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आध्यात्म

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*इस संसार में जिस प्रकार संसार में उपलब्ध लगभग सभी वस्तुओं को अपने योग्य बनाने के लिए उसे परिमार्जित करके अपने योग्य बनाना पड़ता है उसी प्रकार मनुष्य को कुछ भी प्राप्त करने के लिए स्वयं का परिष्कार करना परम आवश्यक है | बिना परिष्कार के मानव जीवन एक बिडंबना बनकर रह जाता है | सामान्य मनुष्य , यों ही अ

जय सिय रामभारत सदा से ही एक समृद्ध परंपरा और संस्कृति का प्रचारक रहा हैI क्या हम अपने देश को आध्यात्म-विहीन देश के रूप में देख सकते हैं? प्रश्न यह है कि “आजकल की युवा पीढ़ी धर्म को मज़हब या सम्प्रदाय मानने लगी और उन्हें केवल उपरी सतह

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मेरा ईश्वर, मेरे सामने खड़ा,मेरा ही विराट रूप तो है,मेरी अपनी ही क्षमताओं के,क्षितिज के उस पार खड़ा, खुद मैं ही ‘परमात्मा’ तो हूं,... अहम् ब्रह्मास्मि, इति सत्यम,मैं अपनी ही राह का मंजिल,अपनी संभावनाओं का भक्त,पूर्णता की ईश्वरता का आध्य,मैं ही साधन, मैं ही साध्य,मैं ही पूजा, मैं आराधन,मैं स्वयं अपना

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सब मिथ्या है, कहता तो हर कोई है,नश्वर है हर यथार्थ, जानते सभी हैं,झलावा है जो होने जैसा दिखता है,माया है जिसने सबको भरमाया है...अपना तो खुद का वजूद भी नहींगोया सोच भी अपनी मिल्कियत नहीं,‘मैं’ का उन्माद मूर्खता की नुमाइश है,चैरासी लाख जन्मों का यही सरमाया है...?जब सब ‘शून्य’ है तब यह हाल है,इंसान किस

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घर में खुशहाली किसे अच्छी नहीं लगती. सब ठीक हों, स्वस्थ हों, सबकी जरूरतें पूरी हों इससे ज्यादा इंसान को क्या चाहिए होता है.पर कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता. लाख कोशिशों के बाद भी आपको वो नहीं मिल पाता जिसके आप हकदार हैं.हम बात कर रहे हैं वास्तु दोष की जिसका सीधा प्रभाव इंसान पर पड़ता है. अगर घर में वास्त

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