आत्म साक्षात्कार
स्वच्छ एवं निर्मल
जल
उसमें और कुछ
भी नहीं होता
जब कोई इंसान
उसमें और कुछ खोजता है
वह खोजता रहता है
उसकी मानसिकता
यह मान ही नहीं पाती कि
आज के
दूषित वातावरण में भी
इतना स्वच्छ और निर्मल
जल
उसे दिखायी दे सकता है
जिसमें सिर्फ
स्वच्छ्ता है
निर्मलता है
और वह जल है
सिर्फ जल,
और उसमें वह नहीं
जो वह खोज रहा है
वह फिर भी खोजता रहता है
खोजता रहता है
किंतु आश्चर्य ?
काफी परिश्रम के पश्चात्
उसे उस जल में
स्वच्छता और निर्मलता
के अतिरिक्त भी
कुछ मिल ही जाता है
और वह है-
अपना ही चेहरा
हाँ
जब उसे अपना
चेहरा दिखता है
अपनी ही संकीर्ण-विकृत
मानसिकता दिखायी देती है
तो
वह बेचारा इनसान
अपनी खोज में
सफल होते हुए भी
असफल हो जाता है।