मेरा ईश्वर, मेरे सामने खड़ा,
मेरा ही विराट रूप तो है,
मेरी अपनी ही क्षमताओं के,
क्षितिज के उस पार खड़ा,
खुद मैं ही ‘परमात्मा’ तो हूं,
... अहम् ब्रह्मास्मि, इति सत्यम,
मैं अपनी ही राह का मंजिल,
अपनी संभावनाओं का भक्त,
पूर्णता की ईश्वरता का आध्य,
मैं ही साधन, मैं ही साध्य,
मैं ही पूजा, मैं आराधन,
मैं स्वयं अपना हूं अनुष्ठान,
सांसें उत्सर्ग, जीवन यज्ञ-समान,
विधि मैं, विधाता और विधान,
सकलता-सम्पूर्णता का आह्वान,
सहजता-सरलता का सोपान,
मानव करे ‘मैं’ का पूर्ण सम्मान,
इसी में सबका चिर कल्याण...