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-व्यंग

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      हे प्रभु      अब तो ऐसी दया हो      जीवन निरर्थक जानेन पाए      यह मन ना जाने      क्या क्या कराए      क

(पहला भाग पढ़कर कुछ पाठकों की प्रतिक्रिया आई कि न्यायालय अक्सर अपराधियों और आतंकवादियों के मानवाधिकार ही देखते हैं और उसी के अनुसार अपना फैसला सुनाते हैं । न्यायालयों को आज तक पीड़ित पक्षकारों के मानवाध

दिनाँक : 16.4.2022समय।  :  शाम 6 बजेप्रिय डायरी जी,गांव में सड़क किनारे एक प्रॉपर्टी है। अब वहां से हाईवे निकल रहा है। एक अमीर इलोन मस्क  टाइप पहुच गया की भाई ये प्लाट तो हमे चाहिए। प्ला

'आजी' मर गयी।रात में दूध रोटी खा के सोयी थी। माई से तेल लगवाई थी। बाबू से दवा खाई थी। सुबह कुसुमिया गयी थी चाय देने तो आँख नहीं खुल रहा था। बबलू दौड़ा। बबलिया दौड़ी। बाबु-माई दौडे।गाँव भर

 पूरे जग को अपना कहते ,हम सबको अपनाने वालेहम त्याग धर्म के पोषक है ,हम क्षमादान करने वालेहम गीता पढ़ने वाले है,हम रामायण के गायक हैश्री राम प्रभु के वंशज हम,केशव से अपने नायक हैहम करते है अनुनय पह

दिनाँक: 15.4.2022समय : शाम 7 बजेप्रिय डायरी जी,हम सोचते थे कि व्हाट्सएप बड़े ही काम की चीज़ है। बहुत सी ऑफिसियल और सोशल बातें इसपर पर्सनली डिस्कस हो जातीं हैं। हमे तो इंस्टाग्राम और ट्विटर वगैरह एप एवें

बस इतनी सी हैं हमारी औकात...फिर घमंड कैसाघी का एक लोटा,लकड़ियों का ढेर,कुछ मिनटों में राख.....बस इतनी-सी है   हमारी औकात...एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया, अपनी सारी ज़िन्दगी,परिवार के नाम

      सुनते है तेरी रहमत      दिन रात बरसती है      एक बूंद जो मिल जाऐ      मन की कली खिल जाऐ      राधे तेरे चरणो की  &n

   भोर भई    उठ जाग मुसाफिर   बहुत दूर है जाना रे   अन्जानी राहों का सफर है   और उस पे वीराना है   चक्का चौंध में अटका मनवा   

       चलता फिरता        एक खिलौना है       जीवन क्या है       दो आंखों में एक से        ह

इकोनॉमी वारियर्स जैसे ही मैंने अपना लंच समाप्त किया , श्रीमती जी ने कहा कि घर में आटा , दाल वगैरह सब खत्म हो चुका है । यदि डिनर करना है तो आज ही ये सब लाने पड़ेंगे अन्यथा आज उपवास करना होगा । श्रीमती

हे कान्हा...मेरी अभिलाषा.मन में है बसी, बस चाह यही, कि नाम तुम्हारा उच्चारा करूँ,...बिठला के तुम्हें मन मंदिर में,मनमोहनी रूप निहारा करूँ....भर के दृग पात्र में प्रेम का

सरपंच साहब की हवेली पर शाम को खूब "हथाई" हुआ करती थी । ग्राम सेवक जी, पटवारी जी, मास्टर जी और रिटायर्ड थानेदार जी की महफिल जमती थी रोज । एक दो घंटे तक हंसी ठठ्ठा चलता रहता था । इसी बीच पूरे दिन की गति

बस, इतनी तमन्ना है  श्याम तुम्हे देखूँ, घनश्याम तुम्हे देखूँ...शर मुकुट सुहाना हो,  माथे तिलक निराला हो    गल मोतियन माला हो...श्याम तुम्हे देखूँ, घनश्याम तुम्हे देखूँ...कानो मैं ह

जाग रे मनव अब तो जागजाग रे मनव, जाग रहा संसार, भाग रे मनव भाग रहा संसार। जो सोता है वह खोता है यहां, जागे हुए का लगता बेड़ा पार। जाग रे मनव अब तो जाग अगर करोगे ईश्वर की भक्ति, तुमको मिलेगी अद्भु

जिन्दगी की दास्तां...!जो पीछे मुड़ के देखा तो,कुछ यादें बुला रही थी।अब तक के सफर की,सारी बातें बता रही थी।।कितनी मुश्किल राहें थीं, हम क्या क्या कर गए।एक सुकून की तलाश में,कहां कहां से गुजर गए।।कि

मौत का तान्ड़व चल रहा है,दोस्तो अब रूठना,लड़ना,गुस्सा बन्द कीजिये ,      पता नहीं कौनसा Msg,Call या मुलाकात आखिरी हो,, !!!सम्बंधों के ताले को क्रोध के हथोड़े से नहीँ,     

जिन्दगी तू भी कच्ची-पेन्सिल की तरह है,       हर रोज छोटी होती जा रही है,,!!चेहरे की हँसी से गम को भुला दो,      कम बोलो पर सब- कुछ बता दो,      खुद ना

 कितनी भी महँगी गाड़ी में घूम लो, अंतिम सफर तो बाँस से बनी अर्थी पर ही करना पड़ेगा .!! यही जीवन का सत्य है ...!! पानी अपना पूरा जीवन देकर पेड़ को बड़ा करता है.. इसीलिए शायद पानी लकड़ी को डूब

टूटे न कोई और सितारा, आओ प्रार्थना करें. बिछड़े न कोई हमसे हमारा आओ प्रार्थना करेंतूफाँ है तेज़, कश्तियाँ सबकी भँवर में हैं,मिल जाये हर किसी को किनारा,आओ प्रार्थना करें शरारत किसी

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