दर्पण में *मुख* और संसार में *सुख*,
होता *नहीं* है बस *दिखता* है....!!
खुद को *स्पेशल* समझो क्योंकि भगवान कुछ भी *फालतू* में *नहीँ* बनाता....!!
कटीली *झड़ियों* पर ठहरी हुई *बूंदो* ने बस यही बताया है,
*पत्तो* ने साथ छोड़ा तो क्या *कुदरत* ने तुझे *मोतियों* से सजाया है...!!
छोटी-छोटी *खुशियाँ* ही तो *जीने* का सहारा बनती है...
*इच्छाओं* का क्या वो तो *पल-पल* बदलती है..?
घर चलाना हर किसी के *बसकी* बात नहीं होती...
स्वंय की *इच्छाओं* को *दफनाना* पड़ता है,सबकी *इच्छाएँ* पूरी करने के लिए...!!
सुधरना बिगड़ना *मनुष्य* के *स्वभाव* पर *निर्भर* करता है, न कि *माहौल* पर!