"सुंदरी" सवैया सरल मापनी --- 112/112/112/112/112/112/112/112/2
"सुंदरी सवैया"
ऋतु में बसंत उतिराय गयो, घर से सजना रिसियाय गयो क्यों।
जब फागुन की रसदार कली, बगिया अपने पछिताय गयो क्यों।
रसना मधुरी नयना कजरा, करते मधुपान बिलाय गयो क्यों।
मन की मन में सब साध रही, अँगना चुनरी उलझाय गयो क्यों।।
गलियाँ कचनार अली बिहसे, बगिया महुवा कुचझार झुकी है।
गँवई छयला लपके-झपके, मद बौर बहार फुलाय चुकी है।
पिय का तुमसे कहना सुनना, तुम जानत हो उदगार छुपी है।
गर फागुन में न लियो सुध तो, गगरी भर रंग सखी पहुँची है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी