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शिवदत्त

hindi articles, stories and books related to Shivdatt


विज्ञान और धर्म की ऐसी एक पहचान होविज्ञान ही धर्म हो और धर्म ही विज्ञान हो|आतंक हिंसा भेदभाव मिटें इस संसार सेएक नया युग बने रहे जहाँ सब प्यार से||विज्ञान जो है सिमट गया उसकी नयी पहचान होमेरा तो कहना है, कि हर आदमी इंशान हो||हर आदमी पढ़े बढ़े नये-2 अनुसंधान होउन्नति के रास्ते चले, पर सावधान हो||प्या

मै गुमनाम रही, कभी बदनाम रहीमुझसे हमेशा रूठी रही शोहरत,तुम्हारी पहली पसंद थी मैफिर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत ||ज़ुबान से स्वीकारा मुझे तुमनेपर अपने हृदय से नही,मै कोई वस्तु तो ना थीजिसे रख कर भूल जाओगे कहींअंतः मन मे सम्हाल कर रखोबस इतनी सी ही तो है मेरी हसरतपर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत||तुम्हार

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहम बनाएँगे अपना घरहोगा नया कोई रास्ता होगी नयी कोई डगरछोड़ अपनी रह तुम चली आना सीधी इधर||मार्ग को ना खोजना ना सोचना गंतव्य किधरमंज़िल वही बन जाएगी साथ चलेंगे हम जिधर||कुछ दूर मेरे साथ चलो तब ही तो तुम जानोगीहर ओर अजनबी होंगे लेकिन ना होगा

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नहीउन्होने पूछा ही नही, हमने बताया ही नही|फिर जिन यादो को, भुलाने मे जीवन बितायालेकिन हमने कहाँ, यादो ने सताया ही नही|मरके भी वो कब्र मे, कब से जाग रहा हैपर जाने वाला तो कभी, लौट कर आया ही नही|इतने मशरूफ थे हम, चाहत मे तुम्हारीदुनिया ने कहाँ कि, नाम कमाया ही नही|महल

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहर किसी को आज है, इंतेजार महफ़िल मे मेराफिर भी लगता है कि , बस हम ही बिन बुलाए है||मोहब्बत अगर गुनाह, फिर हम दोनो थे ज़िम्मेदारमहफिले चाँदनी तुम, हम सरे बज्म सर झुकाए है||खामोशी उनकी कहती है, कुछ टूटा है अन्दर तकलगता है जैसे मेरी तरह, वो जमाने के सताए है ||वैसे क्या कम सितम, ज

कल सुबह से घर पर बैठे-२ थक चुका था और मन भी खिन्न हो चुका था शुक्रवार और रविवार का अवकाश जो था, तो सोचा कि क्यो ना कही घूम के आया जाए| बस यही सोचकर शाम को अपने मित्र के साथ मे पुणे शहर की विख्यात F. C. रोड चला गया, सोचा क़ि अगर थोड़ा घूम लिया जाएगा तो मन ताज़ा हो जाएगा, थकान दूर हो जाएगी||         श

नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||शिकायत है मुझे दिन सेजो की हर रोज आता हैअंधेरे मे जो था खोयाउसको भी उठाता हैकिसी का चूल्हा जलता होमेरी चमड़ी जलाता है |कोई तप कर भी सोया है,कोई सोकर थका हारा ||नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||मै जन्मो का प्यासा हूँनही पर प्यास पानी कीना

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजब तक आँखो मे आँसू हैतब तक समझो मे जिंदा हूँ||धरती का सीना चीर यहाँनिकाल रहे है सामानो कोमंदिर को ढाल बना अपनीछिपा रहे है खजानो को|इमारतें बना के उँचीछू बैठे है आकाश कोउड़ रहे हवा के वेग साथजो ठहरा देता सांस को|जब तक भूख ग़रीबी चोराहो परतब तक मै शर्मिंदा हूँ||जब तक आँखो मे आँस

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियआज बैठकर सोचा मैनेक्या खोया क्या पाया हैएक चीज़ जो साथ रहीवो तो बस माँ का साया है||आज मुझे हा याद नहीअपने बचपन की बातेमाँ ने क्या-२ कष्ट झेलेतब मिली मुझे ये काया है||संसार मे जब मैने जन्म लियाना जाने कितना रोया थापर सारी दुनिया को भूलमाँ के आचल मे निडर हो सोया था||मुझे ठीक से

जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नहीउसने पूछा नही, हमने बताया ही नही||कुछ ना समझे वो अगर, इसमे खता मेरी कहाँहाल ए दिल हमने कभी उनसे छिपाया ही नही||मेरी निगाहें है निगेहबान अभी तक उनकीजाने वाला तो कभी लौट कर आया ही नही||याद तन्हाई मैं जब भी तेरी आयी हमकोकैसे कह दूँ क़ि कभी अश्क बहाया ही नही||तेरी दुन

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियवक़्त को क्यो फक़्त इतना गवारा ना थाजिसको भी अपना समझा, हमारा ना था||सोचा की तुम्हे देखकर आज ठहर जाएना चाह कर भी भटका पर, आवारा ना था||धार ने बहा कर हमे परदेश लाके छोड़ाजिसे मंज़िल कह सके ऐसा, किनारा ना था||दुआए देती थी झोली भरने की जो बुढ़ियाखुद उसकी झोली मे कोई, सितारा ना था

आफिस का अंतिम दिन था, छोड़ना था शहर बस यही सोचता हूँ, कि कैसा होगा सफ़र... उम्मीदे थी बहुत सारी, निकलना था दूरसुबह से ही जाने क्यो, छाया था सुरूरबैठे-२ हो गयी देखो सुबह से सहर            कैसा होगा सफ़र......शाम कल की थी, तब से थे तैयारसाथ सब ले लिया, जिस पर था अधिकारचल दिए अकेले ही पर नयी थी डगर   

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियतेरे शहर मे मैने गुज़ारी थी एक जिंदगीपर कैसे कह दूं हमारी थी एक जिंदगी ||जमाने से जहाँ मेने कई जंग जीत लीवही मोहब्बत से हारी थी एक जिंदगी ||मुझको ना मिली वो मेरा कभी ना थीतुमने जो ठुकराई तुम्हारी थी जिंदगी ||महल ऊँचा पर आंशु किसी के फर्स परतब मुझको ना गवारी थी एक जिंदगी ||कलम

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजिंदगी के उस मोड़ पर(यह कविता एक प्रेमी और प्रेमिका के विचारो की अभिव्यक्ति करती है जो आज एक दूसरे से बुढ़ापे मे मिलते है ३० साल के लंबे अरसे बाद)जिंदगी के उस मोड़ पर आकर मिली हो तुमकी अब मिल भी जाओ तो मिलने का गम होगा|माना मेरा जीवन एक प्यार का सागरकितना भी निकालो कहा इससे कु

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजो भी आए पास           सब दूर हो गयेतोड़ा हुए बदनाम           तो मशहूर हो गये||कल तक जो दूसरो से          माँगकर के जिंदा थेजीता चुनाव आज जो          वो हुजूर हो गये||हम भी तो कल तक          दफ़न थे चन्द पन्नो मेबाजार मे बिके जो          सबको मंजूर हो गये||पहाड़ो से टकराकर के 

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घरकैसी होगी ज़मीन, वो कैसा होगा शहरहाथो मे हाथ रहे, तू हरदम साथ रहेकुछ मै तुझसे कहूँ, कुछ तू मुझसे कहेमै सब कुछ सहुं, तू कुछ ना सहेसुबह शुरू तुझसे, ख़त्म हो तुझपे सहरजहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...कुछ तुम चलोगी, तो कुछ मै चलूँगाकभी तुम थकोग

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियअब इन राहो पर सफ़र आसान लगता हैजो गुमनाम है कही वही पहचान लगता है||जिस शहर मे तुम्हारे साथ उम्रे गुज़ारी थीकुछ दिन से मुझको ये अनजान लगता है||कपड़ो से दूर से उसकी अमीरी झलकती हैमगर चेहरे से वो भी बड़ा परेशान लगता है||मुझको देख कर भी तू अनदेखा मत करतेरा मुस्करा देना भी अब एहसान

कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|अगर  माँग हे सीधीया फिर जुल्फे है उल्झीना करो जतन इतनासमय जाए लगे सुलझीदौड़ी चली आओ तुम,ज़ुल्फो को बिखरा रहने दोजैसी हो वैसी चली आओअब शृंगार रहने दो|कुछ सोई नही तुमआधी जागी चली आओसुनकर मेरी आवाज़ऐसे भागी चली आओजल्दी मे अगर छूटे कोई गहना,या

वो शायर था, वो दीवाना था, दीवाने की बातें क्यूँकवि:- शिवदत्त श्रोत्रियमस्ती का तन झूम रहा, मस्ती मे मन घूम रहामस्त हवा है मस्त है मौसम, मस्ताने की बाते क्योइश्क किया है तूने मुझसे, किया कोई व्यापार नहीसब कुछ खोना तुमको पाना, डर जाने की बाते क्योबड़ी दूर से आया है, तुझे बड़ी दूर तक जाना हैमंज़िल देखो

कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहेकत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|तेरी रूह को चाहा, वो बस मै थाजिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दीकैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||जिस की खातिर मैने रूह जला दीवो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घरवो पागल अबतक सरकार

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