प्रकृति
जहाँ
की कलाकार
विश्व-गुरू
कहलाता राष्ट्र
सुपुत्र
हुए हैं जहाँ दार्शनिक ।।
महिमा
इस भारत-भूमि की
गायी
जननी
जन्म भूमिश्च
स्वर्गादपि गरीयसी
।।
भारतीय
संस्कृति पूर्णत: वैज्ञानिक है।
भारतीय परम्पराएं विज्ञान
प्राचीन
काल से ही भारतीय
सिद्धांत 'आत्मनों मोक्षर्यम् जगत हिताय्' अर्थात् 'अपने लिए मोक्ष और जगत
के लिए कल्याण’का रहा है। अपने से इतर का भी कल्याण चाहना और करना, पूरे विश्व
को कुटुंब मानना हमारे राष्ट्र की गौरवमय परंपरा है :-
सर्वे
भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे
भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग्भवेत्।
हमारा
राष्ट्र आत्मा से ही धर्मनिरपेक्ष है। मूल सिंद्धांत को जाने बिना अगला और उससे अगला कदम बढ़ाया ही नहीं जा सकता । भाषा के संदर्भ में भी यही सत्य है। यदि भारतीय, राष्ट्रीय अखंडता
की रक्षा चाहते हैं तो कदाचित संस्कृत भाषा और अपने प्राचीन ग्रंथो की ओर लौटना
होगा।
अंग्रेजी भारतीय
भारतीयों ने अपनी संस्कृति को कभी ढंग से प्रस्तुत ही नहीं किया,क्योंकि जो भारतीय, अंग्रेजी के प्रति मोह रखता है,वह भारतीय संस्कृति की सुंदर
छवि प्रस्तुत करने में सर्वाधिक अक्षम है। हमें यह जान लेना बहुत आवश्यक है कि कोई भी संस्कृति अपनी भाषा में ही फलती-फूलती है। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति, संस्कृत
भाषा में फली-फूली और दर्शन से आयुर्वेद, काव्य
से गणित तक हमारे समस्त चिंतन संस्कृत की गोद में पले और विकसित हुए। आज हिन्दी का विकास अवरुद्ध हो गया है। यह समस्या अत्यंत गंभीर है। अगर समय रहते उपाय न किये गए तो इसके दूरगामी और घातक परिणाम होंगे। अंग्रेजी कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसमें भारतीय संस्कृति नहीं पनप सकती। यही हाल रहा तो एक समय ऐसा आएगा जब भारत अपनी संस्कृति भूलकर मात्र अमरीका और इंग्लैण्ड की नकल बन कर उभरेगा और नकल कभी भी असल से उत्तम नहीं हो सकती। इस प्रकार पश्चिमी संस्कृति की देन भारतीय संस्कृति को समाप्त कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ
1835
यूनान, मिश्र, रोमाँ,
सदियों रहा है
यह जो बात है,
विश्व का इतिहास गवाह है कि विजेता राष्ट्र विजित राष्ट्र की अस्मिता को मिटने के लिए उसकी राष्ट्रभाषा के स्थान पर अपनी
रनेह-श्रम के
इसी
मैकाले के मंतव्य की पुष्टि सन् १८८० में अलैक्जेन्डर आविरनाट ने इस प्रकार की
“भारत में शिक्षा प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए कि लोग ब्रिटिश शासन को अपना
सौभाग्य मानें और उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन को अपने लिए दुर्भाग्यपूर्ण समझें”।
ऐसे अनेक उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि देश का गौरव राजभाषा के अभाव में देश
की एकता एवं अखण्डता कमजोर पड़ती जाती है एवं राष्ट्र प्रगतिहीन होकर गुलामी की राह
पर चलने लगता है। भारत मे विदेशी अंग्रेजी शासन के खिलाफ स्वराज की लड़ाई स्वभाषा
हिंदी में ही लड़ी गई थी। तत्कालीन भारतीय नेता अंग्रेजी भाषा व साहित्य से जुड़े
दुष्चक्र व उसके घातक परिणामों को भांप गए थे। वे राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक
राष्ट्रभाषा के इस महत्व को समझ गए थे।
फादर कामिल बुल्के के अनुसार “ यह खेद की बात है कि हिंदी भाषियों में भाषा के
प्रति स्वाभिमान नहीं जगा”। फादर कामिल बुल्के बेल्जियमवासी थे। यहां आगमन के बाद
उन्होंने भारत को ही अपना देश बना लिया और हिंदी भाषा एवं साहित्य की अमूल्य सेवा
में अपना जीवन अर्पित कर दिया।
“अपने
विचारों का मधुर स्वर अपने कंठ से ही निकलता है, दूसरे की जिह्वा से
कदापि नहीं”।
भारतीय संदर्भ
संसार
भारत
हमारा सौभाग्य है कि
हे भाइयो सोये बहुत,
देखो जरा अपनी
है पार न क्या-क्या समय के उलट फेर न हो चुके।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों से ऐसा लग रहा है
देवनागरी लिपि : वैज्ञानिक लिपि
संत विनोबा भावे
देवनागरी लिपि की
" 'त्रिभुज़’ लिखो तो पढ़त्ते हैं 'तरभुज’ और उर्दू की 'प्रणाली’ पढ़ी जाय ‘परनाली' है।
‘वाल्क’ ‘वाक’होत और ‘टाल्क’ कहलाता ‘सीजी’ बने ‘कागा’ ऐसी, इंग्लिश भी जाली है।
'चैन,चना, चूना, चून, चीनी' के चक्र को, न चीरती सर्राफी की प्रणाली है।
जैसा लेख लिखो, उसको पढ़ लो वैसा ही, ऐसी सर्वगुण आगरी देवनागरी निराली है"
देवनागरी लिपि में जैसा लिखा जाता है, वैसा ही उसे पढ़ा जाता है जबकि अन्य भाषाओँ के साथ ऐसा नही है।
अन्य भाषाओं की तुलना के साथ यही उपरोक्त कविता में दर्शाया गया है।
सच तो यह है कि हिन्दी इतनी महान, समृद्ध और समर्थ भाषा है कि कोई भी दूसरी भाषा न तो इसका मुकाबला कर सकती है और न ही इसके मार्ग की बाधा बन सकती है। शब्द-भंडार, वैज्ञानिकता, प्रयोग में
सरलता, अभिव्यक्ति की स्पष्टता और यहां तक कि हदय छू लेने की क्षमता, यह सब हिन्दी में ही संभव है। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि देवनागरी एक ऐसी लिपि है जो दुनिया की किसी भी भाषा के शब्द को लिपिबद्ध करने और उच्चारित करने की क्षमता रखती है। अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषा की शक्ति और
सामर्थ्य को पहचानें एवम् उसको समुचित स्थान ग्रहण कराने की दिशा में यथाशक्ति
प्रयास करें। यह एक विश्व भाषा के रूप में विकसित हो सकती है।
आशा ‘क्षमा’
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