पहचानो स्वयं को
मन चाहता है समय को थाम लू मैं
पर वह निकलता ही चला जाता है।
मन करता है समय-चक्र को थाम लूँ
हर प्रयास विफल हो जाता है
दिन रात, रात दिन गुजरते गये।
सप्ताह महीनों मे बदलते गये।
कब दशक गये, बच्चे से युवा हुए।
कब भविष्य, भूत में बदल गया,
समय चक्र तो पूरा घूम गया।
बस इस पर न किसी का रहा कभी
भूत तो कल ही था, वर्तमान अभी
उल्टा चक्र तो नही घूमना है कभी
क्या सूरज को थामूँ या थामूँ मैं चदा को।
क्या श्वॉस को रोकूँ या घूमती वसुधा को?
इस अनन्त ब्रह्माण्ड मैं,
रोकना है स्वयं को।
चलते हैं हम, न कि समय,
पहचानो स्वयं को।