आखिर कैसे लटके नभ में, सूरज-चाँद-सितारे,
क्या कारण जो कभी न गिरते धरती पर ये सारे;
पूछा मम्मी से तो बोली, पूछो पापा जी से,
पापा से पूछा तो बोले, पूछो बाबा जी से I
दादी-बाबा जी जवाब में कुछ भी बता न पाए,
मैं अबोध रह गया सोचता, किससे पूछा जाए;
भैया से पूछा तो वो भी, मुझको लगे बेचारे,
वो भी बता न पाए मुझको कैसे लटके सारे I
संध्या, रजनी, दिव्या दीदी, भी न दे सकीं उत्तर,
मेरे इस सवाल ने सारे घर को किया निरुत्तर;
पूछा यही सवाल गुरूजी से तो यह बतलाया
इसके पीछे शक्ति गुरुत्वाकर्षण ही समझाया I
धरती-अम्बर दोनों इनको, खींचे बांह पसारे,
इसीलिए तो युगों-युगों से लटक रहे ये सारे I
—दयानंद सिंह ‘अटल’
साभार : मातृस्थान हिन्दी पत्रिका