारी , तन बदन भभूती सोभे माला तेरी अजब निराली! तेरी महिमा....... कैलास पर्वत पे इनका है ,डेरा , सर्प फन झुकाबे सुबह और सबेरा सती पार्वती से नेह लगवलन
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र) भारत के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार की तीसरा हाइकु संग्रह में पढ़िए हिन्दी के नवरचित हिन्दी हाइकु। इसके पूर्व राना लिधौरी के 1-रजनीगंधा ( हिंदी हाइकु संग्रह) सन्-2008 एवं 2 - 'नोनी लगे बुंदेली'(बुंदेली हाइकु सं
उस गांव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं. लोग कहते थे कि वहां दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है. शाम होते ही क़ब्रें जम्हाइयां लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अंधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश
यह पुस्तक मूमल और महिंद्रा की अमर प्रेम कथा को प्रस्तुत करती है।मूमल लोद्रवा (जैसलमेर)की राजकुमारी थी और महिंद्रा अमरकोट(वर्तमान पाकिस्तान)का राजकुमार था। पुस्तक दोनों के मध्य पनपते प्रेम मिलन, विरह की कहानी कहती है। यह एक सत्याधृत ऐतिहासिक प्रेम क
ख्यालों में ही गुजर कर ली हमने "ताउम्र" कुछ ही बची है । अब आ भी जाओ रूबरू कर दे , इक बार दिल को । रस्म ए दीदार अभी बाकी है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी 🙏मुझे आशा है की "दिल की आवाज़" आपको पसंद आयेगी ।
मेरे गांव मे , तेरे गांव मे , मेरे कसबे मे तेरे कसबे मे , मेरे शहर मे तेरे शहर मे बहुत लोग होंगे जो कभी जहाज़ मे नहीं बेठे . जहाज़ मे बेठने का किस का मन नहीं करता पर गरीब इंसान कैसे जहाज़ मे सफर करे . कैसे वो भी अमीर लोगों की तरह जहाज़ मे एक शहर से दुसर
'अर्चना' में ऐसे गीत भी हैं, जो इस बात की सूचना देते हैं कि कवि अब महानगर और नगरों को छोड़कर अपने गाँव आ गया है ! उनका कालजयी और अपनी सरलता में बेमिसाल गीत 'बांधो न नाव इस ठांव, बंधू !/पूछेगा सारा गाँव, बंधु! ' 'अर्चना' की ही रचना हैं, जिसमें गाँव की
मय, मयकश, मयकशीऔर मयखाना यह विषय बहुतो का पसंदीदा विषय है और बहुतो के लिए हमेशा से एक विचारणीय विषय भी रहा है। अनेक रचनाकारों ने इस विषय पर अपनी-अपनी शैली में रचनाओं का सृजन किया। आदरणीय सुप्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन की कलम से इस विषय पर कालजय
श्रीमान सादर नमस्कार मुझे बचपन से लिखने का बहुत शौक था इसलिए मैंने हमेशा खाली समय को व्यर्थ नहीं जाने दिया कुछ ना कुछ अवश्य लिखता रहा जो कि आज एक बड़ी संख्या बन चुकी हैं मैं चाहता हूं आप से जुड़कर अपनी कविताएं पब्लिक प्लेटफॉर्म में प्रमोट कर सकूं ज
नाटक के केन्द्र में एक बंगाली परिवार (शंकर और शीला) है, जो बिहार के एक बाढग़्रस्त इलाके में रहता है। यहां हर वर्ष नदी में बाढ़ आती है और यह बाढ़ तब तक नहीं उतरती जब तक की कोई इंसान इस नदी में कूदकर आत्महत्या ना कर ले। यह अन्धविश्वास अब बलि प्रथा बन ग
किताब जीवन का सच ............ शब्दों के सच से कही गयी हैं हम सभी के समाज से जुड़ाव के साथ है । हमारे दिन प्रतिदिन में प्रेरणा या घटना के लिए अवाज बन कर हम देश या समाज के लिए जागरुक करने लचना माध्यम प्रयास है
नीहार महादेवी वर्मा का पहला कविता-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् १९३० ई० में गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखी थी। इस संग्रह में महादेवी वर्मा की १९२३ ई० से लेकर १९२९ ई० तक के
आप और हम जीवन के सच में मन भाव और विचार का मंथन है बस एक कल्पना के साथ हम सभी जीते है