*‼ व्यक्तिगत चिंतन‼*
*❗ईर्ष्या की आग में मत जलिए ❗*
👉 *"ईर्ष्या" विषभरी घूँट है, जिसके पीने पर कोई भी मनुष्य, अपने जीवन के सौंदर्य और आनंद को अपने हाथों नष्ट कर देता है और उसमें अंदर ही अंदर एक भयंकर आग सुलगती है, जो उसे निरंतर जलाए रहती है और एक दिन भस्मीभूत कर देती है ।*
*"ईर्ष्या" एक वह तलवार है, जो स्वयं चलाने वाले का ही नाश कर देती है ।* *"ईर्ष्या" उस मानसिक दुर्बलता एवं संकीर्णता का परिणाम है, जिसके कारण मनुष्य लोगों की दृष्टि में गिर जाता है ।*
👉 *आग जहाँ रखी जाती है, उसी जगह को पहले जलाती है ।* *"ईर्ष्या" से दूसरों का *कितना अहित किया जा सकता है, यह अनिश्चित है, पर यह पूर्ण निश्चित है कि कुढ़न के कारण अपना शरीर और मस्तिष्क विकृत होता रहेगा और इस आग में अपना स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन धीरे-धीरे बिगड़ने लगेगा । यह हानि धीरे-धीरे एक दिन अपनी बरबादी के रूप में आ खड़ी होंगी ।*
👉 *"ईर्ष्या" को मिटाकर उसके स्थान में अपनी त्रुटियों, कमजोरियों पर ध्यान देकर उन्हें दूर किया जाए । यह निश्चित है कि *मनुष्य को दूसरों से "ईर्ष्या" होती है,* *तो इसका प्रमुख कारण अपनी कमजोरियाँ, त्रुटियाँ एवं सामर्थ्यहीनता ही है । *इनकी वजह से लोग असफल होते हैं और दूसरों से "ईर्ष्या" करते हैं ।* *अतः सदैव अपनी "कमजोरियों," "त्रुटियों" को समझकर उनका निराकरण कीजिए साथ ही अपने स्वाभाविक गुणों को बढ़ाइए ।*