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शिवदत्त

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करो वंदना स्वीकार प्रभोवासना से मुक्त हो मन, हो भक्ति का संचार प्रभोजग दलदल के बंधन टूटे हो भक्तिमय संसार प्रभो ॥वाणासुर को त्रिभुवन सौपा चरणों में किया नमस्कार प्रभोभक्तो पर निज दृष्टि रखना करुणा बरसे करतार प्रभो ॥कण-२ में विद्धमान हो नाथ तुम निराकार साकार प्रभोदानी हो सब कुछ दे देते

अंतिम यात्रा, भाग -१किसी की चूड़ियाँ टूटेंगी,कुछ की उम्मीदे मुझसेविदा लेगी रूह जबमुस्करा कर मुझसेकितनी बार बुलाने भी जोरिश्ते नहीं आयेदौड़ते चले आएंगे वो तब आँशु बहायेकितने आँशु गिरेंगे तबजिस्म पर मेरेरुख्सती में सब खड़े होंगे मेरी मिटटी को घेरे ||अंतिम बार फिर नहलाया जायेगाबाद सजाया जायेगाअंतिम दर्श

मेरे गुनाहों को अब नजर अंदाज करके बनाओ तुम मुझे, खुद को खराब करके ||किस कदर टूट चुका है अब वो देखरात गुजारता है, जिस्म को शराब करके ||अपने हिस्से की चाहत चाहता हर कोईचैन कहाँ है ,मोहब्बत बे- हिसाब करके ||उजड़ा हुआ है यहाँ हर साख का मंजरसोचा चमन से गुजरेगा सब पराग करके ||ये शहर बड़ी जल्दी इतना बड़ा हो ग

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियछोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियहम उस गुलशन के गुल बन गयेजहाँ अब बाग़बान नही आताकुछ पत्ते हर रोज टूट कर, बिखर जाते हैपर कोई अब समेटने नही आता ॥क्योकिअब बाग़बान नही आता॥कुछ डाली सूख रही है यहाँकुछ पर पत्ते मुरझाने लगे हैहवा ने कुछ को मिटटी में मिला दिया हैकुछ किसी के इन्तेजार में है ॥क्योकिअब बाग़बान नही आता

चेहरा छिपाने, चेहरे पर लगाए रखी है दाढ़ीमाशूका की याद मे कुछ बढ़ाए रखी है दाढ़ी||दाढ़ी सफेद करके, कुछ खुद सफेद हो लिएकितने आसाराम को छिपाए रखी है दाढ़ी ||दाढ़ी बढ़ा कर कुछ, दुर्जन डकैत कहाने लगेकुछ को समाज मे साधु बनाए रखी है दाढ़ी ||चोर की दाढ़ी मे तिनका, अब कहाँ मिलता हैचोरों ने तो यहाँ कब की कटाए

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियपरिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समयतू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय ||इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये हैलब्जो से कुछ भी बोलना फ़िज़ूल इस समय ||परिवार मे भी जिसकी बनती थी नही कभीक्यो खुद को समझता है मक़बूल इस समय ||इंसान से इंसान की इंसानियत है लापतादिखता नही खुदा मुझे

एक रात समाचार है आयापाँच सौ हज़ार की बदली माया५६ इंच का सीना बतलाकरजाने कितनो की मिटा दी छायावो भी अंदर से सहमा सहमापर बाहर से है अखरोटजब से बदल गया है नोट.... व्यापारी का मन डरा डरा हैउसने सोचा था भंडार भरा हैहर विधि से दौलत थी कमाईलगा हर सावन हरा भरा हैएक ही दिन मे देखो भैयाउसको कैसी दे गया चोटजब

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियअगर दोनो रूठे रहे, तो फिर मनाएगा कौन?लब दोनो ने सिले, तो सच बताएगा कौन?तुम अपने ख़यालो मे, मै अपने ख़यालो मेयदि दोनो खोए रहे, तो फिर जगाएगा कौन?ना तुमने मुड़कर देखा, ना मैने कुछ कहाँऐसे सूरते हाल मे, तो फिर बुलाएगा कौन?मेरी चाहत धरती, तुम्हारी चाहत आसमानक्षितिज तक ना चले, तो म

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियसब कुछ है धोखा कुछ कहीं नही हैहै हर कोई खोया ये मुझको यकीं हैना है आसमां ना ही कोई ज़मीं हैदिखता है झूठ है हक़ीकत नही है||उपर है गगन पर क्यो उसकी छावं नही है?है सबको यहाँ दर्द मगर क्यो घाव नही है?मै भी सो रहा हूँ, तू भी सो रहा हैये दिवा स्वपन ही और कुछ भी नही है||मैने बनाया

रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने उस रात नीद नही आ रही थी, कोशिश थी भुला के तेरी यादे बिस्तर को गले लगा सो जाऊ पर कम्बख़्त तू थी जो कहीं नही जा रही थी|| नीद की खातिर २ जाम लगाए, सोचा कि सोने के बाद हमारी बातो को मै कागज पर उतारूँगा एक कागज उठा सिरहाने रख कर मे सो गया

किस्मत क्या है, आख़िर क्या है किस्मत? बचपन से एक सवाल मन मे है, जिसका जबाब ढूंड रहा हूँ| बचपन मे पास होना या फेल हो जाना या फिर एक दो नंबर से अनुतीर्ण हो जाना, क्या ये किस्मत थी? आपके कम पढ़ने के बाबजूद आपके मित्र के आपसे ज़्यादा नंबर आ जाना, क्या ये किस्मत थी? स्कूल स

बेटो के बीच मे गिरे है रिश्‍तो के मायनेकैसे कहूँ कि इस झगड़े की वजह मे नही हूँ |कुछ और दिन रुक कर बाट लेना ये ज़मींमाना मै मर रहा हूँ, लेकिन मरा नही हूँ ||

हर मोड़ पर मिलते है यहाँ चाँद से चेहरेपहले की तरह क्यो दिल को नही भाते ||बड़ी मुद्दतो बाद लौटे हो वतन तुम आजपर अपनो के लिए कुछ आस नही लाते ||काटो मे खेल कर जिनका जीवन गुज़राफूलो के बिस्तर उन्हे अब रास नही आते||किसान, चातक, प्यासो आसमा देखना छोड़ोबादल भी आजकल कुछ खास नही आते ||

अपने शहर से दूर हूँ,  पर कभी-२ जब घर वापस जाता हूँ  तो बहाना बनाकर तेरी गली से गुज़रता हूँ  मै रुक जाता हूँ  उसी पुराने जर्जर खंबे के पास  जहाँ कभी घंटो खड़े हो कर उपर देखा करता था  गली तो वैसी ही है  सड़क भी सकरी सी उबड़ खाबड़ है  दूर से लगता नही कि यहाँ कुछ भी बदला है  पर पहले जैसी खुशी नही  वो

चाहने वालो के लिए एक ख्वाब हो गयी  सब कहते है क़ि तू माहताब हो गयी  जबाब तो तेरा पहले भी नही था  पर सुना है क़ि अब और लाजबाब हो गयी||  कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

प्यार नाम है    प्यार नाम है बरसात मे एक साथ भीग जाने काप्यार नाम है धूप मे एक साथ सुखाने का ||प्यार नाम है समुन्दर को साथ पार करने काप्यार नाम है कश्मकस मे साथ डूबने का||प्यार नाम है दोनो के विचारो के खो जाने काप्यार नाम है दो रूहो के एक हो जाने का||प्यार नाम नही बस एक दूसरे को  चाहने काप्यार नाम ह

अगर भगवान तुम हमको, कही लड़की बना देतेजहाँ वालों को हम अपने, इशारो पर नचा देते||पहनते पाव मे सेंडल, लगते आँख मे काजलबनाते राहगीरो को, नज़र के तीर से घायल ||मोहल्ले गली वाले, सभी नज़रे गरम करतेहमे कुछ देख कर जीते, हमे कुछ देख कर मरते||हमे जल्दी जगह बस मे, सिनेमा मे टिकट मिलतीकिसी की जान कसम से, हमारी

कितनी शांत सफेद पड़ीचहु ओर बर्फ की है चादरजैसे कि स्वभाव तुम्हाराकरता है अपनो का आदर||जिस हिम-शृंखला पर बैठाकितनी सुंदर ये जननी है|बहुत दिन हाँ बीत गयेबहुत सी बाते तुमसे करनी है||कभी मुझे लूटने आता हैक्यो वीरानो का आगाज़ करेयहाँ दूर-२ तक सूनापनजैसे की तू नाराज़ लगे||एक चिड़िया रहती है यहाँपास पेड़ क

ऐसी मेरी एक बहना हैनन्ही छोटी सी चुलबुल सीघर आँगन मे वो बुलबुल सीफूलो सी जिसकी मुस्कान हैजिसके अस्तित्व से घर मे जान हैउसके बारे मे क्या लिखूवो खुद ही एक पहचान हैमै चरण पदिक हू अगर वो हीरो जड़ा एक गहना हैऐसी मेरी एक .बहना है………..कितनी खुशिया थी उस पल मेजब साथ-२ हम खेला करतेछोटी छोटी सी नाराजीतो कभी

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