*अहँकार से जिस व्यक्ति का मन मैला है ।*
*करोड़ों की भीड़ में भी, वो सदा अकेला है ।।*
अहँकार यानि सिर्फ *मैं* ।
*मैं* हमको दूसरों से, अपनो से दूर करता है ।
यहां तक कि *मैं* उस सर्वश्रेष्ठ भगवान से भी दूरी बना देता है।
*मैं* से ग्रस्त व्यक्ति से सब दूरी बना लेते हैं । दिखते तो लोग पास हैं पर असल मे वे होते बहुत दूर हैं ।
*मैं* के कारण हम अपने को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ मानते हैं।
*मैं* के रहते मुक्ति/मोक्ष सम्भव ही नहीं है ।
*मैं* ग्रस्त व्यक्ति के चेहरे को देखें, वह हमेशा तनावयुक्त दिखेगा ।
*◆●स्वयं विचार करें●◆*