*ज़िंदगी भर कितना भी धन-धन कर लो पर मरने के बाद शोक पत्रिका में निधन ही लिखा जाएगा, कड़वा सच है। जितना है उतना कम है? या और जितना चाइये उसके बाद ये लालसा खत्म हो जानी? हमारे अंदर जो भी योग्यता, क्षमता, और प्रतिभा है - इन सब के सिर्फ तभी मायने हैं जब हमारे अंदर संतुलन है। धन भी जरूरी, ऐशो-आराम भी जरूरी, परिवार भी जरूरी, रिश्ते नाते भी जरूरी, सबको समय देना भी जरूरी, सेवा सिमरन सत्संग भी जरूरी। सबका संतुलन बनाकर चलते चलो।।*