*मन और पानी*
*मन* *भी* *पानी* *जैसा ही हैं ।*
*जिस तरह* *पानी फर्श* *पर गिर जाए, तो* *कहीं भी* *चला जाता है ।*
*उसी तरह *मन भी चंचल* *हैं ।* *कभी भी कहीं भी* *चला जाता है ।*
*मन* *को हमेशा *सत्संग और भजन-सिमरन* *के साथ *जोड़े* *रखना है ।*
*जैसे* *पानी को फ्रिज* *में* *रखने से* *ठंडा* *रहता है और *आॅईस बॉक्स* *रखने से सिमट कर* *बर्फ में परिवर्तित* *हो जाता है ।*
*वैसे ही* *मन* *फ्रिज रूपी* *सत्संग में ठंडा और शांत* *रहता है और* *भजन-सिमरन* *करने से सब *सिमट कर* *एक होकर *परमात्मा में लीन* *हो जाता है ।*
*जैसे* *बर्फ* *को बाहर *धूप* *में रखा जाए तो वह *पिघल कर पानी हो कर* *इधर-उधर हो कर* *बिखर* *जाता है ।*
*वैसे ही* *हम लोग* *भी* *माया रूपी धूप* *में* *सत्संग* *से* *दूर होकर बिखर* *जायेंगे ।*
*इसलिए *हमें* *हमेशा*
*सत्संग और भजन-सिमरन* *से*
*खुद को जोड़ कर* *रखना हैं।