*"प्रतिकूल परिस्थिति में विचलित न हों"*
*हमें चाहिए कि हम अपने आप को* *परिस्थितियों के अनुरूप ढालें और* *जिस परिस्थिति में हों, उससे* *असंतोष या घृणा न प्रकट करें।*
*दिन कभी एक से नहीं रहते।*
*हमें चाहिए कि हम दुःख के विषम पथ पर धैर्य न खो बैठें।*
*प्रत्येक परिस्थिति की अपनी-अपनी हानि होती है और अपना-अपना लाभ।*
*संसार की कोई भी ऐसी परिस्थिति नहीं,*जिसका कुछ-न-कुछ लाभ न हो हमें लाभ की ओर ही ध्यान देना* *चाहिए।*
*जिन मजदूरों को मिट्टी में कार्य* *करना पड़ता है स्वास्थ्य भी तो उन्हीं* *का बढ़ता है।*
*ज्ञान तो केवल यही है कि हमें* *प्रतिकूल परिस्थिति में हिम्मत नहीं* *खोनी चाहिए और जब हम देखें कि* *परिस्थिति में तब्दीली आती ही नहीं,*
*तो हमें उस परिस्थिति से संतोष* *करना चाहिए।*
*नीच वह नहीं, जिसका कार्य आप *नीच बतलाते हैं बल्कि नीच वह है* *जो अपने कार्य में, चाहे वह कार्य* *कितना ही छोटा हो, दिलचस्पी नहीं*
*लेता और केवल काम चलाऊ काम* *करता है।*
*शांति प्राप्त करने का यही प्रथम* *साधन है कि हम अपने को प्रतिकूल* *परिस्थिति में विचलित न होने दें।*
*"स्वयं का सुधार स्वयं के संसार की सबसे बड़ी सेवा है..!!"*
*🙏🏽🙏🏼🙏🏻जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏾🙏