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आध्यात्म

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*इस संसार में आने के बाद जीव अनेकों प्रकार के बंधनों में जकड़ जाता है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में लिखा है " भूमि परत भा ढाबर पानी ! जिमि जीवहिं माया लपटानी !!" कहने का मतलब है कि जीव को माया चारों ओर से घेर लेती है , जिस के बंधन से जीव जीवन भर नहीं निकल पाता है | ईश्वर प्राप्ति का लक

कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो….हम अपने आस - पास अक्सर लोंगों को बोलते हुए सुनते हैं, हर कोई आध्यात्मिक अंदाज में संदेश देते रहता है - 'कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो…...।' वस्तुतः ठीक भी है। एक विचार यह है कि फल की चिंता कर्म करने से पहले करना कितना उचित है अर्थात निस्वार्थ भाव से कर्म को बखूब

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*सनातन धर्म में त्रिदेव (ब्रह्मा , विष्णु , महेश) प्रमुख देवता माने गये हैं | ब्रह्मा जी सृजन , शिव जी संहार एवं श्रीहरि विष्णु को संसार का पालन करने वाला बताया गया है | संसार का पालन करने के क्रम में सृष्टि को अनेकानेक संकटों से बचाने एवं धर्म की पुनर्स्थापना करने

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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस मानव जीवन को पा करके मनुष्य को आत्मिक विकास करने का प्रयास करना चाहिए | आत्मिक विकास कैसे होगा ? इसके लिए हमारे धर्मग्रन्थों में आध्यात्म का मार्ग बताया गया है | अध्यात्म क्या है ? इसके विषय हमारे ग्रंथों में लिखा है कि आध्यात्म शब्द का अर्थ अपनी आत्मा या जीवन का अध्

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धार्मिक आस्था का मूल अध्यात्मसामान्य रूप से भारत में छः दर्शनप्रचलित हैं | इनमें एक वर्ग उन दर्शनों का है जो नास्तिक दर्शन कहे जाते हैं |इनमें प्रमुख है चार्वाक सिद्धान्त | यह दर्शन केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है| ईश्वर की सत्ता नहीं मानता और शरीर को ही प्रमुख मानता है | आत्मा की सत्ता कोस्वीकार

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🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ *मनुष्य माता - पिता के संयोग से इस पृथ्वी पर आता है | मानव जीवन में माता - पिता का बहुत बड़ा महत्त्व है बिना इनके इस संसार में यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त ही नहीं हो सकता | जन्म लेने के बाद मनुष्य पर

क्यों ये मन कभी शांत नहीं रहता ?ये स्वयं भी भटकता है और मुझे भी भटकाता है।कभी मंदिर, कभी गॉंव, कभी नगर, तो कभी वन।कभी नदी, कभी पर्वत, कभी महासागर, तो कभी मरुस्थल।कभी तीर्थ, कभी शमशान, कभी बाजार, तो कभी समारोह।पर कहीं भी शांति नहीं मिलती इस मन को।कुछ समय के लिये ध्यान हट जाता है बस समस्याओं से।उसके

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!मानव के जीवन में मन का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है | मन को साधने की कला एक छोटे बच्चे से सीखना चाहिए जो एक ही बात को बार बार दोहराते हुए सतत सीखने का प्रयास करते हुए अन्तत: उसमें सफल भी हो जाता है | मन की चंचलता से प्राय: सभी परेशान हैं | सामान्य जीवन में मन की औसत स्थिति हो

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन काल में अनेकों मित्र एवं शत्रु बनाता है | वैसे तो इस संसार में मनुष्य के कर्मों के अनुसार उसके अनेकों शत्रु हो जाते हैं जिनसे वह युद्ध करके जीत भी आता है , परंतु मनुष्य का एक प्रबल शत्रु है जिससे जीत पाना मनुष्य के लिए बहुत ही कठिन होता है | वह

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*मनुष्य इस धरा धाम पर जन्म लेकर के जीवन भर अनेकों कृत्य करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करता है | इस जीवन अनेक बार ऐसी स्थितियां प्रकट हो जाती है मनुष्य किसी वस्तु , विषय या किसी व्यक्ति के प्रति इतना आकर्षित लगने लगता है कि उस वस्तु विशेष के लिए कई बार संसार को भी ठुकराने का संकल्प ले लेता है | आखि

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*मानव जीवन में पवित्रता का बहुत बड़ा महत्त्व है | प्रत्येक मनुष्य स्वयं को स्वच्छ एवं पवित्र रखना चाहता है | नित्य अनेक प्रकार से संसाधनों से स्वयं के शरीर को चमकाने का प्रयास मनुष्य द्वारा किया जाता है | क्या पवित्रता का यही अर्थ हो सकता है ?? हमारे मनीषियों ने बताया है कि प्रत्येक तन के भीतर एक मन

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में आदिकाल से लेकर आज तक अनेक ज्ञानी - विज्ञानी एवं महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञानप्रकाश से समस्त विश्व को आलोकित किया है | हमारे ज्ञानग्रंथों के अनुसार इन ज्ञानियों को तीन श्रेणियों में रखा गया है :- १- भौतिक ज्ञानी , २- मानसिक ज्ञानी एवं ३- आध्यात्मि

^^^^^ साधना - - दिनचर्या के कार्यों के साथ - साथ ^^^^^ ()साधना, जिसके लिए अलग समय देने की आवश्यकता नहीं;ऐसी साधना की बात करें। साधना, जो दिन प्रतिदिन के कार्यों को करते हुए की जा सके;ऐसी साधना की बात करें।। स्वयं से जुड़े रहना;होश में बने रहना;बड़ी उपलब्धियां हैं;उन्हे

II अनुभव : एक निज सेतु IIहमारा निज अनुभव, मनोभाव के स्तर पर, हमें बतलाता है कि भविष्य में स्वयं के अंदर कैसे भाव उभरेंगे ? अंदर के भावों की द्रष्टि से, निज अनुभव हमारे स्वयं के लिए हमारे स्वयं के वर्तमान से निकलते हुये भविष्य की झलक

भूमिका : हम देखते हैं, पाते हैं कि अलग अलग व्यक्ति अलग अलग ढ़ंग से, अपने अपने ढ़ंग से ही जीवन जी रहे हैं। बहुत मौटे तौर पर, हम इसको 3 श्रेणी में रख सकते हैं या 3 संभावनाओं के रूप में देख सकते हैं। हरेक के जीवन में हर प्रकार के क्षण आते हैं, उतार चढ़ाव आते हैं, पर कुल मि

- = + = दोराहा - = + =हर क्षण, नया क्षण, सदा साथ लाता है दोराहा हर क्षण, नया क्षण, सदा साथ लाता है दोराहा;भटकन से भरा, स्थायित्व से भरा होता है दोराहा। जिसे जो राह चलन

** यह मेरा जीवन कितना मेरा है ? ** यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, वो किस का है? वो किस किस का है? हम में से प्रत्येक यह प्रश्न, इस तरह के प्रश्न स्वयं से कर सकता है। यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, मैं उसको मेरा कहता हूं, समझता हूं। परयह मेरा जीवन कितना मेरा है?हम कहते तो हैं कि यह मेरा जीवन है;कौन नहीं कहता

** यह मेरा जीवन कितना मेरा है ? ** यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, वो किस का है? वो किस किस का है? हम में से प्रत्येक यह प्रश्न, इस तरह के प्रश्न स्वयं से कर सकता है। यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, मैं उसको मेरा कहता हूं, समझता हूं। पर यह मेरा जीवन कितना मेरा है? हम कह

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*इस संसार में जब से मानवी सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य के साथ सुख एवं दुख जुड़े हुए हैं | समय समय पर इस विषय पर चर्चायें भी होती रही हैं कि सुखी कौन ? और दुखी कौन है ?? इस पर अनेक विद्वानों ने अपने मत दिये हैं | लोककवि घाघ (भड्डरी) ने भी अपने अनुभव के आधार पर इस विषय पर लिखा :- "बिन व्याही ब

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