सेवा और त्याग दैवीय गुण अवश्य हैं मगर सेवा और त्याग का अभिमान ही जीवन का सबसे बड़ा रोग भी है
25 नवम्बर 2021
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*सेवा और त्याग दैवीय गुण अवश्य हैं मगर सेवा और त्याग का अभिमान ही जीवन का सबसे बड़ा रोग भी है। सेवा और त्याग का गुण ही समाज में किसी मनुष्य के मूल्य अथवा उपयोगिता का निर्धारण करता है।*
*जिस मनुष्य के जीवन में सेवा और त्याग है, वही मनुष्य समाज में मूल्यवान भी है।जो देता है वही देवता है।कोई मनुष्य जब समाज को देता है तो देवता के रूप में स्व प्रतिष्ठित भी हो जाता है। प्रभु कृपा करते हैं तो किसी - किसी जीव के मन में सेवा का भाव जगाकर समाज सेवा का निमित्त बनाते हैं।*
*मगर जब उस सेवा और त्याग का अभिमान मनुष्य के भीतर आ जाता है तो उसका वही गुण अभिमान में रुपांतरित होकर जीवन का सबसे बड़ा अवगुण अथवा जीवन का सबसे बड़ा रोग भी बन जाता है।*