की एक *मर्यादा* होती है और हमें उस *मर्यादा* को कभी नहीं *तोड़ना* चाहिए,
क्योंकि जब *रिश्तों* की *मर्यादा* टूट जाती है तो *बहुत* कुछ *खत्म* हो जाता है,,,!!!
*शास्त्रों* के अनुसार *मनुष्य* को पाँच *ऋण* चुकाने होते हैं,
1-माता का *ऋण*
2-पिता का *ऋण*
3-गरु का *ऋण*
4-धरती का *ऋण*
5-धर्म का *ऋण*
इन्हें कभी नहीं *चुकाया* जा सकता ,मगर कुछ *कार्य* करने के बाद ,
आप इनको *चुकाने* के समान *पुण्य* के भागी बन सकते हैं,,,!!
1-माता का *ऋण* चुकाने के लिए *कन्या-दान* करना चाहिए,
2-पिता का *ऋण* चुकाने के लिए *सन्तान* उत्पति करनी चाहिए,
3-गुरु *ऋण* चुकाने के लिए लोगों को *शिक्षित* करना चाहिए,
4-धरती का *ऋण* चुकाने के लिए *कृषि-कार्य* करें या *पेड़* लगाएँ
5-धर्म का *ऋण* चुकाने के लिए *धर्म* का कार्य करें,,,!!
*ऊँचा* होने का *गुमान* और *छोटे* होने का *मलाल* नहीं करना चाहिए,
*खेल* खत्म होने के बाद *शतरंज* के सब *मोहरे* एक ही *डिब्बे* में रखे जाते हैं,,,!!!
जो *समय* का *मोल* समझते हैं,
*समय* उन्हें *अनमोल* बना देता है,,,!!!
बहुत *उलझी* हुई है *जिन्दगी* हर *शख्स* सुलझाने में लगा है,
*मुस्कराते* हुए *चेहरे* पर *गौर* करना ,
देखा गया है वहाँ भी *उदासीनता* विराजमान है,,,!!!
*थोड़ा* थक जाएं तो दूर निकलना *छोड़* दें पर ऐसा नहीं कि *चलना* छोड़ दें,
*फासले* अक्सर *रिश्तों* में दूरी *बढ़ा* देते हैं पर ऐसा नहीं कि अपनों से *मिलना* छोड़ दें,
हाँ पर अकेले होने पर *दुनियाँ* की *भीड़* में ऐसा नहीं कि *अपनापन* छोड़ दें,
याद करें अपनों को *परवाह* भी हो मन में बस इतना करें कि ये *बताना* छोड़ दें,,,!!!
जिनकी *आँखों* में *नीद* है उनके पास अच्छा *बिस्तर* नहीं,
जिनके पास अच्छा *बिस्तर* उनकी *आँखों* में *नींद* नहीं,
जिनके पास *दया* है उनके पास *खर्च* करने के लिए *धन* नहीं,
जिनके पास *खर्च* करने के लिए *धन* है उनके *मन* में *दया* नहीं,
जिन्हें *कद्र* है *रिश्तों* की उनसे कोई *रिश्ता* नहीं रखना चाहता,
जिनसे *रिश्ता* रखना चाहते हैं उन्हें *कद्र* नहीं है *रिश्तों* की,
जिनको *भूख* है उनके पास *खाने* के लिए *भोजन* नहीं,
जिनके पास *खाने* के लिए *भोजन* है उनको *भूख* नहीं,
कोई अपनों के लिए *रोटी* छोड़ देता है कोई *रोटी* के लिए अपनों को *छोड़* देता है,
ये *दुनियाँ* भी कितनी *निराली* है कभी *वक्त* मिले तो *विचार* करें,,,!!!