नश्वर है हर यथार्थ, जानते सभी हैं,
झलावा है जो होने जैसा दिखता है,
माया है जिसने सबको भरमाया है...
अपना तो खुद का वजूद भी नहीं
गोया सोच भी अपनी मिल्कियत नहीं,
‘मैं’ का उन्माद मूर्खता की नुमाइश है,
चैरासी लाख जन्मों का यही सरमाया है...?
जब सब ‘शून्य’ है तब यह हाल है,
इंसान किस हसरत में सदा बेहाल है?
तिलस्म है दुनिया तब क्यूं मलाल है?
शून्य का अरबपति होना, अजब मिसाल है...
झलावों की चकाचैंध का ये नजारा देखिये,
नश्वरता के माया की अदम्य लीलाएं देखिये,
बेचने-खरीदने के फनकारों का तमाशा देखिये,
अंधों के शहर में, रंगीन ख्वाबों का मुजरा देखिये,
कातिलों से लंबी उमर का नुस्खा खरीदिये,
चवन्नी से अठन्नी का उम्दा प्रबंधन सीखिये,
कब्र की राह में मेले लगे हैं, लुत्फ उठाते रहिये,
‘मैं’ की मियाद जब तक है, दम भर इतराते रहिये...!