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-व्यंग

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ऐसी होती है मांएक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी.मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थीतभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया.माँ के तन को छू कर हल्के - हल्के से हिलाया.माँ अलसाई सी चटाई से बस थो

रेड लाइट एरिया की तंग गलियो से विष्णु गुजर रहा था, हर एक घर उसे अपने अंदर समा लेना चाहता, लेकिन सौदा पक्का ना होने की बजेसे वो बस इधर उधर घूम रहा था। आखिर कार उसे वो पसंद आ गई, दरवाजे़ पर बैठ कर

वो रोज की तरहा आज भी ऑफिस को लेट हो गया था। जल्दी जल्दी भागते सासें फुलाता लिफ़्ट के पास आ गया था। कितना सेक्रेटरी के पीछे लग लग कर उसने ये सोसाइटी की लिफ़्ट चालु करवा दी थी, आखिर दसवें मजले से न

भरी दोपहर मे भद्र ने अग्नि जलाया। आग की लप्टे जिस दिशा मे अपनी लाल जिभा दिखा रही थी वहां भद्र चल पड़ा। ये कठिन काम सिर्फ भद्र ही कर सकता था इसलिए कबीले वालों ने उसका चुनाव किया सारा कबीला गैर आर्

पैसे वालों को मौसम बदलने से, कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे ठिठुरती सर्दी हो, चाहे झुलसाती गर्मी। वो इनसे नहीं डरता। घर में एसी, कार में एसी, और घर से निकले, आफिस में भी एसी। तो क्यूं होगा उसे, बदलते मौसम

अयोध्या फिर बनी दुल्हन ।पल आनंद के आये हैं।।ये धरती फिर बनी मधुवन।चरण श्री राम लाये हैं।।बजे शहनाईयो की धुन।मगन मन मुस्कराए हैं।।बड़ी शुभ है ये घड़ियां।प्रभु घर में पधारे है।।भरो नैनो में अब खुशियां।रा

हे मेरे श्याम सुंदर ........" तुझे देखकर श्याम हमारा "     " मन वश में क्यूँ कर होगा "" तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर "     " तु कितना सुन्दर होगा ".......हे मेरे श्याम.......

बड़ी अनोखी हमारी पीढ़ी, दो पीढ़ियों की बीच की सीढ़ी। परंपराओं को भी निभाते, आधुनिकता को भी आजमाते। मिट्टी के चूल्हे की रोटी, पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम, फ्रूटी। ठंडा पानी मटके का पीते, बिसलेरी की बोतल

तसल्लियां और दिलासे बेकार हैं। लोहे और सोने के ये मुरक्कब में छटांकों फांक चुका हूँ। कौन सी दवा है जो मेरे हलक़ से नहीं उतारी गई। मैं आपके अख़लाक़ का ममनून हूँ मगर डाक्टर साहब मेरी मौत यक़ीनी है। आप क

पहले एक इंक पेन लाते थे, और एक इंक पोट। रिफिल का पैकेट लाते थे, और एक डोट। कई दिनों तक, यूज़ करते थे। रिफिल बदलते, लेकिन डोट नहीं बदलते थे। अब यूज एंड थ्रो का, जमाना आ गया है।  नई नई चीजों को, आ

गर्मियों का मौसम, रात का समय। कूलर की हवा में, नींद आए गहरी। कि अचानक चली गई लाइट। एक तो तेज गर्मी, ऊपर से मच्छरों की फाइट। थोड़ी देर तक, करते हैं इंतजार। फिर छत पर जाते, वहाँ बिस्तर लगाते। और जैसे ही

चांद सी सुन्दर  महबूबा हो ऐसा हम सोचा करते थे मिल गई हमको वैसी ही हम अभी हो गए खुश फिर ही कुछ ही दिनों में सारे अरमान हो गए फुस्स चांद सी सुन्दर वो थी तो पर उसमे भी कई कमियां थी हमने पूछा भग

श्याम तुम्हे देखूँ घनश्याम तुम्हे बस, इतनी तमन्ना है  श्याम तुम्हे देखूँ, घनश्याम तुम्हे देखूँ...शर मुकुट सुहाना हो,  माथे तिलक निराला हो    गल मोतियन माला हो...श्याम तुम्हे द

            तीन महीने के बच्चे को              दाई के पास रखकर         जॉब पर जाने वाली माँ को 

मैं " पुरुष " हूँ...मैं भी घुटता हूँ , पिसता हूँटूटता हूँ , बिखरता हूँभीतर ही भीतररो नही पाताकह नही पातापत्थर हो चुकातरस जाता हूँ पिघलने कोक्योंकि मैं पुरुष हूँ..मैं भी सताया जाता हूँजला दिया जाता हूँ

दिन, महीने, साल बीत गए, उमर निकल गई टेंशन में। बचपन में पढ़ाई की और, बुढ़ापा गुजरा पेंशन में। गरीब को खाने की और, अमीर को खोने की टेंशन। आम आदमी को रहती, हमेशा महंगाई की टेंशन। शादीशुदा को बीवी की, कु

लोगों की लाइफस्टाइल बदल रही है  सुनसान रातें चमचमाहट में बदल रही हैं  कानफोड़ू संगीत में पगलाते हुए लोग  डी जे की धुन पर हसीनाएं थिरक रही है  देर रात तक पार्टियां करने का चलन 

मैं, मेरी माँ और मेरे पिताजी अपने घर के दूरवा( घर के बाहर ) उस गर्मी के दिनों में चांदनी रात की आनंद वहीं रेगिस्तान में पानी की अनुभूति थोड़ी थोड़ी चलने वाली हवाओं से हो रही थी, बिजली तो नई नई हमारे गाँ

ये तो बहुत बड़ी तानाशाह सरकार है। इसने अपने दोनों कार्यकाल में एक भी बम भारत में नहीं फटने दिया। पहले वो दूसरे देशों से आकर भारत के किसी भी शहर में बम फोड़ जाते थे और हम दिवाली पर सुतली बम भी नहीं फोड़ प

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गर्मियों के दिन थे। सुबह-सुबह सेठ जी अपने बगीचे में घूमते-घामते ताजी-ताजी हवा का आनन्द उठा रहा थे। फल-फूलों से भरा बगीचा माली की मेहनत की रंगत बयां कर रहा था। हवा में फूलों की भीनी-भीनी खुशबू बह र

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